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________________ जिन सत्र भाग: E उसे खोज लाओ। जिस दिन वजीर उस गांव में पहुंचे जहां वह बाजार में सिर के पीछे तकिया लगाये, दोनों हाथों से संभाले भिखमंगा भीख मांग रहा था, एक छोटे-से होटल के सामने जहां चला जा रहा है। धीरे-धीरे लोग इकट्ठे हो गये। भीड़ जमा हो जआरी ताश खेल रहे थे वह भीख मांग रहा था गयी। फिर किसी ने कहा कि मुल्ला, माजरा क्या है? यह कर ठीकरे में। क्या रहे हो? इस तरह किसी को चलते नहीं देखा-तकिया राजमहल से आया रथ रुका। वजीर नीचे उतरा। सूरज की सिर से लगाये, दोनों हाथों से पकड़े, कर क्या रहे हो? मुल्ला ने किरणों में चमकता हुआ स्वर्ण-रथ! यह वर्षों का भिखमंगापन कहा, करूं क्या, भाई! डाक्टर ने कहा हृदय का दौरा पड़ा है, जैसे एक क्षण में खो गया। वजीर उतरा और उसके पैरों पर गिर तकिये से सिर मत उठाना। तो तकिये से सिर तो उठा ही नहीं गया, और कहा कि आप चलें, पिता ने याद किया है। अभी उस सकता हूं। भिक्षापात्र में जो कुछ थोड़े-से पैसे पड़े थे-एक-एक पैसे को जिन्होंने शास्त्र से सूचनाएं ली हैं, उनकी सूचनाएं ऐसी ही हैं। मांग रहा था, उसने भिक्षापात्र उसी समय नीचे गिरा दिया। वे तकिया बांध लेंगे सिर से, लेकिन करेंगे तो वही जो कर सकते उसकी आवाज बदल गयी। उसने कहा कि जाओ, मेरे लिए हैं। करेंगे तो वही जो उनके अनुभव में सही मालूम पड़ रहा है। ठीक वस्त्रों का इंतजाम करो। जाओ, मेरे लिए ठीक स्नानगृह दूसरे के अनुभव से हम ज्यादा से ज्यादा धोखा खा सकते, धोखा, का इंतजाम करो। अभी मांगता था भीख, तो आवाज में बड़ी दे सकते, लेकिन दूसरे का अनुभव हमारा जीवंत सत्य नहीं दयनीयता थी। उस आवाज और इस आवाज में कोई हिसाब ही बनता है। न था लगाना। कोई पहचान ही न सकता यह उसी भिखारी की तो महावीर शास्त्रज्ञान को ज्ञान नहीं कहते। जिससे तत्व का आवाज है। और जब वह बैठ गया रथ पर, तो उसकी आंखों की बोध होता है, जिससे सत्य की प्रतीति होती है। किससे होती है चमक...एक क्षण में सारा भिखमंगापन खो गया। | सत्य की प्रतीति? सत्य कहीं लिखा थोड़े ही है। तुम्हारे होने का तो तुम्हें याद भी आ जाए तुम्हारी महिमा, तुम्हारे स्वरूप की नाम सत्य है। तुम्हारे अस्तित्व का नाम सत्य है। सत्य कहीं थोड़ी-सी झलक भी, स्वप्न ही सही-अंधेरी से अंधेरी रात में बाहर पड़ा थोड़े ही है कि उसे खोजना है, उघाड़ना है। तुम लिये भी तुम्हें सुबह का स्वप्न भी आ जाए तो रात टूटने लगी। फिर रहे हो। अपने प्राणों में लिये फिर रहे हो। और जब तक इसलिए महावीर ने ये सूत्र कहे हैं तुम्हारी आंखें बाहर भटकती रहेंगी, तुम वंचित रहोगे। आंख को 'जिससे तत्व का ज्ञान होता है, चित्त का निरोध होता है, तथा घर लौटाना है। आंख बंद करनी है, भीतर उतरना है सीढ़ी दर आत्मा विशुद्ध होती है, उसी को जिन-शासन ने ज्ञान कहा है।' सीढ़ी, एक-एक सोपान। तुम्हारे ही गहन में, तुम्हारी ही गहराई जेण तच्चं विवुज्झेज्ज, जेण चित्तं णिरुज्झदि। में सत्य पड़ा है। डुबकी लगानी है। यह हीरा कहीं खोजने नहीं जेण अत्ता विसुज्झेज्ज, तं णाणं जिणसासणे।।। जाना है, यह तो तुम्हारे ही अंतर्तम-सागर में पड़ा है। उस डुबकी जिससे आत्मा विशद्ध हो, जिससे चित्त का निरोध हो, जिससे लगाने का नाम ही है चित्त का निरोध। सत्य का बोध हो, उसे ही जिन्होंने जाना उन्होंने ज्ञान कहा है। चित्त का अर्थ है, जो बाहर ले जाए। चित्त का अर्थ है, शास्त्र से मिल जाए जो ज्ञान, काम का नहीं। आत्मा में डुबकी बहिर्गमन। चित्त का अर्थ है ऐसे विचार, जो बाहर की तरफ लगाकर मिले, तो ही काम का है। शास्त्र से मिला ज्ञान तो बड़ा | तरंगायित करें। बैठे हैं, सोचने लगे धन का-मिल जाए खूब ऊपर-ऊपर है। उससे तुम बदलते नहीं, बदलते हुए मालूम भी धन...विचार शुरू हो गये। बैठे हैं, सोचने लगे हो जाएं किसी नहीं पड़ते। उससे तुम्हें बदलने का धोखा भर पैदा हो जाता बड़े पद पर...यात्रा शुरू हो गयी। कितनी बार नहीं तुमने अपने है—एक प्रवंचना। जिस सत्य की प्रतीति तम्हें नहीं हुई, उस मन में सोचा कि राष्ट्रपति हो गये। कितनी बार नहीं तमने अपने सत्य को तुम अगर पूरा भी करते रहो, तो भी तुम्हारी आत्मा से मन में सोचा कि कुबेर हो गये। कितनी बार तुमने अपने मन में उसका कोई तालमेल नहीं होता। | ऐसी योजनाएं नहीं बनायीं! फिर चौंककर खुद हंसे हो अपने मन मैंने सुना है, एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन को लोगों ने देखा बीच में कि यह भी क्या कर रहा हूं। क्या सार है? लेकिन फिर भी Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340134
Book TitleJinsutra Lecture 34 Gyan hai Param Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size41 MB
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