________________ जिन सूत्र भागः 1 TREAM सब पी जाये, कुछ छोड़े न; सब पर कुंडली मारकर बैठ जाये, भी सार है। यह कहना कि वे सफेद वस्त्रों में ढके थे, बिलकुल कुछ दान न करे; जिसके जीवन से प्रेम न उठता हो; जो सब सार्थक है। जैसे शैतान को काला रंगने में सार्थकता है, वैसे ही चीजों के लिए कृपणता से इकट्ठा करता चला जाये। ठीक है कि महावीर को शुभ्र वस्त्रों में, श्वेतांबर बनाने में भी सार्थकता है। रावण की लंका सोने की थी, रही होगी। सारा सोना उसने इकट्ठा यद्यपि वे नग्न थे, लेकिन उनके जीवन का लक्षण सफेद, शुभ्र, कर लिया होगा सारे संसार से। काला रंग राक्षस, शैतान, असुर श्वेत वस्त्र हैं-श्वेतांबर हैं। सब उन्होंने छोड़ दिया। यह दूसरा उसका रंग है। उपाय है। साधारणतः हममें से अधिक लोग भगवान के साथ यही करते अगर परमात्मा को तुम सिकोड़कर बैठ गये, तो तुम कुछ भी हैं। भगवान हम पर बरस रहा है। वह प्रकाश की भांति है। हो सकते होः पशु, पत्थर, आदमी। परमात्मा तुम्हारे भीतर लेकिन हम उसे पीकर बैठ जाते हैं। हम उसे सिकोड़ लेते हैं। सिकुड़ा पड़ा रहेगा। हम सब तरफ से उस पर कुंडली मार लेते हैं। हम उसे बांटते | बांटो! खोलो इन जालों को जो भीतर बंधे हैं! तोड़ो खोल को, नहीं। हम उसे लौटने नहीं देते। उसके कारण हम बेरंग हो जाते अंकुर उठने दो! तुम पाओगे: शुभ्र परमात्मा का उदय हुआ। हैं, काले हो जाते हैं। ये साधारण विभाजन हैं। फिर एक तीसरी भी स्थिति है। जैसे बांटो! जितना तुम बांटोगे उतना तुम्हारे जीवन में रंग आने कि कोई पारदर्शी कांच का टुकड़ा, वह किरणों को लौटाता नहीं लगेगा। अगर तुमने एक किरण लौटा दी तो हरा रंग आ | है, पीता भी नहीं, पार हो जाने देता है; शुभ्र भी नहीं है, काला भी जायेगा; अगर दूसरी किरण लौटा दी तो लाल रंग आ जायेगा। नहीं है। क्योंकि काला होने के लिए पी जाना जरूरी है। शुभ्र अगर तुमने सब लौटा दिया तो तुम शुभ्र हो जाओगे। दुनिया के | होने के लिए लौटा देना जरूरी है। कांच का टुकड़ा पार हो जाने सारे धर्मशास्त्र शैतान को काला रंगते हैं, राक्षस को काला रंगते देता है। पारदर्शी है। सफेद दीवाल है; वह लौटा देती है। काला हैं। जरथुस्त्र अहरिमन को काला रंगता है। ईसाई डेविल को, पत्थर है, वह पी जाता है। कांच है, वह पार हो जाने देता है। मुसलमान शैतान को, सब काले रंगते हैं। वह काला बिलकुल तो महावीर, बुद्ध, राम, मोज़िज़ शुभ्र वस्त्रों की भांति हैं, शुभ्र प्रतीक है। वह जैसा भौतिक-शास्त्र का अंग है, वैसे ही दीवाल की भांति हैं। लाओत्सु पारदर्शी कांच की भांति है। तो अध्यात्म-शास्त्र का भी अंग है। अगर कांच पूरा पारदर्शी हो तो तुम्हें दिखाई ही नहीं पड़ेगा। जब भी तुम किसी चीज को पीकर बैठ जाते हो, तुम काले हो उसके पार क्या है, वह दिखाई पड़ेगा; कांच दिखाई नहीं पड़ेगा। जाते हो। तब तुम बीज की भांति हो; सब भीतर बंद है और एक अगर कांच दिखाई पड़ता है तो उसका मतलब है, थोड़ी अशुद्धि खोल ऊपर से चढ़ी है। जब तुम सब छोड़ देते हो, इसलिए रह गई। तो लाओत्सु अगर तुम्हारे पास भी बैठा रहे तो तुम्हें पता सफेद त्याग का प्रतीक है। न चलेगा। अगर महावीर तुम्हारे पास बैठे, तो तुम्हारी आंखें जैनों ने सफेद वस्त्र चुने मुनियों के लिए-त्याग की वजह से। चमचमा जायेंगी; शुभ्रता तुम्हें घेर लेगी। अगर रावण तुम्हारे सब छोड़ देता है। सब त्याग कर देता है। | पास बैठे तो तुम घबड़ाने लगोगे; वह तुम्हें चूसने लगेगा, तो एक तरफ शैतान है। फिर जो सब छोड़ देता है। जैसे राम, खींचने लगेगा। वह तुम्हारी सीता को चुराने में लग जायेगा। वह जैसे महावीर, सब छोड़ देते हैं-शुभ्र हैं। तो राम मर्यादा | तुम्हें भी पी जाना चाहेगा। जरूरी नहीं है कि वह तुम्हें भोगे, पुरुषोत्तम हैं। उनका जीवन बड़े संयम, विवेक, संतुलन, क्योंकि भोगने के लिए भी थोड़ा त्यागना पड़ता है। वह तो सिर्फ अनुशासन का जीवन है। महावीर का जीवन परम त्याग का कुंडली मारकर बैठ जायेगा। जीवन है; सब छोड़ दिया है; सब छोड़ दिया; कुछ भी नहीं रखा इसलिए मैं...रामायण में जो कथा है कि वह सीता को चुराकर है-शुभ्र हो गये हैं। ले गया, फिर उसने अशोक-वाटिका में उन्हें रख दिया, उन्हें जैनों के दो पंथ हैं : दिगंबर और श्वेतांबर। महावीर ने वस्त्र तो छुआ भी नहीं। असली कंजूस छूता भी नहीं। धन को छूता भी पहने नहीं, रहे तो वे नग्न ही; लेकिन फिर भी श्वेतांबर दृष्टि में नहीं; बस उसको रखकर तिजोड़ी में बैठ जाता है। उसने सीता 2661 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org