________________ जिन सूत्र भागः2 उसका पता मिलता नहीं, वैसी ही संभावना तुम्हारी है। बस थोड़े-से जागने की, स्मरण बाहर ढूंढते रहोगे, मिलेगा भी नहीं। वह भीतर छिपा बैठा है। की बात है। तम्हारा होना ही उसका द्वार है। तम जरा शद्ध होने की कला भर रे प्रवासी, जाग। तेरे सीख लो। उसी को महावीर ज्ञान कहते हैं। और घबरा मत देश का संवाद आया। जाना, कितने ही हारे होओ, कितने ही भटके होओ, उससे तुम भेदमय संदेश सुन पुलकित दूर जाकर भी दूर जा सकते नहीं। उसे खोकर भी तुम खो सकते खगों ने चंचु खोली नहीं। क्योंकि वह तुम्हारा स्वभाव है। प्रेम से झुक-झुक प्रणति में तृषित! धर धीर मरु में पादपों की पंक्ति डोली; कि जलती भूमि के उर में दूर प्राची की तटी से कहीं प्रच्छन्न जल हो। विश्व के तृण-तृण जगाता; नरो यदि आज तरु में फिर उदय की वायु का वन में सुमन की गंध तीखी, सुपरिचित नाद आया स्यात, मधुपूर्ण फल हो। रे प्रवासी, जाग! तेरे दुखों की चोट खाकर देश का संवाद आया। हृदय जो कूप-सा जितना ये जिन-सूत्र तुम्हारे देश की खबरें हैं। अधिक गंभीर होगा; रे प्रवासी, जाग! तेरे उसी में वृष्टि पाकर देश का संवाद आया। कभी उतना अधिक संचित महावीर और बुद्ध डाकिया हैं। चिट्ठीरसा। खबरें लाते हैं सुखों का नीर होगा। परमात्मा की। तुम चिट्ठियों को संभालकर छाती पर मत रख घबड़ाओ मत! बहुत बार ऐसा हुआ कि महावीर और बुद्ध लेना। खोलो और उनका अर्थ खोलो। खोलो चिट्ठियों को। बजाय इसके कि लोगों ने आशा के सत्र उनका सार समझो। ये चिद्रियां पजने के लिए नहीं हैं। ये लिये होते, लोग निराश हो गये और घबरा गये और उन्होंने कहा चिट्ठियां शास्त्र बना लेने के लिए नहीं हैं। ये चिट्ठियां जीवन कि यह तो कुछ ही लोगों के वश की बात है। यह तो महापुरुषों बनाने के लिए हैं। की बात है। अवतारी, तीर्थंकरों की बात है। बुद्धों की बात है। रे प्रवासी, जाग! तेरे हम साधारणजन! तो, हम पूजा ही करने के लिए बने हैं। हम | देश का संवाद आया। कभी पूज्य होने को नहीं बने। तो हम प्रतिमा के सामने फूल चढ़ाने को ही बने हैं, हम कभी परमात्मा की प्रतिमा बनने को नहीं आज इतना ही। बने हैं। बड़ी भूल हो गयी। जिनसे आत्मविश्वास लेना था, उनसे हमने और दीनता और हीनता ले ली। उनका सारा प्रयास यही था कि तुम समझो कि वे तुम्हारे जैसे ही पुरुष, आज ऐसे गौरीशंकर के शिखर जैसे हो गये हैं। तुम भी हो सकते हो। देखा कभी बड़वृक्ष के नीचे, विराट वृक्ष के नीचे पड़ा छोटा-सा बड़ का चीज! बड़ का बीज सोच भी नहीं सकता कि इतना बड़ा वृक्ष कैसे हो सकेगा? लेकिन हो सकता है। उसकी संभावना है। 258 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org