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________________ जिन सूत्र भाग 2 तुम जिसे पकड़ रहे हो, वह तुम्हारे ही होने की संभावना है। पाया! पाया कुछ भी नहीं। खोया जरूर। पूछनेवाला चकित अगर मेरे पास तुम्हें कुछ रस मिला है, तो रस मुझसे नहीं मिला हुआ, उसने पूछा, खोया! पाया कुछ भी नहीं? बुद्ध ने कहा, है, वह तुम्हारे भीतर ही झरा है। अगर मेरे पास तुम्हें कुछ पाया तो वही जो पहले से ही मिला हुआ था। पता न था, दिखायी पड़ा है, तो वह तुम्हारा ही भविष्य है, वह तुम्हारा ही पहचान हुई। इसलिए उसको पाया, ऐसा कहना तो ठीक नहीं। आनेवाला कल है, वह तुम्हारी ही संभावना है; तुम्हारी नियति, | जो जेब में ही पड़ा था, भूल गये थे, हाथ डाला, मिल गया। तुम्हारा भाग्य! अगर तुम मेरे सामने झुके हो, तो वह तुम अपने पाया क्या! था अपना, सदा से, पता न था, पता हुआ। बोध ही भविष्य के सामने झुके हो, जैसे बीज अपने ही फूल के सामने हुआ। उसी बोध से तो शब्द बुद्ध बना। बुद्ध ने कहा, परमात्मा झुक जाए। | को पाना नहीं है, सिर्फ बोध करना है। है तो है ही। मौजूद ही है। निराकार! जब तुम्हें दिया आकार स्वयं साकार हो गया वही तुम्हें भरे है। वही तम्हें घेरे है—बाहर-भीतर, सब दिशाओं तुमने अगर किसी को महिमा दी, तुम महिमावान हो गये। में, चहुं-ओर-चहुं दिशाओं में। पाना नहीं है। पाने में तो ऐसा तुमने अगर किसी को प्रभु कहकर पुकारा, उसी क्षण तुम्हारा प्रभु लगता है जैसे कि कहीं जाना है; जो है नहीं, उसे पाना है। नहीं, जन्मा। तुम अगर किसी चरण में झुके, तो तुम्हारे चरण किसी के सिर्फ जागना है। जानना है, प्रत्यभिज्ञा करनी है। लिए झुकने योग्य होने लगे। और बुद्ध ने कहा, खोया बहुत। वह सब खोया, जो मेरे पास निराकार! जब तुम्हें दिया आकार स्वयं साकार हो गया / नहीं था और सोचता था कि है। इसे थोड़ा समझना, बड़ा युग-युग से मैं बना रहा था मूर्ति तुम्हारी अकल, अलेखी विरोधाभास है। जो सोचता था कि नहीं है, वह था। और जो आज हुई पूरी तो मैंने शकल खड़ी अपनी ही देखी। सोचता था कि है, वह नहीं है। अहंकार खोता है, आत्मा मिलती जिस दिन तुम मेरे बिलकुल करीब आ जाओगे और मुझे ठीक है। अहंकार कभी भी नहीं है, और आत्मा सदा है। से जान लोगे, उस दिन तुम पाओगे, अरे! पकड़ने दूसरे को मुझसे पूछते हो, आपने सिद्ध होकर क्या पाया? पाया कुछ चला था, यह तो अपने को ही पा लिया। भी नहीं, खोया। पाने को यहां कछ है ही नहीं। पाने की दौड़ ही लेकिन इससे भी बढ़कर अपराध कर गयी पूजन-बेला संसार है। जब तक तुम पाने के पीछे पड़े हो, तब तक तुम संसार तुम्हें सजाने चला फूल जो, मेरा ही शंग में रहोगे। इसलिए सांसारिक आदमी अगर धार्मिक भी होने तुमने जो भी श्रद्धा से, समर्पण से कहीं चढ़ाया है, वह तुम्हीं पर लगता है, तो भी पूछता है, मिलेगा क्या? चढ़ गया है। तुम जहां भी श्रद्धा और समर्पण से आंख उठाये हो, | मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं ध्यान तो करें, लेकिन वह तुम्हारे ही भविष्य का गृह है। वह तुम्हारे ही भविष्य, तुम्हारी | मिलेगा क्या? स्वांतः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा। तुम पूछो ही संभावनाओं का सूत्र है। वह तुम्हारी नियति है। तुलसीदास को कि क्या मिलता है? राम की कथा कहे चले जा रहे हो, पाया क्या? स्वांतः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा। वह आखिरी प्रश्नः आपने सिद्ध होकर क्या पाया? और क्या कहेंगे, मौज है, मजा है, पाने का कोई सवाल ही नहीं। यह आप निश्चयपूर्वक कह सकते हैं कि परमात्मा है? आनंद-भाव है। यह आनंद में खिले फूल हैं। पाने के लिए नहीं। यह कोई वासना नहीं है। कोई लोभ नहीं है। कोई पाने की सिद्ध होकर कुछ पाया नहीं जाता। सब खो जाता है। कुछ दौड़ नहीं, कोई चाह नहीं है। बचता ही नहीं। वही पाना है। शून्य मिलता है सिद्ध होकर। मिला कुछ भी नहीं, खोया बहुत। खोया सब। पूरा का पूरा लेकिन वही शून्य पूर्ण का आवास है। पाने की भाषा में तो पूछो | खोया। लेकिन उस खो जाने में ही उसका आविर्भाव होता है, जो ही मत, क्योंकि वह लोभ की भाषा है। क्या पाया? कुछ भी | दबा था। इस कूड़े-कर्कट में जो दबा था हीरा, वह प्रगट हुआ। नहीं पाया। | अपने से पूछो! मुझसे पूछते हो, सिद्ध होकर क्या पाया? मैं बुद्ध से किसी ने यही सवाल पूछा था। तो बुद्ध ने कहा, तुमसे पूछता हूं, संसारी होकर क्या पाया? 196 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340141
Book TitleJinsutra Lecture 41 Dukh ki Swikruti Mahasukh ki Nimv
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size33 MB
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