________________ जिन सूत्र भागः1 लिए था? और प्रेयसी भी यही सोचने लगती है कि इस आदमी ढह गया वह तो जुटाकर में जो भगवत्ता देखी थी वह कहां गई। इसके चरणों में सिर रखने ईंट, पत्थर, कंकड़ों को का मन हुआ था तो वे चरण सब बनावटी थे। वह सब एक अपनी शांति की पाखंड था? कुटिया बनाना कब मना है? जल्दी ही कांटे उभर आते हैं, फूल विदा हो जाते हैं। जल्दी ही शुद्ध दर्शन से जो दिखायी पड़ता है, यथार्थ, उस यथार्थ से ही यथार्थ प्रगट होता है और सपने हट जाते हैं। | अपनी जीवन की कुटिया को बना लेने का नाम चारित्र्य है। और ऐसा प्रेमी और प्रेयसी के बीच होता है, ऐसा नहीं—ऐसा | स्वप्न से जीवन को बनाना और सत्य से जीवन को हमारे हर संबंध में होता है। ऐसे जीवन के हर मोड़ पर हम उन बनाना-बस यही जीवन को बनाने के दो ढंग हैं। चीजों को देख लेते हैं जो हैं नहीं। हम उन इंद्रधनुषों को तान लेते ढह गया वह तो जुटाकर हैं जो कहीं भी नहीं हैं। और फिर जब इंद्रधनुष नहीं पाते हैं तो रोते ईंट, पत्थर, कंकड़ों को हैं, चीखते हैं, विषाद से भरते हैं, दुखी होते हैं, चिंतित होते हैं। एक अपनी शांति की दर्शन का अर्थ है : जो है उसे बिना किसी आशा से समिश्रित कुटिया बनाना कब मना है? किए, बिना किसी कल्पना में डुबाये, बिना कैसा होना चाहिए है अंधेरी रात पर उसको बीच में लाये, देख लेने की कला! दीवा जलाना कब मना है? आंख साफ हो तो तुम कभी उलझोगे न। आंख साफ हो तो लेकिन यह किसी बाहर के दीये के जलाने की बात नहीं यथार्थ से संबंध रहेगा; अयथार्थ तुम्हें बांधेगा न। और आंख है-भीतर के दीये को जलाने की बात है। और यह दीया जलने साफ हो, तो साफ आंख से जो बोध संग्रहीत होता है उसका नाम लगता है जैसे-जैसे तुम आंख को साफ करके देखने लगते हो। ज्ञान। साफ आंख से संगृहीत बोध का अंतिम जो परिणाम होता | तो क्या करो? है, उसका नाम चारित्र्य। और चारित्र्य का जो आत्यंतिक फल है | महावीर का शब्द है-सामायिक। पतंजलि का शब्द वह मोक्ष। है-ध्यान। बुद्ध का शब्द है-सम्यक स्मृति। जीवन को है अंधेरी रात पर जागरण से भरो! जो भी करते हो, करते समय स्मरण रखो कि दीवा जलाना कब मना है? सपनों को हटाते चलो। पुरानी आदतें हैं, वे बार-बार बीच में आ रात अंधेरी है। यथार्थ कठोर है। लेकिन दीये के जलाने की जायेंगी। उनको हटाते चलो।। कोई मनाही नहीं है। तेरी दुआ है कि हो तेरी आरजू पूरी है अंधेरी रात पर मेरी दुआ है कि तेरी आरजू बदल जाए। दीवा जलाना कब मना है? तुम तो चाहते हो कि तुम्हारी आकांक्षाएं पूरी हो जायें, लेकिन -आंख के दीये को जलाओ! दर्शन को जगाओ! महावीर, बुद्ध, कृष्ण चाहते हैं तुम्हारी आकांक्षाएं बदल जायें। कल्पना के हाथ से कमनीय आकांक्षाएं पूरी करना चाहोगे तो सपनों में रहोगे। आकांक्षा जो मंदिर बना था बदल जाए, आकांक्षा न हो जाए, शून्य हो जाए–तो आकांक्षा भावना के हाथ ने जिसमें के नीचे से जो शक्ति बचेगी, जो आकांक्षा में नियोजित थी, मुक्त वितानों को तना था होगी, वह तुम्हारे जीवन में विस्फोट हो जायेगा; जैसे अणु को स्वप्न ने अपने करों से हम तोड़ते हैं, तो छोटे-से अणु में जो आंख से भी दिखायी नहीं था जिसे रुचि से संवारा पड़ता, इतनी ऊर्जा प्रगट होती है। अणु के जो परमाणु हैं वह स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, एक-दूसरे को बांधे हुए हैं। जब उन्हें हम अलग करते हैं तो जो रसों से जो सना था शक्ति उनको बांधे थी, वह मुक्त होती है। उस मुक्त शक्ति का 550] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org