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________________ दुख की स्वीकृति : महासख की नींव लड में घुमाया जाए। संभ पीड़ा ही मिली तुम दौड़े चले जाते हो इतने परेशान, इतने सब्जा-ओ-बर्गो-लाला-ओ-सर्वो-समन को क्या हुआ उसका नाम-धाम भी उसे पता न रहा। वह युद्ध के भी किसी सारा चमन उदास है, हाय चमन को क्या हुआ काम का न रहा। लेकिन उसे भेजें कहां? उसके घर का भी कोई मैं तुमसे पूछता हूं, इतने उदास हो, तुम्हें हुआ क्या? इतने | पता नहीं। फिर किसी ने सलाह दी—मनोवैज्ञानिक ने कि दुखी, इतने कातर, इतने हारे-थके, इतने निराश! इंग्लैंड कोई बहुत बड़ा देश नहीं है, इसको ट्रेन में बिठाकर सारे सारा चमन उदास है, हाय चमन को क्या हुआ इंग्लैंड में घुमाया जाए। संभव है अपने गांव के स्टेशन पर पहुंचे मैं तुमसे पूछं, इतने बीमार, इतने रोते, इतने परेशान, इतने तो याद आ जाए। बात काम कर गयी। उसे ले जाया गया पीड़ित, फिर भी तुम दौड़े चले जाते हो उन्हीं रास्तों पर, जिनसे स्टेशन-स्टेशन। जो लोग ले गये थे वे भी थक गये। क्योंकि हर पीड़ा ही मिली है। फिर भी दौड़े चले जाते हो उन्हीं पटरियों पर | स्टेशन पर ले जाकर उसको उतारकर खड़ा कर देते, वह खड़ा जिन पर नर्क ही मिला! फिर भी दौड़े चले जाते उसी क्रोध, उसी देखता रह जाता। माया, उसी लोभ, उसी मोह में, जिनसे सिवाय...सिवाय कांटों | लेकिन एक छोटे गांव के स्टेशन पर उतारना न पड़ा। जैसे ही के और कुछ भी न छिदा! तुम मुझसे पूछते हो कि आपको क्या | उसे गांव की तख्ती दिखाई पड़ी, अरे! उसने कहा, मेरा गांव! मिला? तुम्हारा दुख खो गया, वह मेरे पास नहीं है। तुम्हारे कांटे | वह नीचे उतरकर भागने लगा। लोगों ने उसे रोकना भी चाहा, खो गये हैं, वे मेरे पास नहीं। तुमसे मैं अगर ठीक से कहूं, तो | उसने कहा, रोको मत! अब मुझे जाने दो। मेरा गांव आ गया। तुम्हारे पास जो है, वह मेरे पास नहीं है। इतना तो पक्का! वह | जो मनोवैज्ञानिक उसे लेकर घूम रहे थे, वह उसके पीछे गये। खोया। कोई चाह नहीं, कुछ पाने की यात्रा नहीं, कोई दौड़ नहीं। वह सीधा भागता हुआ, गांव की गलियों को पार करता हुआ, अपने घर आ गये। अपने घर के द्वार पर पहुंच गया। उसने कहा, यह रहा मेरा घर। नग्मा-ओ-मय का ये तूफाने-तरब क्या कहिये वह मेरी मां बैठी है। घर मेरा बन गया खैयाम का घर आज की रात क्या हुआ? पड़ी थी याददाश्त गहन में। वह नामपट स्टेशन नग्मा-ओ-मय का ये तूफाने-तरब क्या कहिए! का चोट कर गया। तुम्हें दिखायी नहीं पड़ता, यह जो शराब का तूफान तुम्हारे | इसीलिए तो जाननेवालों ने कहा है, परमात्मा को पाना थोड़े ही सामने है? है, सिर्फ स्मरण करना है। सुमिरण कीजै। सुरति जगाइये। नग्मा-ओ-मय का ये तूफाने-तरब क्या कहिए स्मृति भरिये। पड़ा है गहन में तुम्हारे, पुकारिये, चिल्लाइये, घर मेरा बन गया खैयाम का घर आज की रात आवाज लगाइये। किसी क्षण मेल खा जाएगा, किसी क्षण * शराब बरसी। मधुशाला मिली। लेकिन यह मिलन कुछ ऐसा | स्मरण पकड़ जाएगा, किसी क्षण तुम्हारी पुकार के कुंदे में उलझा नहीं कि अपना न था, पहचान हई। सदा से अपना ही था। हुआ ऊपर आ जाएगा। भागने लगोगे—यह रहा घर, यह आ खजाना अपना था, चाभी अपने हाथ में थी, ताला खोलना भूल | गया घर; खोया संसार, पाया उसे जो मिला ही हुआ था। गये थे। याद आ गयी, स्मरण हुआ, सुरति आयी। संसार नग्मा-ओ-मय का ये तूफाने-तरब क्या कहिये खोया, परमात्मा मिला, ऐसा कहना गलत होगा। परमात्मा घर मेरा बन गया खैयाम का घर आज की रात। मिला ही हुआ था। संसार की उधेड़-बुन में भूल गये थे घर की | पानेवाले को कुछ नहीं मिलता। खोनेवाले को सब कुछ याद। बाजार में खो गये थे। मिलता है। पानेवाले भटकते हैं, रोते हैं, झीखते हैं; खोनेवाला ऐसा हुआ दूसरे महायुद्ध में। एक आदमी चोट खाकर गिरा | | भर जाता है, पूरा हो जाता है। युद्ध के स्थल पर, उसकी स्मृति खो गयी। जब युद्धस्थल से उसे तुझे ढूंढ़ता हूं तेरी जुस्तजू है उठाकर लाया गया, तो बड़ी कठिनाई खड़ी हो गयी। युद्धस्थल | मजा है कि खुद गुम हुआ चाहता हूं में उसका तगमा, उसका नंबर भी कहीं गिर गया। और उसकी तम अगर दंढ ही रहे हो, खोज ही रहे हो. तो न पा सकोगे। स्मृति भी खो गयी। अब वह कौन है, यह भी न बता सके। मजा है कि खुद गुम हुआ चाहता हूं 197 __Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340141
Book TitleJinsutra Lecture 41 Dukh ki Swikruti Mahasukh ki Nimv
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size33 MB
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