________________ करना है संसार, होना है धर्म / जरूरत नहीं कुछ करने की। प्रश्न सब गिर गये! पक्का भरोसा है! उत्तर की कोई भूख नहीं, चाह नहीं, पक्का भरोसा है! अगर कुछ बचे हों तो पूछ लेना, अन्यथा पीछे सतायेंगे वे। अन्यथा उठ-उठकर खड़े होंगे। जल्दी मत करो। खोज लो ठीक से। अगर सच में ही खतम हो गये, तो शुभ घड़ी आ गयी। सौभाग्य की घड़ी आ गयी। संबोधि का क्षण करीब आने लगा। अब करने की फिकर छोड़ो, अब तो जितनी देर होने में बीत जाए उतना ही शुभ है। अब तो जब मौका मिले, तब बैठे रहो। ठीक है, जब जरूरत हो, दुकान चलानी है, बच्चे पालने हैं, उतना कर दो। लेकिन वह भी ऐसे करो कि भीतर तो न करना ही बना रहे। वह भी ऐसे करो जैसे जल में कमलवत। कर लिया, चल पड़े। कर आये, हो गया। मगर इसको बोझ मत बनाओ, चिंता मत बनाओ। जब मौका मिले, जहां मौका मिले—कार में बैठे हो, बस में बैठे हो, ट्रेन में बैठे हो-खाली रहो। भीतर कुछ भी न करो। इस मंदिर को अब खाली होने दो। जन्मों-जन्मों तक भरा रखा, भरने से सिर्फ कूड़ा-कर्कट इकट्ठा हुआ। अब सिर्फ खाली रखो, उस खालीपन में ही शुद्धता है। उस खालीपन को ही महावीर ने शुद्धि कहा है। न शुभ से भरो, न अशुभ से भरो, अब तो सब हटा दो। खाली करो। शुद्ध आकाश रह जाए। निर्मल आकाश रह जाए भीतर, जिसमें कृत्य की कोई रेखा भी न हो। कोरा कागज रह जाए। यही ध्यान है। _और इसी ध्यान से रोज-रोज अमृत घना होगा। इसी ध्यान से मेज-रोज समाधि सघन होगी। इसी ध्यान से रोज-रोज परमात्मा पास, और पास आता चला जाएगा। एक दिन तुम अचानक पाओगे, तुम तो नहीं रहे, परमात्मा ही शेष रहा। आज इतना ही। 1190 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org