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________________ R SDIWANDERL जिन सूत्र भागः 11 ST गलत नहीं होते। इतना तुम्हें स्मरण रहे तो तुम्हारे भीतर संप्रदाय | तरफ देख रहा है; अंतर्मुखी हों तो अंदर की तरफ देख रहा है। का भाव पैदा नहीं होगा। | बहिर्मुख, अंतर्मुख, दोनों से मुक्त हों तो परमात्मा स्थित हुआ, संप्रदाय का भाव इस तरह पैदा होता है। इन सूत्रों को जो स्वस्थ हुआ, अपने में लौट आया। इस अवस्था को महावीर पढ़ेगा...। जैन पढ़ते रहे हैं। तो जब वे देखते हैं किसी को मंदिर | मोक्ष कहते हैं। की तरफ जाते कृष्ण के, तब उनको लगता है, बेचारा भटका! उनको याद आता है महावीर का सूत्र कि राग का अंश है भक्ति! आज इतना ही। और यह आदमी राग में पड़ा है। नहीं, यह तुम सोचना ही मत। तुमने अपने लिए सोच लिया, काफी है। तुम्हें दूसरे की अंतर्व्यवस्था का कुछ भी पता नहीं है। तुम बस अपने लिए निर्णय कर लो, उतना बहुत। और वह निर्णय भी चलने के लिए हो, बैठे-बैठे सोचने के लिए नहीं। महावीर तुम्हें वहां ले जाना चाहते हैं जहां न कोई विचार रह जाता, न कोई भाव रह जाता, न कोई चाह रह जाती, न कोई परमात्मा रह जाता-जहां बस तुम एकांत अकेले अपनी परिपूर्णता शुद्धता में बच रहते हो! निधूम जलती है तुम्हारी चेतना! हर मंजर-ए-बुलंद भी अब पस्त हो चुका ऐ अर्श किस फजा में उड़ा जा रहा हूं मैं। ऊंचाइयां भी जहां नीचे छूट जाती हैं। हर मंजर-ए-बुलंद भी अब पस्त हो चुका ऊंचाइयां भी पीछे छूट गईं। ऊंचाइयां भी! नीचाइयां तो छूट ही गईं, ऊंचाइयां भी छूट गईं। अशुभ तो छूट ही गया, शुभ भी छूट गया। पाप तो छूटा, पुण्य भी छूटा। हर मंजर-ए-बुलंद भी अब पस्त हो चुका ऐ अर्श किस फजा में उड़ा जा रहा हं मैं। -और मैं किस आकाश में उड़ रहा हूं! महावीर उस आकाश को आत्मा कहते हैं। अंत काश! परम आनंद है वहां! परम शांति! महावीर उस परम दशा को ही परमात्म-दशा कहते हैं। परमात्मा एक नहीं है महावीर के लिए, वरन प्रत्येक व्यक्ति की नियति है। हर व्यक्ति परमात्मा होने के मार्ग पर है। हर व्यक्ति परमात्मा हो रहा है; देर-अबेर होता चला जा रहा है। परमात्मा सृष्टि के प्रथम क्षण में नहीं है-परमात्मा प्रत्येक व्यक्ति की अंतिम उपलब्धि में है। उतने ही परमात्मा हैं जितनी आत्माएं हैं। फिर ये आत्माएं बहिर्मखी हों तो परमात्मा बाहर की 4681 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340121
Book TitleJinsutra Lecture 21 Jin Shasan arthat Aadhyatmik Jyamiti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size27 MB
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