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________________ दर्शन, ज्ञान, चरित्र-और मोक्ष / Pain परिणाम हिरोशिमा में देखा, नागासाकी में देखा: एक लाख पचाओगे, पुष्ट होओगे, तो चारित्र्य उत्पन्न होगा। आदमी क्षणभर में राख हो गए। एक छोटे-से परमाणु को | और मोक्ष चारित्र्य की प्रभा है। चरित्रवान मुक्त है। चरित्रहीन जिसको अब तक किसी ने देखा नहीं है, इतने क्षुद्र के भीतर इतनी बंधा है। चरित्रवान की जंजीरें गिर गयीं। ऊर्जा छिपी है! तो आत्मा के भीतर कितनी ऊर्जा न छिपी होगी! | लेकिन अभी तो तुमने जो चरित्रवान देखे हैं, तुम उनको जरा आत्मा के बंधन को हटाना जरूरी है। जैसे अणु के बंधन को पाओगे कि उन्होंने नयी जंजीरें बना ली हैं। तो तुम्हारे चरित्रहीन हटाया तो इतनी विराट ऊर्जा प्रगट हुई-आत्मा के बंधन हट भी बंधे हैं, तुम्हारे चरित्रवान भी बंधे हैं। और अकसर तो बड़ा जायें तो जो परम ऊर्जा प्रगट होती है उसी का नाम महावीर ने व्यंग्य और बड़ी उलटी बात दिखायी पड़ती है: चरित्रहीनों से परमात्मा कहा है। वह आत्म-विस्फोट है। ज्यादा बंधे तुम्हारे चरित्रवान हैं। चरित्रहीनों से भी बंधे! बंधन हटाने हैं। बंधन आकांक्षाओं के, आशाओं के हैं। बंधन चरित्रहीन में भी थोड़ी-बहुत स्वतंत्रता मालूम पड़ती है। मूर्छा के हैं। तो मूर्छा को तोड़ने में लग जाओ। चरित्रवान तो बैठा है मंदिर में, स्थानक में, पूजागृह में बंद! ऐसा सारे विचार का महावीर का एक संक्षिप्त भाव है : मूर्छा को घबड़ाया, डरा! लेकिन कहीं चूक हो गयी है। चरित्र की प्रभा तोड़ने में लग जाओ। जो भी करो अपने को जगाकर करो। राह मोक्ष है। जो मुक्त न कर जाये, वह चरित्र नहीं। पर चलो तो जागकर चलो। भोजन करो तो जागकर करो। तुम दर्शन से शुरू करना : किसी दिन मोक्ष की प्रभा उपलब्ध किसी का हाथ हाथ में लो तो जागकर लो। और सदा ध्यान रखो होती है। निश्चित होती है। यह जीवन का ठीक गणित है। कि बीच में सपना न आए। थोड़े दिन सपनों को ऐसे छांटते रहे, और महावीर जो भी कह रहे हैं, वह वैज्ञानिक संगति का सत्य हटाते रहे, हटाते रहे तो जल्दी ही तुम पाओगे कभी-कभी | है। उसमें एक-एक कदम वैज्ञानिक है। जैसे सौ डिग्री पानी क्षणभर को सपने नहीं होते और झलक मिलती है। वही झलक गरम करो, भाप बन जाता है-ऐसे महावीर के वचन हैं : दर्शन ज्ञान बनेगी। फिर उन झलकों को इकट्ठी करते जाना। वह अपने से ज्ञान, ज्ञान से चरित्र, चरित्र से मोक्ष! आप इकट्ठी होती चली जाती हैं। ज्ञान एक दफा हो तो कोई भूल नहीं सकता। वह तो हमें, दूसरों की बातें हैं, इसलिए याद रखनी आज इतना ही। पड़ती हैं। जो अपने में घटता है उसे विस्मरण करने का उपाय नहीं है। वह तो संगृहीत होता चला जाता है, सघन होता चला जाता है। और जैसे बूंद-बूंद गिरकर सागर बन जाता है, ऐसे बूंद-बूंद ज्ञान की गिरकर आचरण निर्मित होता है। नाणेण जाणई भावे, दंसणेण य सद्दहे। चरित्तेण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झई।। 'ज्ञान से जानना होता है; दर्शन से श्रद्धा, श्रद्धा से चरित्र, चरित्र से शुद्धि...' नादंसणिस्स नाणं-दर्शन के बिना ज्ञान नहीं। नाणेण विणा न हुंति चरणगुणा-ज्ञान के बिना चरित्र नहीं। अगुणिस्स नत्थि मोक्खो-चरित्र के बिना मोक्ष कहां? नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं-और मोक्ष के बिना आनंद कहां? उस परमानंद को चाहते हो तो दर्शन के बीज बोओ। दर्शन के बीज बोओ-ज्ञान की फसल काटोगे। उस ज्ञान की फसल को 551 Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.340125
Book TitleJinsutra Lecture 25 Darshan Gyan Charitra aur Moksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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