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________________ बिलकुल नहीं, जिन्होंने पागल होने की सारी क्षमता को नष्ट कर पकड़ोगे? न पकड़ोगे न छोड़ोगे, क्योंकि वह धन-दौलत ही न दिया है—उनके जीवन में कभी वसंत का पैगाम नहीं आता। रही। छोड़ने लायक भी न रही, पकड़ने की तो बात दूर है। रखा दयारे-रंगो-निकहत में गुजर क्या होशमंदों का! ही क्या है वहां? जहां भीतर के हीरे दिखाई पड़ने लगें, वहां सब -इस रंग-रूप, फूलों से भरी दुनिया में समझदारों की कहां | बाहर का कंकड़-पत्थर हो जाता है। जब भीतर के सौंदर्य में जीने जरूरत है? लगे तो बाहर सौंदर्य दिखता ही नहीं। लेकिन अगर तुम बाहर के यह पैगामे-बहार आया तो दीवानों के नाम आया। सौंदर्य को छोड़कर भागे और यही तुम्हारी जीवन की शैली हो और जब भी वसंत की लहर आती है, संदेश आता है जीवन गई, निषेध, इनकार, नेति-नेति, तो तुम मुश्किल में पड़ोगे। का, तो दीवानों के नाम आता है। फांसी लगा लोगे अपने हाथ से गले में। और जिसको तुम अहिंसा तुम्हें होशियारी दे देगी, लेकिन दीवानगी कहां से छोड़कर भागे हो, उसकी बुरी तरह याद आएगी। आयेगी ही। लाओगे? अहिंसा तुम्हें गलत करने से बचा लेगी; लेकिन सही | इसलिए जो छोड़कर भागते हैं—स्त्रियों के संबंध में चिंतन करने का रंग-रूप कहां से लाओगे? अहिंसा तुम्हें गाली देने से | चलता रहता है, धन के संबंध में चिंतन चलता रहता है। रोक लेगी, लेकिन गीत कहां से जन्माओगे? छिड़कते हैं, झिटकते हैं उस चिंतन को, हटाते हैं। जब-जब स्त्री गाली देने से रुक जाना काफी है? तो जो आदमी गाली नहीं की याद आ जाती है, जोर-जोर से राम-राम-राम-राम जपने देता, बस पर्याप्त है? लगते हैं कि किसी तरह...। मगर तम्हारे जपने से क्या होता यही तो जैन मनियों की दशा हो गई है। वे गाली नहीं देते; गीत है? राम-राम-राम ऊपर रह जाता है, काम-काम-काम-काम उनसे पैदा नहीं होता। बैठे हैं, गोबर-गणेश, उनकी पूजा कर भीतर चलता जाता है। तुम्हारे हर दो राम के बीच में से काम की लो! जैनी जाते हैं सेवा को। उनसे बुराई तो उन्होंने काट डाली, | खबर आने लगती है। लेकिन कहीं कुछ भूल हो गई, कहीं कुछ बड़ी बुनियादी चूक हो भागो मत! घबड़ाओ मत। डरो मत! परमात्मा जीवन का गई। और वह चूक यह है कि उन्होंने गलत को छोड़ने की निषेध नहीं है, जीवन का परिपूर्ण अनुभव है। और धर्म पलायन आकांक्षा की, गलत से बचने की चेष्टा की; लेकिन सही को नहीं है, जीवन का परिपूर्ण भोग है। जन्माने के लिए उन्होंने कोई प्रयास न किया। उनका खयाल है महावीर ने प्रेम के लिए अहिंसा शब्द चुना; वहां भूल हो गई। कि गलत हट जाए तो सही अपने से आ जायेगा। मेरा खयाल है पर भूल हो जाने के लिए कारण थे। क्योंकि प्रेम कि सही आ जाये तो गलत अपने से हट जायेगा। और मैं तुमसे शब्द...उपनिषद और वेद प्रेम की चर्चा कर रहे थे। और प्रेम का कहता हूं कि उनका खयाल गलत है। उनका खयाल ऐसे ही है | सब तरफ जाल था। और प्रेम के नाम पर सब तरफ भ्रष्टाचार जैसे कोई आदमी, अंधेरा भरा हो कमरे में, अंधेरे को धक्का दे | था। तो महावीर को लगा, अब प्रेम का शब्द उपयोग करना देकर निकालने लगे। नहीं, अंधेरे को कोई धक्के देकर नहीं खतरे से खाली नहीं है। उन्होंने इसी आशा में अहिंसा का निकाल सकता-थकेगा, मरेगा, जिंदगी खराब हो जायेगी। उपयोग किया कि वे समझा लेंगे तुम्हें कि अहिंसा का अर्थ प्रेम ही दीया जलाओ! कुछ विधायक को जलाओ! अंधेरा अपने से है। लेकिन वे न समझा पाए। कसूर उनका नहीं है। कसूर चला जाता है। उनका है जिन्होंने सुना। उन्होंने तत्क्षण अहिंसा में से प्रेम तो न तो मैं तुमसे नहीं कहता, क्रोध छोड़ो। मैं कहता हूं, करुणा निकाला, नकारात्मकता निकाल ली। तो महावीर का धर्म जन्माओ। मैं तुमसे नहीं कहता, संसार छोड़ो। मैं कहता हूं, धीरे-धीरे ऐसा धर्म हो गया कि इसमें क्या-क्या नहीं करना है, आत्मा को जगाओ। मैं तुमसे नहीं कहता, धन-दौलत छोड़ो। मैं वही महत्वपूर्ण हो गया। कहता हूं, भीतर एक धन-दौलत है, उस खोजो। मेरा रुख ज़ाहिद हद्दे-होशो-खिरद में रहा 'असीर' विधायक है। और यह मेरा जानना है कि जिस दिन तुम्हें भीतर नादां ने जिंदगी ही को जिंदां बना दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrarorg
SR No.340114
Book TitleJinsutra Lecture 14 Prem se Muze Prem Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size35 MB
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