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________________ संकल्प की अंतिम निष्पत्तिः समर्पण को भोगा नहीं। उसमें प्रयोजन भी न था। बस सुंदर स्त्री मेरे से नाराज होकर लौटेंगे, क्योंकि उनका कुरूप चेहरा दिखाई कब्जे में आ गई, इतना काफी है। उसका रस कब्जे का रस है। पड़ेगा, उनकी वीभत्सता दिखाई पड़ेगी। ऐसे लोग महावीर से | तो अगर रावण जैसा आदमी तुम्हारे पास बैठे तो तुम पाओगे, | नाराज न होंगे, क्योंकि महावीर के पास सिर्फ महावीर के फूल जैसे कोई अंधकार तुम्हें खींचे लेता हो, पी जाना चाहता है। | दिखाई पड़ेंगे। तुम महावीर की पूजा कर लोगे। महावीर के साथ अगर राम और महावीर जैसे व्यक्ति तुम्हारे पास खड़े हों, तो तुम पूजा पर्याप्त हो जायेगी। पतंजलि के साथ साधना जरूरी होगी। पाओगे कि तुम्हारी आंखें किसी शुभ्रता में झपकपाने लगीं। उन्हें लेकिन जो भी पतंजलि के साथ जायेगा उसके जीवन में क्रांति झेलना मुश्किल मालूम पड़ेगा। निश्चित है। लाओत्सु जैसा व्यक्ति अगर तुम्हारे पास भी बैठा हो तो तुम्हें फिर एक और पांचवां रूप है-प्रिज्म की भांति। किरण पता न चलेगा कि कोई बैठा है या नहीं बैठा है। इसलिए तो गुजरती है तिकोन कांच के टुकड़े से, तो इंद्रधनुष पैदा हो जाता लाओत्सु के पीछे कोई धर्म न बन सका। धर्म बने कैसे? धर्म | है। कृष्ण ऐसे हैं जैसे इंद्रधनुष। किरण पार भी होती है, लेकिन बनने के लिए दिखाई पड़ना चाहिए। लाओत्सु तो ना-कुछ है, लाओत्सु जैसी नहीं। प्रिज्म में से पार होती है। सीधा-सरल शून्यवत है। यह भी परमात्मा का एक रूप है। कांच का टुकड़ा नहीं है। बड़े कोणों वाला कांच का टुकड़ा! बड़े परमात्मा का पहला रूप है: शैतान–सबसे नीचा रूप। पहलुओं वाला कांच का टुकड़ा! कृष्ण बहुआयामी हैं, बड़े दूसरा रूप है : शुभ्र। कुछ उस ढंग से प्रगट होते हैं परमात्मा। पहलू हैं! और जब कृष्ण से किरण गुजरती है तो सात रंगों में टूट फिर लाओत्सु है; वह भी एक रूप है परमात्मा का पारदर्शी। जाती है। बड़ा नृत्य, बड़ा गीत, बड़ा रास पैदा होता है। इसलिए फिर एक चौथा रूप भी है—दर्पण की भांति; किरणें लौटती ही मोर-मुकुट है। इसलिए मोर-पंख बंधे हैं। इसलिए हाथ में नहीं सिर्फ, तुम्हारा प्रतिबिंब भी बनाती हैं। तुम अगर दर्पण के बांसुरी है। इसलिए पैर में धुंधर बंधे हैं। इसलिए पीतांबर वेश | पास जाओगे तो तुम्हारी तस्वीर तुम्हें दिखाई पड़ जायेगी। कुछ में है। इसलिए सिल्क, शुद्धतम सिल्क के वस्त्र हैं। गले में हार परमात्मा इस रूप में भी प्रगट हुआ है—पतंजलि। अगर | है। बाहुएं आभूषणों से सजी हैं। करधनी बांधी हुई है। कृष्ण पतंजलि के पास जाओगे तो तुम्हें अपनी तस्वीर दिखाई पड़ने बड़े रंगीले हैं, बड़े सजे हैं। परमात्मा बड़े शृंगार में प्रगट हुआ लगेगी। महावीर के पास न दिखाई पड़ेगी तुम्हें अपनी तस्वीर। है। अगर नाचना हो तो कृष्ण के साथ। अगर गीत की धुन सिर्फ तुम्हें उनकी शुभ्रता घेर लेगी; जैसे चांदनी के फूल तुम पर | सुननी हो तो कृष्ण के पास। बरस पड़ें! लेकिन पतंजलि के पास तुम्हें अपना ही रूप दिखाई कृष्ण पतंजलि जैसे शिक्षक नहीं हैं, न महावीर जैसे हैं, पड़ जायेगा; तुम्हारी झलक बनेगी। और पतंजलि तुम्हें अभिभूत कर लें, ऐसे हैं। न लाओत्सु जैसे कि शून्य में खो गये आत्म-आविष्कार के लिए बड़ा सहयोगी हो सकेगा। लाओत्सु हों, ऐसे हैं। कृष्ण के साथ महोत्सव है, उत्सव है। कृष्ण के के साथ तो वे लोग चल सकेंगे, बहुत मुश्किल, विरले, जिनके साथ राग-रंग है। पास इतनी सूक्ष्म दृष्टि है कि पारदर्शी को भी देख सकें। पतंजलि और सभी रूप परमात्मा के हैं। अब इसमें से जो किसी एक के साथ बहुत लोग चल सकेंगे। महावीर के साथ भी लोग चल रूप से जकड़ गया उसको दूसरा रूप पहचान में न आयेगा। सकेंगे, राम के साथ भी चल सकेंगे; लेकिन राम और महावीर अगर तुमने कृष्ण की रंग-रेली देखी और उसको तुमने परमात्मा से अभिभूत होंगे, रूपांतरित बहुत नहीं होंगे। क्योंकि खुद का का रूप जाना, तो फिर महावीर तुम्हें सूखे-सूखे, रूखे-रूखे दर्शन नहीं होगा। महावीर का दर्शन होगा अगर उनके पास | मालूम पड़ेंगे। तुम कहोगे, 'ये कैसे भगवान हैं? बांसुरी तो जाओगे। पतंजलि की खूबी और! उसके पास तुम्हें तुम्हारा बजती ही नहीं, भगवत्ता कहां है? संगीत तो पैदा ही नहीं होता, दर्शन होगा! तुम्हारा चेहरा विकराल है तो विकराल दिखाई गीत तो बरसते ही नहीं, ये कैसे भगवान?' बड़े मरुस्थल जैसे पड़ेगा, सुंदर है तो सुंदर दिखाई पड़ेगा। तुम जैसे हो, पतंजलि के मालूम होंगे। पास तुम वैसे ही प्रगट हो जाओगे। कुछ लोग पतंजलि के पास | और अगर तुम महावीर से अभिभूत हो गये और तुमने कहा, 267 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org|
SR No.340112
Book TitleJinsutra Lecture 12 Sankalp ki Antim Nishpatti Samarpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size48 MB
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