________________ ज्ञान है परमयोग - JaiIAN - चित्त बार-बार इन्हीं योजनाओं में घूमता है। तो उन्हें पता ही नहीं है कि उनके पहले भी एक मनीषी ने इस शब्द चित्त का अर्थ है, वस्तुओं से चेतना का संबंध। और जब तक का उपयोग किया है। पश्चिम के मनोवैज्ञानिक एक शब्द का चित्त है तब तक संबंध बनते चले जाते हैं। तुम राह पर चल रहे उपयोग करते हैं जो ठीक महावीर के बहुचित्तवान का रूपांतर हो, पास से एक कार गुजर गयी, तुम्हारे ही पीछे महावीर भी चल है। वे कहते हैं, मनुष्य ‘पोलिसाइकिक' है। बहुचित्तवान।। रहे हैं, वह कार उनके पास से भी गुजरी। लेकिन तुम्हारा चित्त जिन्होंने भी मन को बहुत गहरे में खोजा है, उन्हें यह सत्य मिल पैदा कर जाएगी कार, महावीर में कुछ पैदा न होगा। कार दोनों | ही जाएगा कि तुम हजारों चित्त पैदा कर रहे हो। चित्त यानी के पास से गुजरी। तुम्हारे पास से गुजरी इतना ही नहीं, गुजरते ही | तरंगें। तरंगें ही तरंगें। उन तरंगों के कारण तुम बाहर भागे जाते चित्त पैदा हुआ, तुम जुड़े, तुम कार से लगे। कार तो चली गयी, | हो। उन तरंगों के कारण तुम घर नहीं लौट पाते। रात तुमने कभी तुम्हारा चित्त पीछा करने लगा। तुमने सोचा, ऐसी कार मेरी हो! देखा, अगर बहुत चित्त उठ रहे हों, बहुत तरंगें उठ रही हों, तो कैसे खरीद लं? क्या उपाय करूं? महावीर के पास से भी वही नींद तक संभव नहीं होती। अगर तुमने लाटरी का टिकिट कार गुजरी, चित्त पैदा नहीं हुआ। कार गुजर गयी, महावीर गुजर खरीदा है, तो उस रात नींद नहीं आती। चित्त में तरंगें उठने गये, दोनों के बीच कोई संबंध न बना। चित्त का अर्थ है, | लगीं। अभी लाटरी मिली नहीं है। वस्तुओं से संबंध बन जाना। तुम प्रतिपल वस्तुओं से संबंध बना मैंने सुना है, एक अदालत में मुकदमा था। दो आदमियों ने रहे हो। तुम बहुचित्तवान हो। एक-दूसरे का सिर खोल दिया था। और मजिस्ट्रेट ने पूछा कि महावीर पहले मनीषी हैं, जिन्होंने इस शब्द का उपयोग किया, हुआ क्या? किस बात से तुम लड़े? और तुम दोनों पुराने दोस्त 'बहचित्तवान।' फिर यह शब्द खो गया। उसके पहले भी कभी हो। उन्होंने कहा, वह भी ठीक है। हम दोनों पराने दोस्त हैं, न था। उसके पहले भी किसी ने ऐसा न कहा था कि आदमी में लेकिन बात ही ऐसी आ गयी। कुछ शरमाने लगे दोनों बात बहत चित्त हैं। उसके पहले ऐसी ही धारणा थी कि आदमी में एक बताने में। मजिस्ट्रेट ने कहा, तुम कहो, शरमाओ मत। तो उस चित्त है। | पहले आदमी ने कहा कि जरा मामला ऐसा है, शरमाने जैसा ही महावीर ने कहा, एक से काम न चलेगा, आदमी भीड़ है। है, अब हो गया! मैंने इससे कहा कि मैं एक खेत खरीद रहा हूं। आदमी के मन में जितनी वस्तुओं से संबंध बनाने का राग है, और यह बोला कि खरीद तो मैं भी रहा हूं, एक भैंस। मैंने कहा, / कार से संबंध बना, एक चित्त पैदा हआ। देख, भैंस मत खरीद, अपनी दोस्ती टिकेगी नहीं। कहीं खेत में मकान से संबंध बना, दूसरा चित्त पैदा हुआ। धन से संबंध घुस जाए, कुछ से कुछ हो जाए। अगर खरीदता ही है तो बना, तीसरा चित्त पैदा हुआ। सोच-समझकर खरीदना। तो यह क्या बोला! यह बोला कि अनंत चित्त हम पैदा कर रहे हैं। चित्त प्रतिपल उठ रहे हैं, तरंगों जाओ भी भई, भैंस तो भैंस है। अब उसके पीछे कोई चौबीस की भांति, जैसे सागर में लहरें उठ रही हैं। जैसे सागर में लहरें | घंटे थोड़े ही लगा रहूंगा। कभी तुम्हारे खेत में घुस भी गयी तो उठती हैं हवा के थपेड़ों से, ऐसे ही वस्तुओं से उठती हुई तरंगें घुस भी सकती है। तो मैंने इससे कहा कि मत खरीद भैंस, खेत हमारे मन में चित्त को पैदा कर जाती हैं। तो मैंने खरीदने का पक्का ही कर लिया है। तो इसने मुझसे कहा, महावीर ने कहा, मनुष्य बहचित्तवान है। फिर ढाई हजार साल त ही मत खरीद खेत. भैंस का तो मैंने बयाना भी दे दिया है। बस तक इस शब्द का किसी ने कुछ चिंतन नहीं किया। अभी पश्चिम | बात बढ़ गयी। में मनोवैज्ञानिक फिर इस शब्द को खोज लिये हैं। उनको महावीर | तो मैंने कहा अगर खरीदना ही है तो खरीद ले, लेकिन ध्यान का कुछ भी पता नहीं है। महावीर बहुत ही अपरिचित हैं पश्चिम रख, मेरे खेत में न घुसे, और मैंने ऐसा रेत पर खेत खींचकर को। पश्चिम ने थोड़े शब्द पतंजलि के सुने हैं। बुद्ध के काफी बताया कि यह रहा मेरा खेत। इसमें कभी तेरी भैंस न घुसे, शब्द सुने हैं। उपनिषद और वेद भी पहुंच गये हैं। लेकिन इसका खयाल रखना। इसने क्या किया, इसने एक लकड़ी से महावीर पश्चिम के सामने बिलकुल अपरिचित हैं। महावीर का ऐसा इशारा करके रेत में निशान बना दिया और कहा, यह घुस 149 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org