________________ जिन सूत्र भागः1 यही भगवान का रूप है तो कृष्ण में तुमको लगेगा, कुछ गड़बड़ बड़ी करो परिभाषा! मेरी मानो तो परिभाषा को छोड़ो; इतनी हो रही है। यह नाच कैसा? परम वीतराग पुरुष कहीं नाचता | बड़ी करो कि परिभाषा बचे न। तो तुम्हारा जर्फ बड़ा होगा, है? यह बांसुरी कैसी? क्योंकि सब बांसुरी तो राग है। सब तुम्हारी क्षमता और पात्रता बड़ी होगी। रास राग है। यह आसपास खड़ी हुई सुंदर स्त्रियां, नाचतीं, तब मैं ही तुम्हें भगवान नहीं, तुम भी, तुम्हारा बेटा भी, तुम्हारी डोलतीं, यह सब क्या हो रहा है? यह तो संसार है। पत्नी भी–सभी तुम्हें भगवान दिखाई पड़ने लगेंगे। कोई तुम्हारी परिभाषा पर निर्भर है। और मैं धार्मिक व्यक्ति उसको बीजरूप है, कोई वृक्षरूप हुआ, कोई कली बना, कोई फूल कहता हूं, जिसकी परमात्मा की कोई परिभाषा नहीं; जो परमात्मा बना। और फूलों की हजारों-हजारों किस्में हैं; ऐसे ही परमात्मा को अपरिभाष्य मानता है, अनिर्वचनीय मानता है। और जिस | के हजार-हजार रूप हैं। रूप में भी परमात्मा प्रगट होता है, पहचान लेता है, खोज लेता फिर जो मुझे भगवान कहते हैं, वे केवल अपना प्रेम प्रदर्शित है; क्योंकि रूप तो सब उसी के हैं। इसलिए धोखे का कोई करते हैं। जिससे प्रेम हो जाये, वहीं भगवान दिखाई पड़ना शुरू उपाय नहीं है। हो जाता है। वह प्रेम ही क्या जिसमें भगवान दिखाई न पड़े? तामीरे-कायनात को गहरी नजर से देख तुम मेरी तो छोड़ो, तुम अगर किसी स्त्री के प्रेम में पड़ गये तो वह जर्रा कौन-सा है यहां जो अहम् नहीं। वहां भी दिव्यता की झलक दिखाई पड़ेगी। तुम अगर किसी जरा गहरी नजर से देखो सृष्टि को! यहां कण-कण महत्वपूर्ण पुरुष के प्रेम में पड़ गये तो वहां भी अचानक पुरुष-भाव खो है! उसकी महिमा से आपूरित है! उसकी ही विभूति है, उसका | जायेगा, परमात्म-भाव प्रगट होगा। ही प्रसाद है। लेकिन तुम्हारा जितना बड़ा प्याला होगा, उतनी ही शबाब आया, किसी बुत पर फिदा होने का वक्त आया तुम क्षमता जुटा पाओगे परमात्मा के प्रसाद की। इसलिए मेरी दुनिया में बंदे के खुदा होने का वक्त आया। छोटी-छोटी परिभाषाओं के प्याले लेकर मत चलो। जब प्याला जब कोई जवान होता है, शबाब आया, जवानी आई, किसी ही लेना है तो बड़ा लो कि सागर समा जायें। नहीं तो आज नहीं | बुत पर फिदा होने का वक्त आया! अब किसी प्रतिमा पर पागल कल, तुम पाओगे कि तुम्हारे प्याले में बड़ा थोड़ा है। और थोड़ा हो जाने का समय आ गया। तुम्हें कष्ट देगा। और कष्ट तुम्हारे प्याले के कारण हो रहा है। मेरी दुनिया में बंदे के खुदा होने का वक्त आया। तुमने प्याला बड़ा चुना होता तो परमात्मा बड़े प्याले में भी उतरने अब कोई बंदा खुदा जैसा दिखाई पड़ेगा। को राजी था। यह तो साधारण प्रेम में हो जाता है। यह तो मजनू को लैला में अनिर्वचनीय को पकड़ो! अव्याख्य की व्याख्या मत करो। दिखाई पड़ने लगता है। यह तो शीरी को फरिहाद में दिखाई पड़ अव्याख्य को अव्याख्य रहने दो। नाम-रूप मत धरो उसके। तो जाता है। तो आत्मिक प्रेम में तो घटना और भी गहरी घटती है। फिर जिस रूप में भी आयेगा, तुम पहचान लोगे। तुम हर रूप में अब जिनका मुझसे प्रेम है, उन्हें भगवान दिखाई पड़ जायेगा। पहचान लोगे। तुम रावण में भी देख लोगे, राम में तो देख ही तुम्हारा हो या न हो, मेरा तुमसे है; मुझे तुम में दिखाई पड़ता है। लोगे। वह भी उसी का रूप है; विपरीत चला गया, गलत हो | अगर तुम्हें न दिखाई पड़े तो तुम व्यर्थ ही वंचित रह जाओगे। गया, बेस्वाद हो गया लेकिन उसी का स्वाद है। और ध्यान रखना, अगर मैं तुमसे कहूं कि परमात्मा मुझ में है साकिए-दौरां से शिकवा बेश-कम का है फिजूल और किसी में नहीं, तो खतरनाक बात कह रहा हूं। तुम भी यही जर्फ जितना उसने देखा उतनी पैमाने में है। सुनना चाहते हो, क्योंकि फिर तम्हारा अहंकार मजे से रस ले साकिए-दौरां से शिकवा बेश-कम का है फिजूल-साकी से सकेगा। लेकिन मैं कहता हूं, परमात्मा सबकी सामान्यता है। कम-ज्यादा की शिकायत करनी व्यर्थ है। जर्फ जितना उसने | परमात्मा कोई विशेष बात नहीं है, कोई विशिष्टता नहीं है। देखा, उतनी पैमाने में है। उसने देखा, कितनी तुम पचा सकोगे, परमात्मा सभी के होने का ढंग है, सभी का स्वभाव है। जानो न उतनी तुम्हारे पैमाने में है। जानो, तुम परमात्मा हो, जब तक न जानोगे, बंद रहोगे; जिस 268 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org