________________ जिन सूत्र भागः लेकिन महावीर कहेंगे, यह सारा खेल तो कल्पना का है। यह | समर्पण और संकल्प में समन्वय स्थापित कर लें? वही तो तमने तो राग का ही है। इसमें तो दूसरा अभी भी मौजूद है। माना कि | किया है। हो सकता है, यह सवाल ही नहीं है—वही हुआ है। शुद्ध हुआ, शुभ हुआ, किसी को हानि नहीं हो रही है इससे, | लेकिन समन्वय हो नहीं सकता। सिर्फ समझौता हो जाता है। तो लाभ ही हो रहा है लेकिन फिर भी, जहां तक लाभ हो रहा है | तुम दोनों बातों का तालमेल बिठा लेते हो। लेकिन उस तालमेल वहां तक हानि भी जुड़ी है। इसके भी पार जाना है। बिठालने में दोनों मार्ग भ्रष्ट हो जाते हैं। महावीर के लिए भाव भी बंधन है। इसलिए महावीर का मार्ग | ऐसा ही समझो, बैलगाड़ी से कोई यात्रा करता है, कोई कार से शुद्ध निर्भाव का मार्ग है। जैन भी जैन मंदिरों में जो कर रहे हैं, | यात्रा करता है, कोई रेलगाड़ी से, कोई हवाई जहाज से सब महावीर लौटें तो नाराज होंगे। कहेंगे, 'तुम यह क्या कर रहे | पहुंच जाते हैं। सबके मार्ग अलग हैं। रेलगाड़ी रेल की पटरियों हो? यही सब तो मैंने मना किया था।' महावीर की ही मूर्ति के पर दौड़ती है। बैलगाड़ी को पटरियों पर दौड़ने की कोई जरूरत सामने बैठे हैं साज-शृंगार लगाकर, कि हे प्रभु! महावीर से ही | नहीं है, ऊबड़-खाबड़ जंगली पथ से भी गुजर जाती है। कार बातें चल रही हैं। महावीर से बात चलाने का उपाय नहीं है। वहां से न गुजर सकेगी। अब ये सब रास्ते और ये सब वाहन अगर महावीर की मानते हो, अगर महावीर के मार्ग को शुद्ध | ठीक हैं। लेकिन तुमने अगर कहा, समन्वय स्थापित कर लें कि रखना है. तो महावीर से बातें चलाने का उपाय नहीं है। सच तो चलो बैलों को लेकर कार में जोत दें, कि कार का इंजिन बैलगाड़ी जा भी जैन धर्म में संभव नहीं हो सकती प्रार्थना की कोई में रख दें, कि रेल के चक्के बैलगाड़ी में ठोक दें और बैलगाड़ी के गुंजाइश नहीं है; भक्ति का कोई मार्ग नहीं है। लेकिन मंदिर चक्के रेल में ठोक दें तो समन्वय स्थापित नहीं होगा सिर्फ बनते हैं, पूजा होती है, प्रतिमा खड़ी होती है। इतना ही होगा कि कोई भी वाहन चलाने में, पहुंचाने में समर्थ न बात असल ऐसी है कि जिन्हें भक्त होना चाहिए था, वह अगर रह जायेगा। यह समन्वय नहीं हुआ। यह तुमने रास्ते ही खराब जैन घरों में पैदा हो जाते हैं तो वह क्या करें। खुद तो भक्त होने कर लिए, वाहन ही नष्ट कर दिए। का उपाय नहीं है, महावीर को ही भ्रष्ट कर लेते हैं। प्रत्येक मार्ग पर सुनिश्चित चिह्न हैं और प्रत्येक मार्ग की अपनी दुनिया के सभी धर्म भ्रष्ट हो गये हैं, संकर हो गये हैं; क्योंकि सुनिश्चित दिशा है। तो जब मैं महावीर के मार्ग पर बोल रहा हूं लोग जन्मों के कारण धर्मों में हैं। और यह बड़ी खतरनाक बात तो तुम खयाल रखना : मैं चाहता हूं कि शुद्ध महावीर की बात है। मैं तो चाहूंगा, महावीर का धर्म शुद्ध हो। क्योंकि शुद्ध हो तो तुम्हारी समझ में आ जाये; फिर जिसको वह यात्रा सुगम मालूम कछ थोड़े-से लोग जो संकल्प से पहुंच सकते हैं, उनका रास्ता पड़े वह चल सके। वहां भक्ति को भूल ही जाना। वहां सूफियों सीधा-साफ हो। लेकिन वह शुद्ध तभी हो सकता है, जब लोग से कुछ लेना-देना नहीं। वहां तो तुम शुद्ध निर्भाव होने की चेष्टा उसे स्वयं चुनें, जन्म के कारण धर्म आरोपित न हो। तो कृष्ण के करना, क्योंकि वही निर्भाव ही वहां गाड़ी का चाक है। मार्ग पर ऐसे लोग मिल जायेंगे जिनको महावीर के मार्ग पर होना लेकिन अकसर लोग ऐसा करते हैं : महावीर के मार्ग पर भाव चाहिए था। वे वहां सब खराब कर रहे हैं। वे प्रार्थना भी करते ले आयेंगे और जब नारद को पढ़ेंगे तब उनकी बुद्धि में निर्भाव हैं, लेकिन उनको आंसू नहीं बहते। वे कहते हैं, 'कैसे प्रार्थना उठने लगेगा। ये तरकीबें हैं न पहुंचने की। ये बहाने हैं ताकि तुम करें, हृदय में कोई रसधार आती ही नहीं!' इधर महावीर के मार्ग पहुंच न पाओ। ऐसे उलझाव खड़े करते हो। पर ऐसे लोग हैं जो कृष्ण के मार्ग पर होते तो सुगमता से पहुंच अंततः समन्वय है, लेकिन वह है गंतव्य पर पहुंचकर। जहां से जाते। उनकी आंखें लबालब भरी हैं। उनकी प्याली छलकी जा मैं खड़े होकर देख रहा हूं, वे सभी रास्ते यहीं आ जाते हैं। लेकिन रही है। लेकिन महावीर के वचन हैं कि राग का अंश है भक्ति, हर रास्ते की व्यवस्था अलग है। कोई पहाड़ से गुजरता है, कोई तो रोके हुए हैं। आंसुओं को सुखाने की कोशिश कर रहे हैं। रेगिस्तानों से गुजरता है, कोई हरियाली से भरे उपवन से गुजरता अड़चन पैदा होती है अगर तुम अपने से विपरीत चले गये। है। किसी रास्ते पर कोयल की कुह-कह है और किसी रास्ते पर किसी ने पीछे पूछा था कि क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम | बिलकुल सन्नाटा है, पक्षी हैं ही नहीं। 466 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org