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________________ MEANIRAM मनुष्यो, सतत जाग्रत रहो है। नहीं तो शक्ति का तुम करोगे क्या? तुमने लार्ड बेकन का क्योंकि तुम कहोगे, अब सुविधा मिली, अब दौड़-धूप न रही, प्रसिद्ध वचन सुना होगा-पावर करप्ट्स एंड करप्ट्स धन हाथ आ गया-अब घर बैठकर गीत गुनगुना लें। अब तक एब्सोल्यूटली-कि शक्ति जिनके हाथ में है वह लोगों को तो मजदूरी करनी पड़ती थी, गड्ढा खोदना पड़ता था, समय व्यर्थ व्यभिचारित कर देती है और परिपूर्ण रूप से व्यभिचारित कर होता था, शक्ति व्यय होती थी-गीत गाने का अवसर कहां देती है। लेकिन वह वचन सत्य होते हुए भी पूर्ण सत्य नहीं है। था! अब गीत गाने का अवसर मिला है। शक्ति किसी को व्यभिचारित नहीं करती। शक्ति केवल तुम्हारे ___ तो धन अगर सम्यक हाथों में पड़े तो शुभ है; असम्यक हाथों भीतर जो व्यभिचार पड़ा था, उसे प्रगट करती है। में पड़ जाए तो अशुभ है। इसलिए तुम मेरी बात खयाल रखना। तुम देखते हो, एक आदमी के पास कुछ भी नहीं है तो वह मैं तुमसे यह नहीं कहता कि धन छोड़ो। धन में क्या रखा है? शराब नहीं पीता; वह शराब के खिलाफ है। फिर कल अचानक तुम्हारे हाथ बदलने चाहिए। तो जो धन को छोड़कर भाग जाते लाटरी हाथ लग जाती है, फिर वह शराब पीने लगता है। अब हैं-तथाकथित त्यागी–वे केवल अवसर को छोड़कर भाग वह भूल जाता है सब शराब की खिलाफत। तो लोगों को ऐसा | रहे हैं; बीज का क्या होगा? बीज तो भीतर है। वह तो साथ ही लगता है कि धन ने इसे भ्रष्ट किया। बात गलत है। धन न होने चला जायेगा। फिर वे धन से डरने लगेंगे, क्योंकि उनको बात से यह अपने को समझाता था, अंगूर खट्टे हैं। पीना भी चाहता समझ में आ जायेगी, तर्क साफ हो जायेगा कि धन हाथ आया तो पीता कहां से? तो नीति के, धर्म के वचन दोहराता था। अब कि उपद्रव शुरू होता है। लेकिन धन कहीं उपद्रव ला सकता जब धन हाथ में आ गया, सब भूल गया। है? चांदी के ठीकरे उपद्रव ला सकते हैं? तब तो चांदी के इस देश में ऐसा हुआ। स्वतंत्रता-संग्राम के दिनों में जो लोग ठीकरे आत्मा से भी ज्यादा बलवान हो गये। चांदी के ठीकरे बड़े त्यागी-तपस्वी मालूम पड़ते थे, वे कोई त्यागी-तपस्वी थे उपद्रव नहीं ला सकते-उपद्रव तुम्हारे भीतर पड़ा है। नहीं। क्योंकि परीक्षा तो तब है जब शक्ति हाथ में आई। जब इसलिए मैं कहता हूं, वास्तविक त्यागी की परीक्षा संसार के शक्ति हाथ में न थी तब तो कोई भी त्यागी-तपस्वी होता है। जब भीतर है, बाहर नहीं। भगोड़े की बात और है, लेकिन वास्तविक शक्ति हाथ में आई, राज्य रूपांतरित हुआ और तथाकथित त्यागी की परीक्षा संसार के भीतर है। वहीं पता चलेगा। जो त्यागी-तपस्वी सत्ताधारी बने, तत्क्षण त्याग-तपश्चर्या सब महल में रहकर फकीर की तरह रह जाये—वहीं पता चलेगा। समाप्त हो गई। लगेगा शायद सत्ता ने उन्हें भ्रष्ट किया। नहीं, जो स्त्री-पुरुषों के बीच रहकर अकेला रह जाये—वहीं पता सत्ता ने केवल अवसर दिया, तो जो भ्रष्ट होने के बीज भीतर पड़े चलेगा। जहां सब साधन थे, लेकिन फिर भी जो अकंपित थे उन पर वर्षा हुई। बीज तो थे ही। क्योंकि तुम्हारा धन तुम्हें रहे—वहीं पता चलेगा। कैसे भ्रष्ट कर सकता है, अगर तुम्ही भ्रष्ट होने को पूर्व से तैयार इसलिए अगर कोई मुझसे पूछे कि त्याग की अगर परम प्रतिमा न थे? तुम सिर्फ धन की प्रतीक्षा कर रहे थे। धन आ गया, | बतानी हो, तो मैं महावीर को न बताऊंगा, मैं कृष्ण को संयोग मिल गया; अब रुकने की कोई जरूरत न रही। अब बताऊंगा। महावीर परम त्यागी हैं, लेकिन परीक्षा की सीमा के रुके, वह बिलकुल पागल है। अब तक रुके थे, वह तो कारण बाहर हैं। परीक्षा कभी भी नहीं हुई। जहां उपद्रव खड़ा होता है, यह था कि अपनी पहुंच के बाहर थे अंगूर। इसलिए कहते थे, वहां से दूर हैं। लेकिन कृष्ण परीक्षा से भी गुजर गये हैं। मैं जनक खट्टे हैं। अब नसेनी हाथ लग गई, अब कौन रुकेगा! अब को बताऊंगा। साम्राज्य है। सारा साम्राज्य का जाल है। और रुकना असंभव है। उसके बीच बाहर हैं। सत्ता हाथ में आते ही लोग भ्रष्ट हो जाते हैं इसलिए नहीं कि तो मैं तुमसे भागने को नहीं कहता। और महावीर का भी वचन सत्ता भ्रष्ट करती है, बल्कि इसलिए कि सत्ता अवसर देती है। तो | तुम ठीक से समझो, तो वे भी जागने को कह रहे हैं, भागने को जो तुम्हारे भीतर छिपा था वह प्रगट हो जाता है। अगर तुम्हारे नहीं कह रहे हैं। हां, यह हो सकता है कि जागकर तुम्हें यहां भीतर काव्य छिपा था, हाथ में सत्ता आते ही काव्य प्रगट होगा। रहना अर्थहीन मालूम पड़े, जैसा कि महावीर को मालूम पड़ा। 329 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrar.org
SR No.340115
Book TitleJinsutra Lecture 15 Manushyo Satat Jagrat Raho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size44 MB
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