________________ PREMIER ज्ञान है परमयोग कहा है।' और तुम अपना माथा न मालूम कितने दरवाजों पर घिस चुके कह रहा हूं, वह तुमने सुना। इसको ही तुम सब कुछ मत समझ हो। तुमने अपने प्रेम को न मालूम कितने चित्तों में उलझाया है। लेना। इससे इशारे लेना जरूर, इससे उत्साह लेना जरूर, इससे कभी मंदिर, कभी मस्जिद, कब अपने घर आओगे? प्रेरणा लेना जरूर, इससे प्यास लेना जरूर, लेकिन इसी को सब इक न इक दर पर जबीने-शौक घिसती ही रही कछ मत समझ लेना। ये इशारे ऐसे ही हैं जैसे मील के पत्थरों पर आदमीयत जुल्म की चक्की में पिसती ही रही निशान बना होता है तीर का-और आगे।। आदमी पिसता ही रहेगा, तुम पिसने की ही तैयारी कर रहे हो। मील के पत्थर को छाती से लगाकर मत बैठ जाना। मील का अहले-बातिन इल्म से सीनों को गरमाते रहे पत्थर तो यात्रा पर बढ़ाने को है, सूचना मात्र है। मंजिल नहीं है। जिहल के तारीक साये हाथ फैलाते रहे कितना ही प्यारा मील का पत्थर मिल जाए, तो भी उसे सीने से -और तथाकथित ब्रह्मज्ञानी बातों से लोगों के हृदय को | लगाकर मत बैठ जाना, उससे मिली गर्मी काम न आयेगी। गरमाते रहे। उससे मिली गर्मी धोखा हो जायेगी। अहले-बातिन इल्म से सीनों को गरमाते रहे 'जिससे जीव राग-विमुख होता है, श्रेय में अनुरक्त होता है, –लेकिन वह गर्मी ज्यादा देर टिकने वाली नहीं। वह तुम्हारे | और जिससे मैत्री-भाव बढ़ता है, उसी को जिन-शासन ने ज्ञान ईंधन से नहीं आती। अहले-बातिन इल्म से सीनों को गरमाते रहे जेण रागा विरज्जेज्ज, जेण सेए सु रज्जदि। बातें तो बहुत चलती रहीं ब्रह्मज्ञान की। वेदों की कोई कमी जेण मित्ती पभावेज्ज, तं णाणं जिणसासणे।। है? शास्त्रों की कोई कमी है? कितने लोग वेद को दोहराते रहे एक-एक शब्द बहुत ध्यानपूर्वक भीतर लेना। तोतों की भांति! और थोड़ी-बहुत गर्मी भी आ जाती है दोहराने 'जिससे जीव राग-विमुख होता है...।' से, लेकिन टिकती नहीं। जब तक तुम्हारे भीतर की आग न ज्ञान की कसौटी दे रहे हैं महावीर। इसको कसते रहना। अगर जले, जब तक तुम्हारी आत्मा प्रज्वलित न हो, तब तक यह उधार तुमने बहुत जान लिया और वह जाना हुआ तुम्हें राग से विमुख गर्मी काम आने वाली नहीं। नहीं करता, तो महावीर कहते हैं, वह जाना हुआ थोथा है, धोखा अहले-बातिन इल्म से सीनों को गरमाते रहे है, उधार है, बासा है। उसे छोड़ दो। इससे तो जानना बेहतर कि जिहल के तारीक साये हाथ फैलाते रहे तुम नहीं जानते हो। कम से कम सचाई तो होगी। कसौटी क्या है और अंधेरा बढ़ता ही गया, अज्ञान बढ़ता ही गया। वेद भी | ज्ञान की ? जिससे राग-विमुखता पैदा हो। बढ़ते गये, शास्त्र भी बढ़ते गये और अज्ञान भी बढ़ता गया। राग को समझें। चमत्कार है! आदमी ने जितना जाना, उतना आदमी अज्ञानी हो राग का अर्थ होता है, किसी भी वस्तु, किसी भी व्यक्ति के गया। चमत्कार है! आज से ज्यादा गहन अज्ञान कभी भी न साथ ममत्व का भाव बांधना; कहना मेरा। मेरा मकान, तो राग था। और आज से ज्यादा ज्ञान कब रहा? रोज नया ज्ञान पैदा हो हो गया। मकान में रहने में कुछ अड़चन नहीं है, 'मेरे' में मत रहा है, रोज नये शास्त्र रचे जा रहे, रोज नयी सूचनायें अवतरित रहना। मकान में खूब रहना, कुछ हर्जा नहीं है। लेकिन मकान हो रही हैं, लेकिन आदमी का अंधेरा मिटता नहीं। जरूर कहीं को मकान रहने देना, तुम तुम रहना, दोनों के बीच में 'मेरे' का भूल हो रही है। सेतु मत बनाना। जिसे हम ज्ञान समझते हैं वह ज्ञान नहीं है। सूचना मात्र है। चित्त का अर्थ है, जो तुम्हारा नहीं है उसे अपना बनाने की अगर सूचना की तरह ही उसे लो, तो खतरा नहीं है। ज्ञान की अभीप्सा, आकांक्षा। और राग का अर्थ है, जो तुम्हें मिल गया तरह लिया, तो खतरा हो जाएगा। मैं तुमसे बोल रहा हूं, जो मैं है, उसे अपना मान लेने की स्थिति। कहा, मेरा मकान, मेरी तुमसे कह रहा हूं वह मेरे लिए ज्ञान है। कहते ही तुम्हारे लिए पत्नी, मेरा पति, मेरा भाई, मेरी बहन। जहां मेरा आया, मम सूचना हो गया। जो मैं कह रहा हूं, वह मैंने जाना, लेकिन जो मैं जहां आया, ममत्व आया, वहीं राग निर्मित हुआ। 151 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org