________________ आत्मा परम आधार है आग इस घर को लगी ऐसी कि जो था जल गया। और ध्यान रखना, अगर तुम्हारी अंतरात्मा में ही चाह न उठी ऐसी जलाओ! उस जलने के बाद ही तुम्हारा कुंदन-रूप, हो तो ऐसा कोई व्रत-नियम ऊपर से मत ले लेना। नहीं तो तुम्हारा स्वर्ण शुद्ध होकर बाहर आयेगा। व्रत-नियम तुम्हें और झूठा बनायेगा। लोग व्रत और नियम ले तलाशे-यार में क्या दंढ़िए किसी का साथ लेते हैं भीड़ के लिए। मंदिर में जाते हैं, इतने लोग देख रहे हैं : हमारा साया हमें नागबार राह में है। लोग व्रत ले लेते हैं, कि ब्रह्मचर्य का व्रत लेते हैं। यह ब्रह्मचर्य और यह जो महावीर की अंतर्यात्रा है, इसमें कोई संगी-साथी का व्रत उनके जीवन से नहीं आ रहा है। ये इतने लोग प्रशंसा न मिलेगा। यहां तो अपनी छाया भी भारी पड़ती है। यह अकेले करेंगे, ताली बजायेंगे और कहेंगे कि इस व्यक्ति ने ब्रह्मचर्य का का रास्ता है। यह एकाकी का रास्ता है। यह एकांत! व्रत धारण कर लिया है और हम अभागे, अभी तक ब्रह्मचर्य का तो धीरे-धीरे हटो भीड़ से! धीरे-धीरे हटो दूसरे से। धीरे-धीरे व्रत धारण न कर पाये! इस कारण ब्रह्मचर्य का व्रत मत ले लेना, दूसरे का खयाल, दूसरे की धारणा छोड़ो। धीरे-धीरे द्वंद्वों को नहीं तो पछताओगे। हटाओ। होती नहीं कबूल दुआ तर्के-इश्क की! तलाशे-यार में क्या ढूंढ़िए किसी का साथ। -अगर तुम प्रार्थना कर रहे हो कि हे प्रभु! मुझे राग से, मोह हमारा साया हमें नागबार राह में है। | से ऊपर उठा...लेकिन यह कबूल न होगी, यह प्रार्थना स्वीकार एक ऐसी घड़ी आती है कि तुम्हारी छाया भी तुम्हारे साथ नहीं | न होगी। होती, क्योंकि छाया भी शरीर की बनती है, मन की बनती है, दिल चाहता न हो तो जबां में असर कहां? विचार की बनती है। छाया भी स्थूल की बनती है। आत्मा की -और अगर तुम्हारा भीतर का दिल ही यह न चाहता हो तो कोई छाया नहीं बनती। अभी तो हालत ऐसी है कि आत्मा खो कहने से क्या होगा? और अगर भीतर का दिल चाहता हो तो गई है, छाया ही रही है। फिर ऐसी हालत आती है, आत्मा बचती प्रार्थना की जरूरत ही नहीं। तुमने चाहा कि हुआ। है, छाया तक खो जाती है। लोग ऐसे हैं कि दोनों संसार सम्हाले चले जाते हैं। इसी वजह महावीर को सुनकर, समझकर तुम कुछ कर पाओगे, ऐसा मैं | से आदमी जटिल हो जाता है। नहीं सोचता। जब तक कि तुम अपने जीवन में भी महावीर जो शब को मय खूब सी पी, सुबह को तौबा कर ली कह रहे हैं, उसके आधार न खोज लोगे; जब तुम्हारे जीवन में भी रिंद के रिद रहे, हाथ से जन्नत न गई। तुम्हें ऐसा न दिखाई पड़ने लगेगा कि महावीर ठीक कहते रात शराब पी लेते हैं, सुबह पश्चात्ताप कर लेते हैं। हैं-तब तक तुमने अगर ऊपर-ऊपर से उनकी बातों का शब को मय खुब सी पी, सुबह को तौबा कर ली आरोपण भी कर लिया, जैसा कि जैन कर रहे हैं, तो कुछ लाभ न रिद के रिद रहे, हाथ से जन्नत न गयी। होगा। उससे तुम और उलझन में पड़ जाओगे। उससे जटिलता स्वर्ग भी सम्हाल लिया, संसार भी सम्हाल लिया। ऐसी बढ़ेगी, ग्रंथियां और बढ़ जायेंगी। मेरे देखे कभी-कभी ऐसा हो | बेईमानी में मत पड़ना। जिसने दोनों सम्हाले, उसके दोनों गये। जाता है कि सामान्य गृहस्थ कहीं ज्यादा निग्रंथ मालूम होता है जिसने एक को सम्हाला, उसका सब सम्हल जाता है। और वह बजाय मुनि के। उसकी और ज्यादा ग्रंथियां हो गई होती हैं। वह एक तुम्हारे भीतर छिपा है। वह एक तुम हो। उसे महावीर और तिरछा हो गया। उसने और नियमों के जाल खड़े कर | तुम्हारी अंतरात्मा कहते हैं, तुम्हारा परमात्मा कहते हैं। लिये। नैसर्गिक तो नहीं हुआ है। उसने और छोटी-छोटी बातों की इतनी व्यवस्था कर ली कि अब वो व्यवस्था ही जुटाने में आज इतना ही। उसका समय नष्ट होता है। चौबीस घंटे इसी में व्यतीत होते हैं। होती नहीं कबूल दुआ तकें-इश्क की दिल चाहता न हो तो जबां में असर कहां। 387 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org