________________ हला प्रश्नः कृष्ण कहते हैं कि मारो और महावीर अगर ठीक से समझो तो कृष्ण ने यह नहीं कहा है कि तू मार; कहते हैं कि हिंसा का विचार-मात्र हिंसा है। कृष्ण ने तो इतना ही कहा है, वह तुझे निमित्त बनाये मारने में तो कृपया बतायें कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है? मार। कृष्ण की गीता को इस दृष्टि से कभी देखा नहीं गया। सोचो कि अर्जुन की जगह कोई दूसरा व्यक्ति होता तो अंततः यह श्रेष्ठ और अश्रेष्ठ के प्रश्न अत्यंत अज्ञान से भरे हुए हैं। उस निष्कर्ष भी ले सकता था कि मैं संन्यास लेता हूं क्योंकि उसकी ऊंचाई पर तुलना काम नहीं आती। और तुलना करने वाला मन मर्जी संन्यास की है। अपने को सब भांति छोड़ देता और फिर न तो महावीर को समझ सकेगा और न कृष्ण को समझ सकेगा। कृष्ण से कहता कि क्षमा करें, अपने को सब भांति छोड़ रहा हूं, क्योंकि तुलना करने वाला मन दुकानदार का मन है, समझदार तो एक ही भाव उठता है कि संन्यास ले लूं। तो जब उसकी मर्जी का नहीं। संन्यास की है तो मैं कैसे लडूं? जब एक ही भाव सब श्वासों में ऐसा ही समझो कि जैसे एक गिलास में आधा जल भरा हुआ मेरे गूंज रहा है कि छोड़ दूं सब, चला जाऊं वन-प्रांत में, तो जाता रखा हो और कोई कहे कि आधा गिलास खाली है और कोई कहे | हूं। तो कृष्ण इनकार न करते कि तूने गलत किया। कृष्ण कहते, कि आधा गिलास भरा है, और तुम मुझसे पूछो कि दोनों में श्रेष्ठ जो वह करवाये वही कर। कौन है, तो तुम बात समझे ही नहीं। जो आधा खाली है वह अर्जुन युद्ध किया, क्योंकि अर्जुन का सारा व्यक्तित्व क्षत्रिय आधा भरा भी है। जो आधा भरा है वह आधा खाली भी है। का था। अर्जुन जो संन्यास की बात कर रहा था, वह ऊपर-ऊपर दोनों ने कहने के अलग-अलग ढंग चुने हैं। एक ने विधेय पर थी, बौद्धिक थी; वह वास्तविक न थी। अगर वास्तविक होती जोर दिया, एक ने निषेध पर जोर दिया। एक ने भरे हिस्से को तो कृष्ण की गीता से वह संन्यास का ही सार लेता। देखा, एक ने खाली हिस्से को देखा। लेकिन दोनों ने ही सत्य की कृष्ण की गीता में ठीक-ठीक निर्देश नहीं है कि क्या करो; तरफ इशारा किया। कृष्ण की गीता में तो इतना ही निर्देश है कि तुम मत करो, उसे कृष्ण कहते हैं, कर्तृत्व तेरा नहीं है, परमात्मा का है। इसलिए | करने दो। फिर अगर उसने यही चुना है कि तुमसे हजारों लोगों मैं करनेवाला हूं, यह भाव ही छोड़ दे। यह भाव ही हिंसा है। मैं को कटवा दे, तो उसकी मर्जी ! तुम यह मत सोचना कि तुम कर निमित्त-मात्र हूं; वह जो करवायेगा, मैं करूंगा; मैं बीच में न रहे हो। तुम अपने को सब भांति समर्पित करो। खड़ा होऊंगा। मैं कोई बाधा न डालूंगा। कृष्ण की भाषा समर्पण की भाषा है। तुम इस भांति शून्यवत मैं बांस की पोंगरी की तरह हो जाऊंगा; वह जो गायेगा, जो खड़े हो जाओ कि जहां उसकी हवाएं ले जायें वहीं चले जाओ। गुनगुनायेगा, उसकी मर्जी! तुम तैरो मत-बहो। 393 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org