SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन सूत्र भाग : 2 गयी भैंस, कर ले क्या करता है। उसी में, उसी में सिरफुटौअल हो, और या भविष्य है, जो अभी हुआ ही नहीं। कहीं भी नहीं है, हो गयी। अभी किसी ने खेत खरीदा नहीं है! अभी भैंस खरीदी नहीं दबाव के बीच चित्त पैदा होता है। गयी है। इस अवस्था का नाम चित्त है। तुम जरा खयाल करना, चित्त-निरोध का अर्थ है, इन दोनों पाटों को हटा देना। अतीत कितना चित्त तुम्हारे भीतर है! जो जा चुका, उसको तुम संगृहीत को जाने दो; जो गया, गया। और जो आया नहीं, नहीं आया। किये बैठे हो, अब वह कहीं भी नहीं है। और जो नहीं हुआ, तुम बस वर्तमान में रह जाओ। वर्तमान में चित्त नहीं होता। इस उसकी योजना बना रहे हो। वह भी अभी कहीं नहीं है। इन दो के क्षण कहां है चित्त? जरा-सी तरंग उठी भविष्य की, आया। बीच तुम दबे हो, तुम्हारी आत्मा दबी है—पिस रही है। दो जरा-सी याद आयी अतीत की, आया। तो स्मृति में और पाटन के बीच में साबित बचा न कोय।। | कल्पना में है चित्त। ठीक वर्तमान के क्षण में चित्त नहीं है। ठीक एक तुम्हारा अतीत है, जो जा चुका। किसी ने कभी गाली दी वर्तमान के क्षण में चित्त का निरोध है। महावीर कहते हैं, जहां थी बीस साल पहले, वह अभी भी ताजी है तुम्हारे भीतर। शायद चित्त-निरोध होता है, वहीं आत्मा विशुद्ध होती है। जब चित्त वह आदमी भी जा चुका हो। वह गाली तो निश्चित ही जा चुकी | नहीं रहा, तो आत्मा में कोई अशुद्धि न रही। चित्त आत्मा का है। शायद वह आदमी क्षमा भी मांग चुका हो। मैल है। चित्त आत्मा की अशुद्धि है। मल्ला नसरुद्दीन और उसके मित्र में कछ झंझट हो गयी थी। 'जेण तच्च विवज्झेज्ज'—जिसने तत्व को जाना। या जो वर्षों बीत गये उस बात को, लेकिन जब भी मिलना होता है तो तत्व को जानना चाहता है। 'जेण चित्तं णिरुज्झदि'-उसे चित्त मुल्ला उसे याद दिलाता है कि खयाल रखना! आखिर एक दिन का निरोध करना पड़ा। उसे चित्त को त्याग देना पड़ा। सत्य को उसने कहा कि देखो मुल्ला, कितनी बार तुमसे क्षमा मांग चुका, चाहते हो, तो चित्त को दांव पर लगा दो। शास्त्र पढ़ने से यह न और कितनी बार तुम क्षमा कर चुके, और कितनी बार तुम मुझसे होगा। शास्त्र पढ़ने से तो उल्टा चित्त और बढ़ेगा। शास्त्र भी कह चुके कि ठीक है, भुला दी बात, क्षमा कर दी, फिर तुम याद तुम्हारे भीतर तरंगें लेने लगेगा। संसार तो तरंगें लेगा ही, शास्त्र क्यों दिलाते हो? मुल्ला ने कहा, मैंने भला दी, वह ठीक है, भी तरंगें लेने लगेगा। 'जेण अत्ता विसज्झेज्ज' और जिसने लेकिन तुम मत भूल जाना, इसीलिए याद दिलाता हूं। आत्मा की विशुद्धि जान ली चित्त के निरोध से, "तं णाणं लेकिन जब दूसरे को याद दिलानी पड़े, तो खुद भी याद रखनी जिणसासणे'- इसी को जिनों ने ज्ञान कहा है। ही पड़ती है। भूलोगे कैसे? अतीत है, उसे हम सम्हाले हैं। यह ज्ञान की बड़ी अदभुत व्याख्या हुई। इस ज्ञान का, जिसे अब कहीं भी नहीं है, सिर्फ स्मृति में पड़े रह गये दाग, सिर्फ तुम ज्ञान कहते हो, उससे कुछ संबंध न रहा। जो विद्यापीठ में स्मृति पर खिंची रह गयी कुछ रेखाएं। अस्तित्व में उन रेखाओं | मिल जाता है, वह ज्ञान नहीं। जो आत्मपीठ में मिलता है वही की अब कोई भी जगह नहीं है। अस्तित्व अतीत का कोई हिसाब ज्ञान। जो बाहर मिल जाता है, सूचना मात्र है। जो भीतर जगता ही नहीं रखता। अस्तित्व का कोई इतिहास नहीं है। अस्तित्व है, वही ज्ञान है। जो दूसरे से मिल जाता है, उधार है, उच्छिष्ट सदा ताजा और नया है। वह अतीत को ढोता ही नहीं। कल जो | है। जो तुम्हारी आत्मा में ही निखरता है, वही ज्ञान है। बीत गया, उसका उसे कुछ पता ही नहीं। महावीर ने सब भांति भीतर जाने का, अंतर्यात्रा का निर्देश पूछो फूलों से, पूछो वृक्षों से, पूछो बादलों से, पूछो छोटे-छोटे किया है। और जब तक यह न हो, तब तक तुम अंधविश्वास के बच्चों से, जो अभी अस्तित्व के बहुत करीब हैं। अभी नाराज था बाहर न हो सकोगे। बच्चा और कहता था कभी तुमसे बोलेंगे न, और क्षणभर बाद इक न इक दर पर जबीने-शौक घिसती ही रही तुम्हारी गोदी में बैठा है। भूल ही गया! याद ही न रही! बच्चा आदमीयत जुल्म की चक्की में पिसती ही रही अभी निर्मल है। अभी चित्त बहुत सघन नहीं। तो या तो तुम्हारे तुमने बहुत दरवाजे खोजे। चित्त में अतीत है, जा चुका, नहीं कहीं है अब, बस तुम्हीं ढो रहे इक न इक दर पर जबीने-शौक घिसती ही रही। 150 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340134
Book TitleJinsutra Lecture 34 Gyan hai Param Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy