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________________ दुख की स्वीकृति : महासुख की नींव Salmation पड़े, अंधा मालूम पड़े; मगर अगर तुममें थोड़ी भी करुणा हो, तो | की नजर में आते ही हीरा हो जाता है। उसके पहले तो पत्थर ही भूलकर ऐसे शब्दों का प्रयोग मत करना। था। और तुम्हारे पास जौहरी की नजर न हो, तो तुम्हारे लिए भी इतना ही कहना : मुझे अभी घटा नहीं, मैं कुछ कह सकता | पत्थर है। नहीं। जिसको घटा है, वह जाने। और धन्यभाग समझना कि मराहूं हजार मरण कछ लोग हैं, जिनको परमात्मा अभी भी घटता है। क्योंकि उन्हीं पायी तब चरण-शरण में आशा है उन लोगों के लिए भी, जो अभी तर्क के जाल में और भक्त तो कहता हैव्यामोह में भटक रहे हैं। जो तुम्हें जाद-ए-मंजिल का पता देता है भक्त से पूछो, वह कहेगा अपनी पेशानी पे वो नक्शे-कदम लेके चलो मरा हूं हजार मरण अपने माथे पर रख लो वे चरण, जिससे तुम्हें मार्ग मिला, पायी तब चरण-शरण जिससे तुम्हें राह मिली। तुम कहोगे, अंधा है। वह कहता है, हजारों बार मरकर यह जो तुम्हें जाद-ए-मंजिल का पता देता है चरण मिले हैं। बड़ी मश्किल से मिले हैं। जिसने तुम्हें खबर दी मंजिल की। मरा हूँ हजार मरण अपनी पेशानी पे वह नक्शे-कदम लेके चलो पायी तब चरण-शरण लेकिन दूसरों को तो पागल ही लगेगा। दूसरे की तो समझ के बड़ी कीमत से पायी है उसने। जन्मों-जन्मों जिस हीरे को बाहर होगा कि यह क्या हो रहा है? खोजा, अब पाया है। तुम कहोगे, पत्थर लिये बैठा है। हीरे को दूसरे की चिंता मत करें। अगर समर्पण घटा हो, तो वह इतना देखने के लिए जौहरी की आंख चाहिए। बहुमूल्य है कि सारी दुनिया भी कहती हो कि तुम अंधे हो, तो मैंने सुना है, एक आदमी अपने गधे के गले में एक हीरा | समर्पित व्यक्ति कहेगा, अंधा होने को राजी हूं, लेकिन समर्पण लटकाये चला जा रहा था। एक जौहरी ने देखा, चकित हो छोड़ने को नहीं। अगर न घटा हो समर्पण अब तक जीवन में, तो गया! लाखों का हीरा होगा और यह गधे के गले में लटकाये हुए जरा खोजबीन करना कि क्या पाया है समर्पण-हीन जीवन में? है! उसने पूछा, क्या लेगा इस पत्थर का? उस आदमी ने कहा, | क्या पाया है? कचरा ही कचरा, राख ही राख पाओगे। अंगारा एक रुपया दे दें। उस जौहरी ने कहा, चार आने में देना है? | भी न मिलेगा जलता हुआ एक। शास्त्रों की राख मिलेगी, सत्य पत्थर है, करेगा क्या? उसने कहा अब चार आने तो रहने दो का अंगारा न मिलेगा। परंपरा की धूल मिलेगी, परमात्मा का बच्चे खेल लेंगे! उस जौहरी ने सोचा कि आयेगा, चार आने भी दर्पण न मिलेगा। तो अपने भीतर ही खोजना कि अब तक कौन देनेवाला है इसको! जौहरी जरा दो-चार कदम आगे चला अंधविश्वास से जीये हैं, तो अब एक बार समर्पण की आंख से गया, तभी तक दूसरा जौहरी आया। उसने एक हजार रुपये में भी जीकर देख लें, यह नयी शैली भी अपना कर देख लें। वह खरीद लिया पत्थर। लौटकर जौहरी आया भागा हआ, कहा समर्पित व्यक्ति को तो धीरे-धीरे पता चलता है कि जो चरण क्या हुआ, बेच दिया? कितने में बेच दिया? उसने कहा, हजार उसने पकड़े थे, वह पराये चरण न थे; और जिसका हाथ अपने रुपये में। पहले जौहरी ने कहा, पागल हए हो! अरे, वह लाखों | हाथ में लिया था, वह पराया हाथ न था। और जिसके साथ चल का हीरा था! उस गधे के मालिक ने कहा कि मैं पागल होऊ या पड़े थे, वह अपनी ही नियति थी,अपना ही भविष्य था। न होऊं, मुझे तो पता नहीं कि वह हीरा था, इसलिए हजार में बेच निराकार! जब तुम्हें दिया आकार, स्वयं साकार हो गया दिया: तझे तो पता था कि हीरा है, एक रुपये में लेने को त राजी यग-यग से मैं बना रहा था मर्ति तम्हारी अकल, अलेखी न हुआ! आज हुई पूरी तो मैंने शकल खड़ी अपनी ही देखी। हीरा अपने-आप में थोड़े ही हीरा है! पड़ा रहता है हजारों वर्ष / लेकिन इससे भी बढ़कर अपराध कर गयी पूजन-बेला, तक, जब तक कि किसी जौहरी की नजर में नहीं आता। जौहरी तुम्हें सजाने चला फूल जो, मेरा ही शृंगार हो गया। 1195 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340141
Book TitleJinsutra Lecture 41 Dukh ki Swikruti Mahasukh ki Nimv
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size33 MB
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