________________ - - Boos जिन सूत्र भागः1 Jaya और तुम्हारी स्वाभाविक नियति तुम्हें दूर वन और उपवनों में ले किया जा सकता है तब कर्म नहीं होगा। जाये कि पहाड़ों में ले जाये, तो ठीक है। लेकिन, तुम संसार को | समझो। तुम अपने बच्चों में लिप्त हो, राग में डूबे हो। तुमने छोड़कर नहीं जा रहे हो। तुम्हारे छोड़ने में कोई प्रयास नहीं है। | बड़ी महत्वाकांक्षाएं बच्चों के कंधों पर रख दी हैं। तुम जो नहीं तुम सहज अपने स्वभाव के अनुकूल, जो तुम्हें ठीक पड़ रहा है, | कर पाये जिंदगी में, चाहते हो तुम्हारे बच्चे कर लेंगे। अगर उस तरफ जा रहे हो। इसमें फर्क है। | मां-बाप बेपढ़े-लिखे हों तो बच्चों को बुरी तरह पढ़ाते-लिखाते एक आदमी जो बाजार को छोड़कर भागता है, जो बाजार से हैं। क्योंकि उनकी एक कमी रह गई, वह खलती है। कम से डरकर भागता है, उसका अभी बाजार में अर्थ खोया नहीं है। कम अपने में न हो सकी, अपने बच्चों में पूरी हो जाये। जो अगर अर्थ खो जाये तो डर कैसा? और एक आदमी, जो बाजार मां-बाप जिंदगी भर तड़फते रहे, किसी बड़े पद पर न हो सके, वे में अर्थ पाता ही नहीं, इसलिए चला जाता है। ये दोनों जाते हुए अपने बच्चों को पहले से ही तैयार करते हैं कि हम तो चूक गये, मालूम पड़ेंगे, लेकिन दोनों के भीतर क्रांतिकारी फर्क है। तुम मत चूक जाना! अब तुम बच्चों को तैयार कर रहे हो जीवन ऐसा समझो कि एक रस्सी पड़ी है। तुम गुजरे पास से, तुमने के युद्ध के लिये। यह एक स्थिति है। सांप समझ लिया और तुम भागे। तुम पूरब की तरफ जा रहे थे, फिर एक दूसरा आदमी है। उसके भी बच्चे हैं। लेकिन जागा तुम पूरब की तरफ ही भागे, लेकिन घबड़ाकर भागे। क्योंकि हआ आदमी है। जागते ही 'मेरे हैं, यह तो खयाल समाप्त हो सांप में तुम्हें भय मालूम पड़ा। फिर एक और आदमी आ रहा जाता है; 'बच्चे हैं, यह खयाल रह जाता है। 'मेरे हैं', यह तो है। उसने भी गौर से देखा और उसे सांप नहीं दिखाई पड़ा, रस्सी प्रमाद का हिस्सा है, मूर्छा का हिस्सा है। ही दिखाई पड़ी। उसको भी पूरब जाना है, वह भी पूरब जा रहा | मेरा क्या है? खाली हाथ हम आते हैं, खाली हाथ हम जाते है। लेकिन जो घबड़ाकर भागा है उसमें और जो रस्सी को | हैं। और बच्चे मेरे क्या हो सकते हैं? भला मेरे द्वारा आये हों, मैं देखकर जा रहा है, बुनियादी फर्क है। दोनों एक ही दिशा में जा | मार्ग बना होऊं; लेकिन आये तो कहीं अज्ञात से हैं। मेरे चौराहे रहे हैं। लेकिन जो भाग गया है उसके भागने के पीछे अभी से गुजरे होंगे, इससे मेरे नहीं हो जाते। मेरे पास हैं, इससे मेरे अंधकार है, अंधेरा है, अज्ञान है। और जो जागकर जा रहा है, | नहीं हो जाते। मेरे शरीर का सहारा लेकर बड़े हो रहे हैं, इसलिए उसके जाने में प्रकाश है, ज्योति है। | मेरे नहीं हो जाते। मेरे जीवाणु के माध्यम से प्रगट हुए हैं, 'इस जगत में ज्ञान आदि सारभूत अर्थ हैं। जो पुरुष सोते हैं | इसलिए भी मेरे नहीं हो जाते। उनका अर्थ खो जाता है। सतत जागते रहकर पूर्वार्जित कर्मों को चैतन्य की अपनी यात्रा है। ये जो बच्चे तुम्हारे पास हैं, ये भी प्रकंपित करो। धार्मिकों का जागना श्रेयस्कर, अधार्मिकों का | अपनी-अपनी यात्रा से आये हैं। इस जीवन में संयोग...तुमसे सोना श्रेयस्कर है। ऐसा भगवान महावीर ने वत्स देश के | गुजरे हैं, तुम्हारे नहीं हैं। राजा-शतानीक की बहन जयंति से कहा था।' | तुमने कभी खयाल किया! बाल तुम्हारे शरीर से जुड़े हैं, काट 'प्रमाद को कर्म (आस्रव) और अप्रमाद को अकर्म (संवर) देते हो; फिर तो तुम्हारे नहीं रह जाते! नाखून काट देते हो, फिर कहा है। प्रमाद, होने से मनुष्य अज्ञानी होता है; प्रमाद के न होने तो तुम्हारे नहीं रह जाते! बच्चा जैसे ही पैदा हो गया, मां की देह से ज्ञानी होता है।' के बाहर आ गया-तुम्हारा क्या रह गया? 'मेरा'-भाव 'प्रमाद को कर्म...' प्रमाद यानी मूर्छा। प्रमाद यानी गिर जाये, ममत्व गिर जाये-फिर तुम बच्चों की फिक्र कर देते सोया-सोयापन। प्रमाद, जैसे कोई भीतरी नशे में तुम पड़े हो। हो, उनकी साज-संवार कर देते हो; लेकिन इस साज-संवार में 'प्रमाद को कर्म कहा है...।' अब कोई राग नहीं है। और इस साज-संवार के द्वारा तुम अपनी तुम जो भी कर रहे हो, उसका सवाल नहीं है—तुम क्यों कर | महत्वाकांक्षाओं को, अपने अहंकार को, अपनी अतृप्त रहे हो, उसका सवाल है। अभीप्साओं को पूरा नहीं करना चाहते। तुम बच्चों को साथ दे यही करना और ढंग से भी किया जा सकता है, जागकर भी देते हो कि ठीक है, संयोग मिल गया, तुम असहाय हो; मुझसे 330 ain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org