SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सन अर्थात आध्यात्मिक ज्यामिति रास्तों की अलग-अलग व्यवस्था है। और प्रत्येक ने चेष्टा करीब-करीब आओगे, वैसे पाओगे तुम रूपांतरित हुए, बदले, की है कि उसका रास्ता शुद्ध रहे। नये हुए, नया जन्म हुआ। तो महावीर साफ किये दे रहे हैं : एक-एक कदम पर जन्म है। एक-एक पल नये का आविर्भाव अण्णाणादो णाणी जदि मण्णादि सुद्ध संपओगादो है। उस आविर्भाव से ही प्रमाण मिलता है कि मैं जो चल रहा हूं हवदि त्ति दुक्खमोक्खं, परसमयरदो हवदि जीवो।। तो ठीक चल रहा हूं। लेकिन जो बैठे हैं उनके पास कोई उपाय भक्ति भी दुख-मुक्ति की तरफ नहीं ले जायेगी। | नहीं है कि जानें कौन ठीक है। तर्क जुटायेंगे, चिंतन करेंगे, ध्यान रखना, जब महावीर कहते हैं, भक्ति दुख-मुक्ति की शास्त्रों का मेल-ताल बिठायेंगे। तरफ नहीं ले जायेगी, तो यह सार्थक है वचन महावीर के मार्ग और तर्क वेश्या जैसा है। उसका कोई मूल्य नहीं है। तुम जैसा पर। यह वचन आत्यंतिक नहीं है। इस वचन से नारद गलत | उसका उपयोग करना चाहो वैसा कर ले सकते हो। अब महावीर नहीं होते। इस वचन से सिर्फ इतना ही साफ होता है कि महावीर कहते हैं, व्यवस्था के कारण परमात्मा को स्वीकार नहीं किया जा के मार्ग पर भक्ति की कोयल की कुहू कुहू नहीं है। और अगर सकता। हिंदू कहते हैं, व्यवस्था के लिए परमात्मा की जरूरत महावीर के मार्ग पर भक्ति की कोयल की कुहू-कुहू सुनाई पड़े, है, अन्यथा व्यवस्था कौन करेगा? विपरीत तर्क, लेकिन दोनों तो तुम भटक गये हो, तुम मार्ग पर हो नहीं। वहां भाव बंधन है; ठीक मालूम होते हैं अपनी-अपनी जगह। तुम सोच-सोचकर क्योंकि वहां दूसरे की मौजूदगी परतंत्रता है। बैठ-बैठकर, विचार कर-करके कभी न पहुंच पाओगे। उठो धिगस्तु परवश्यताम्। और चलो! -धिक्कार है परवशता को, परतंत्रता को। महावीर का मार्ग शुद्धतम मार्गों में से एक है। लेकिन उसे शुद्ध वहां परमात्मा प्रीतिकर नहीं है। उसकी मौजूदगी ही अपनी रखना। महावीर के मार्ग पर पूजा को मत ले आना, प्रार्थना को गुलामी का सबूत है। मत ले आना। महावीर अपने मार्ग की बात कर रहे हैं। अब यह तुम्हें बड़ा अगर पूजा-प्रार्थना में ही रस है तो पूजा-प्रार्थना के मार्ग हैं। कठिन लगता है। तुम्हें लगता है, अगर महावीर सही हैं तो नारद बजाय इसके कि तुम मार्ग को खराब करो, तुम्हीं उतरकर दूसरे गलत होने चाहिए। वहां तुम भूल कर रहे हो। तुम्हें लगता है, मार्ग पर चले जाना। अगर नारद सही हैं तो महावीर गलत होने चाहिए। तुम बड़ी दुनिया बड़ी धार्मिक हो जायेगी उस दिन, जिस दिन लोग जल्दी कर रहे हो। तुम जीवन की विराटता को नहीं देख पाते। सुलभता से एक मार्ग से दूसरे मार्ग पर जा सकेंगे; न उन्हें कोई जीवन इतना विराट है कि सब विरोधी मार्गों को अपने में समाए रोकेगा, न कोई बाधा डालेगा, न उन्हें कोई जबर्दस्ती अपने मार्ग हुए है। यहां महावीर भी सही हैं और नारद भी सही हैं। और | पर खींचेगा, न कोई कन्वर्ट करने को उत्सुक होगा और न कोई नारद के मार्ग पर चलकर भी लोग पहुंच गये हैं और महावीर के रोक लेने को उत्सुक होगा। अगर किसी के मन में उमंग उठी है मार्ग पर भी चलकर लोग पहंच गये हैं। | आनंद की, रस की, भाव की, तो वह मार्ग खोज लेगा भाव का। लेकिन एक बात तय है : जो भी चले हैं वे पहुंचे हैं। कुछ लोग | कोई बाधा नहीं डालेगा, न कोई उसे प्रभावित करेगा कि इस मार्ग हैं जो मार्गों के किनारे बैठकर विचार कर रहे हैं कौन सही है! पर आओ। क्योंकि कभी-कभी प्रभाव में तुम गलत मार्ग पर जा जीवन ऐसे ही बीता चला जाता है सोचने में, कौन सही है! सही सकते हो। कभी-कभी रोकने की वजह से गलत मार्ग पर रुक का भी कैसे पता चलेगा जब तक चलोगे नहीं? चलने से ही | सकते हो। पता चलेगा कौन सही है। क्योंकि जब करीब आने लगोगे | जीवन एक मुक्त हलन-चलन, रूपांतरण, बदलाहट की | जलस्रोत के, तो ठंडी हवाएं छूने लगेंगी। जब करीब आने सुविधा होनी चाहिए। लगोगे मंजिल के तो जीवन में आलोक आने लगेगा। जब करीब महावीर का मार्ग अपने-आप में पूर्ण सही है। पर उससे कोई आने लगोगे तो दर्शन ज्ञान बनेगा, ज्ञान चरित्र बनेगा। जैसे-जैसे और गलत नहीं होता। उससे विपरीत दिखाई पड़नेवाले भी 9 467 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340121
Book TitleJinsutra Lecture 21 Jin Shasan arthat Aadhyatmik Jyamiti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy