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________________ जिन सूत्र भाग : 1 हो। जब कोई कहता है, तुम्हारा गुरु गलत है, तो वह कहता है उन्हें यह भी पता नहीं कि घर में कोई नहीं है, घर खाली है। और तम गलत हो। तुम्हारे मन को चोट लगती है। शिष्य का मन | त्रिकालज्ञ हैं, तीनों काल के ज्ञाता हैं और इतना भी पता नहीं है कि होता है कि सारी दुनिया कहे कि तुम्हारा गुरु सबसे बड़ा गुरु! जिस घर के सामने भिक्षापात्र लिये खड़े हैं, वहां भीतर कोई भी क्योंकि तुम सबसे बड़े गुरु के शिष्य हो, तो सबसे बड़े शिष्य हो नहीं। बाद में पता चलता है, घर खाली है। राह से गुजरते हैं, गये! तुम्हारा अहंकार तृप्त होगा। लोग मेरी पूजा में थाल सुबह का अंधेरा है। राह पर सोए कुत्ते की पूंछ पर पैर पड़ जाता सजाएं, लोग मेरा गुणगान करें, तो तुम्हारा भी गुणगान उसमें है। जब कुत्ता भौंकता है तब पता चलता है। त्रिकालज्ञ हैं! छिपा होगा। तुम भी मेरे हो। मेरी पूजा अनजाने तुम्हारी भी पूजा | बौद्ध मजाक उड़ा रहे हैं। होगी। यह अहंकार छोड़ो! यह बकवास बंद करो। यही तो शिष्यों को हमेशा बड़ी तकलीफ होती है। शिष्यों की तकलीफ चलता रहा है। यह है कि हमारा गुरु श्रेष्ठतम होना ही चाहिए। नहीं तो हम जैनों से पूछो तो महावीर सबसे ऊपर; किसी को महावीर के चुनते? हम जैसे बुद्धिमान ने जिसे चुना, वह श्रेष्ठतम से कम हो ऊपर नहीं रख सकते। ऊपर रखने की तो बात छोड़ो, महावीर के सकता है, असंभव! साथ भी नहीं रख सकते। कृष्ण को तो नर्क में डाल दिया है। तुम जरा ध्यान रखना, जब कोई मुझे गाली दे, कोई मेरा खंडन राम संसारी हैं। बुद्ध से जरा अड़चन है, क्योंकि न तो बुद्ध करे, तब अपने अहंकार का खयाल रखना, वह भी सहयोग कर संसारी हैं, न कृष्ण जैसे किसी युद्ध में खड़े हैं, न युद्ध करवाने रहा है। वह भी तुम्हारे अहंकार को काट रहा है। उससे कहना, वाले हैं लेकिन फिर भी महावीर की ऊंचाई पर तो नहीं रख 'काट! ठीक से काट।' वह मेरे खिलाफ कुछ कह रहा है या सकते! तो महावीर को 'भगवान' कहते हैं, बुद्ध को 'महात्मा' नहीं कह रहा है, इससे क्या फर्क पड़ता है? मुझे क्या फर्क कहते हैं। पड़ता है? तुम्हें फर्क पड़ता है। तुम्हें अड़चन होती है। तुम एक जैन विचारक मेरे पास आते थे। कहते हैं अपने आपको, | लड़ने-मारने को, झगड़ने को उतारू हो जाते हो। तुम्हारे गुरु को सहिष्णु हूं, सभी धर्मों में समभाव रखता हूं। जैन हैं। उन्होंने एक कुछ कह दिया तो यह जीवन-मरण का सवाल हो गया। किताब लिखी है। भगवान बुद्ध तो नहीं लिखा : महात्मा बुद्ध देखना, यह सब अहंकार का सवाल है; जीवन-मरण का और महावीर को 'भगवान' लिखा। 'भगवान महावीर और इससे कुछ लेना-देना नहीं। और यहां मेरी पूरी शिक्षा है कि महात्मा बद्ध।' किताब मेरे पास लाए, कहा कि 'देखें, जैन हं: अहंकार तोड़ देना है, गिरा देना है। तो ये भी तम्हारे मित्र हैं। ये लेकिन मेरा सदभाव सब की तरफ है।' तो मैंने कहा कि भी तुम्हारे अहंकार को तोड़ने के लिए साथ दे रहे हैं। इनको भी 'सदभाव ही था, इतनी कंजूसी क्यों कर गए? इधर थोड़ी | धन्यवाद देना। हिम्मत और बढ़ा लेते।' __ तो जैसे-जैसे तुम शांत भाव से लोगों की बात सुनने लगोगे, महात्मा का अर्थ होता है जो भगवान होने की तरफ जा रहा उनकी बातें इतनी महत्वपूर्ण न मालूम पड़ेंगी-सोये हुए लोगों है, अभी पहुंचा नहीं / महात्मा का अर्थ होता है : जो अंतरमुखी की बकवास है। नींद में बड़बड़ा रहे हैं। अपना उन्हें पता नहीं है, है, अंतरात्मा की तरफ जा रहा है। भगवान का अर्थ होता है : जो तुम्हारा क्या पता होगा, मेरा क्या पता होगा? उनकी बात को पहुंच गया। तो उन्होंने कहा कि 'वह तो ठीक है, लेकिन बुद्ध ज्यादा मूल्य मत देना। अभी महात्मा ही हैं, तो मैं क्या करूं?' जिंदगी नाम है रवानी का बौद्धों से पूछो, तो बौद्धों ने जो मिथ्या दृष्टियां गिनाई हैं, उनमें क्या थमेगा बहाव पानी का एक महावीर की दृष्टि भी है। बौद्धों ने बड़ा मजाक उड़ाया | जिंदगी है कि बेताल्लुक-सा महावीर का। क्योंकि महावीर के शिष्य कहते थे कि महावीर एक टुकड़ा किसी कहानी का। सर्वज्ञ हैं, तीनों काल के ज्ञाता हैं। तो बौद्ध शास्त्रों में बड़ा मजाक -अप्रासांगिक, जैसे किसी कहानी का एक टुकड़ा उड़ता उड़ाया है कि महावीर एक घर के सामने भीख मांग रहे हैं, और हुआ हवा में, कागज का एक टुकड़ा तुम्हारे हाथ लग जाये, उसे 214 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340110
Book TitleJinsutra Lecture 10 Zindagi Nam Hai Ravani Ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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