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________________ जिन सूत्र भाग : 2 होना ध्यान है। करना मन है। | के गुरिये सरकाते रहेंगे। कुछ करने को तो रहेगा! मन तुम्हें बैठने नहीं देता। मन कहता है, क्या कर रहे तुमने कभी खयाल नहीं किया कि माला का गुरिया कोई बैठे-बैठे? कुछ करो, उठो। होटल ही चलो। सिनेमा देख | आदमी सरकाता है, तुम सोचते हो बड़ा धार्मिक आदमी है। आओ। कोई, खोज लो कोई शिकार, उसकी खोपड़ी खाओ। तुम्हारी धारणा है। अन्यथा बड़ा मूढ़तापूर्ण कृत्य कर रहा है। कुछ करो। खाली बैठे-बैठे क्या कर रहे हो? समय गंवा रहे | माला के गुरिये सरका रहा है! लेकिन उससे एक तरह की राहत हो। तो महावीर ने बारह साल खाली-खाली जंगल में खडे | मिलती है, वह जो करने का पागलपन है, व्यस्त रहता है। कछ समय गंवाया! कुछ भी किया नहीं। बारह साल में कोई भी एक तो कर रहे हैं! चलो माला की गिनती ही कर रहे हैं! ऐसी बात नहीं कि जिसको कोई अखबार छापने लायक समझे। मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन को नींद नहीं आती थी। उसके न कोई ‘इलेक्शन' लड़े, कोई चुनाव लड़े। बोले ही नहीं। खड़े डाक्टर ने कहा तुम ऐसा करो, भेड़ों की गिनती करो। ऐसा कई ही रहे। चुपचाप रहे। कृत्य जैसा कुछ भी बारह साल में नहीं डाक्टर लोगों को समझाते हैं-कुछ भी गिनती करने में लग घटा। महावीर के बारह साल ऐसे रिक्त हैं जैसे कि किसी और जाओ, माला फेरने जैसा काम है, कुछ भी गिनती करो; एक से के जीवन में खोजने मुश्किल हैं। उसी रिक्तता में महावीर की | सौ तक जाओ, फिर सौ से उल्टे लौटो–निन्यानबे, अट्ठानबे, महिमा है। बारह साल कुछ भी न किया। बैठे तो बैठे, खड़े तो सतानबे...ऐसा कुछ भी करते रहो। थोड़ी देर में थक मरोगे, खड़े; लेटे तो लेटे। ऐसे हो गये, जैसे व्यस्तता का जो रोग ऊब जाओगे कि यह भी क्या करना! इसी ऊब में नींद आ आदमी पर सवार होता है, वह बिलकुल समाप्त हो गया। जाएगी। ऊब में नींद बड़ी आसानी से आती है। नींद के लिए थोड़ा सोचो इस बात को, थोड़ा इसका ध्यान करो, थोड़ा ऊब बड़ी उपयोगी है। इसको भीतर रसने दो, उतरने दो, बैठने दो-बैठे हैं तो बैठे हैं; मुल्ला ने कहा, यह ठीक! उसने गिनती की। एक बज गया न कुछ करने को है, न कुछ सोचने को है। तब तुम हो। उस होने रात का, दो बज गया, तीन बज गया, लाखों करोड़ों पर पहुंच के क्षण में ही आत्मा से परिचय होता है। आत्मा यानी होना। गयी संख्या और चली जा रही है संख्या. और वह इतना उत्तेजित शुद्ध होना। मात्र होना। और तभी गहन शांति की वर्षा होती है | हो गया कि नींद कहां! फिर उसने सोचा, यह तो पूरी रात ऐसे ही और परम आनंद के वाद्य बजते हैं। अमृत के बादल बरसते हैं। बीत जाएगी, और इतनी करोड़ों भेड़ें अब इनका करना क्या? तो होने में। करना संसार है, होना धर्म है। करना बाहर है, होना | उसने सबका ऊन काटना शुरू कर दिया। अब ऊन के ढेर पर | भीतर। जैसे ही तुमने कुछ किया कि गये बाहर। ढेर लग गये। उसने कहा, अब करो क्या? कंबल बनवा मैं लोगों से कहता हूं, ध्यान कोई क्रिया नहीं है, ध्यान है डाले। फिर कोई पांच बजे के करीब जोर से चिल्लायाः अक्रिया। उनसे मैं कहता हूं, बस बैठ जाओ, कुछ न करो। वे बचाओ, बचाओ! तो पत्नी घबड़ाकर उठी, उसने कहा हुआ कहते हैं, कुछ तो बता दें, आलंबन तो चाहिए। कुछ क्या? उसने कहा, मर जाएंगे; इतने कंबल खरीदेगा कौन? / आधार-राम-राम जपें? माला फेरें? जिन लोगों ने माला व्यस्त आदमी विचारों में ही व्यस्त हो जाता है। स्वभावतः फेरना और राम नाम जपना निकाला है, उन लोगों ने कारण से ही उसकी घबड़ाहट, इतने कंबल इकट्ठे हो गये होंगे! होते ही जा | निकाला है। ये वे लोग हैं, जो बिना किये नहीं रह सकते। दुकान रहे, होते ही जा रहे, एक राशि आकाश छूने लगी होगी, तो न करेंगे, तो माला जपेंगे। अखबार न पढ़ेंगे, तो गीता पढ़ेंगे। | घबड़ाया कि मर गये, दिवाला निकल जाएगा। बिकेंगे कहां? लेकिन पढ़ेंगे! थोड़ी देर को खाली न छूटेंगे कि कुछ भी न हो; खरीदेगा कौन? इतने तो आदमी भी नहीं हैं। माला जो फेर रहा मिट जाए सारा कृत्य का संसार, खो जाए दूर, सिर्फ होना रह | है, वह भी व्यस्त हो रहा है। राम-राम, राम-राम जप रहा है, जाए। श्वास चले, हृदय धड़के, बोध रहे, बस काफी है। वे वह भी व्यस्त हो रहा है। | पूछते हैं, कुछ आलंबन दे दो। आलंबन का मतलब है, कुछ ध्यान का अर्थ है, करने से होने पर रूपांतरण। करने को करने के लिए, कुछ तो दे दो, माला ही सही! उसको ही, माला छोड़ना और होने में डूबना। 'पूछते हो आगे क्या करें?' 118 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340137
Book TitleJinsutra Lecture 37 Karna hai Sansar Hone Hai Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size45 MB
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