SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जन सत्र भागः। महावीर कहते हैं, असली परमात्मा तुम्हारे भीतर छिपा है। न तो | वस्त्रों में पड़ा है; बिलकुल धुले-धुलाए वस्त्र हैं, शुभ्र वस्त्र हैं; बंदगी से कुछ होगा, न गीतों से कुछ होगा, न पूजा-अर्चा के धूल का कण भी नहीं है। और एक जिंदा आदमी बैठा है; पसीने थालों से कुछ होगा। तुम जीवन के तथ्य को समझो। इस सत्य से तरबतर है; धूल भी चिपक गई है; दिनभर मेहनत की है; को समझो कि भवसागर में पड़े हो और डूब रहे हो। स्थिति को स्नान की जरूरत है। और तुम अगर मुझसे पूछो कि किसको ठीक से समझ लोगे तो तुम स्वयं को बचाने में लग जाओगे। चुनोगे, तो मैं कहूंगा, मैं जिंदा को चुनता हूं। पसीना है, नहाने से और तुम्हारे अतिरिक्त तुम्हें कोई और बचा नहीं सकता है। छूट जायेगा। धूल जम गई है वस्त्रों पर, साबुन उपलब्ध है। इसलिए महावीर कहते हैं, शरण-भावना से बचना, | मगर आदमी जिंदा है! यह मुर्दा आदमी, माना कि न इसमें अशरण-भावना में ध्यान करना। किसी की शरण जाने की बात | पसीना निकलता है, न इस पर धूल जमी है, यह कांच के ताबूत मत सोचना। समर्पण नहीं, संकल्प। में रखा रह सकता है, ऐसा ही साफ-सुथरा बना रहेगा-पर इसका करोगे क्या? इससे होगा क्या? तीसरा प्रश्न H आपने कहा कि लोक-व्यवहार में आकर | अहिंसा मुर्दा शब्द है। प्रेम जीवंत है। निश्चित ही प्रेम के साथ प्रज्ञापुरुषों के शब्द अपना अर्थ खो बैठते हैं। और आपने पसीना भी है। पसीने में कभी-कभी बदबू भी आती है। पसीने बताया कि महावीर ने 'अहिंसा', जीसस ने 'प्रेम' और पर धूल भी जम जाती है। आदमी गंदा भी हो जाता है, लेकिन सूफियों ने 'इश्क' शब्द अपनाए। भगवान! वर्तमान शताब्दि यह सब जिंदगी के लक्षण हैं। जहां गंदगी हो सकती है, वहां में आप कौन-सा शब्द हमें देना पसंद करेंगे? स्वच्छता लायी जा सकती है। ध्यान रखना, जहां गंदगी हो ही नहीं सकती, वहां स्वच्छता कैसे लाओगे? वहां तो मौत आ मैं तो प्रेम के प्रेम में हूं। उस शब्द से बहमूल्य मुझे कोई और चुकी। तुम उस बच्चे को पसंद करोगे जो मुर्दे की तरह एक कोने दूसरा शब्द मालूम नहीं होता। लाख विकृतियां हो गई हों, फिर में बैठा रहता है! मां-बाप पसंद करते हैं अकसर, क्योंकि उनके भी उस शब्द में जादू है। अहिंसा मरा-मरा शब्द लगता है। लिए कम उपद्रव का कारण होता है। गोबर-गणेश! बैठे हैं। उससे औषधि की बास आती है। अहिंसा-अस्पताल में जैसी कभी-कभी पूजा करनी हो तो गणपति जी की पूजा कर लो, बास आती है, वैसी बास आती है। कुछ नहीं करना है, कुछ बाकी वे बैठे रहते हैं। मां-बाप को ठीक लगते हैं, लेकिन बाद में रोकना है, कुछ निषेध-प्रेम जैसे फल नहीं खिलते। प्रेम शब्द पछताएंगे। वे ऐसे ही बैठे रहेंगे। फिर एक उपद्रवी, नटखटी | हृदय में कुछ और ही गंज लाता है, कोई कमल खिल जाते हैं, | बच्चा है, दौड़ता है, हाथ-पैर भी तोड़ लाता है, खन भी निकल कोई द्वार खुलते हैं। अहिंसा से ऐसा पता चलता है, कुछ आता है, कपड़े भी गंदे कर आता है, कीचड़ में सना हुआ घर आ मजबूरी, कुछ कर्तव्य-विधायकता नहीं है, पाजिटीविटी नहीं जाता है। मैं तो इसी को चुनूंगा। यह जिंदा तो है! इससे कुछ है। 'नहीं' में होती भी नहीं। होने की संभावना है। प्रेम में 'हां' है. स्वीकार है। प्रेम में एक अहोभाव है. गीत है. अहिंसा में कछ न हो, इसकी चेष्टा है। प्रेम में कछ हो. इसकी नृत्य है। तो लाखों विकृतियां हो गई हों प्रेम में, तो भी मैं प्रेम को चेष्टा है। मैं जीवन के पक्ष में हूं, मौत चाहे कितनी ही चुनता हूं। क्योंकि प्रेम जिंदा है और उन विकृतियों को अलग | साफ-सुथरी हो। और मौत बड़ी साफ-सुथरी चीज है। झंझटें करने की क्षमता है उसमें। अहिंसा शब्द में कोई प्राण नहीं हैं। तो | तो जीवन में हैं, मौत में क्या झंझट है? वह तो सब झंझटों का भला उसमें महावीर ने जब प्रयोग किया तो कोई विकृतियां न रही अंत है। तो भी में मौत को न चुनंगा, मैं जीवन को ही चनंगा। हों, अब तो हजारों विकृतियां हो गई हैं। और तकलीफ यह है कि दयारे-रंगो-निकहत में गुजर क्या होशमंदों का अहिंसा मुर्दा शब्द है। इसलिए उन विकृतियों को छिटकाकर यह पैगामे-बाहर आया तो दीवानों के नाम आया। फेंक नहीं सकता। प्रेम फेंक सकता है। प्रेम जीवंत है। -वे जो बहुत होशियार हैं, गणित से जीते हैं, ऐसा ही समझो कि एक आदमी मरा हुआ पड़ा है, साफ-सुथरे समझदारी-समझदारी ही जिनके जीवन में है और दीवानगी Jain Eucation International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340114
Book TitleJinsutra Lecture 14 Prem se Muze Prem Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy