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________________ जिंदगी नाम है रवानी का तुम पढ़ो,न कुछ प्रारंभ का पता चले, न कुछ अंत का पता चले। तो लोग ठीक कहते हैं। अगर महिमा देखनी हो, कहीं और जिंदगी है कि बेताल्लुक-सा / जाना चाहिए। अगर महिमा वगैरह देखने से ऊब चुके हो, एक टुकड़ा किसी कहानी का। वैराग्य जगा है, देख ली कि जिंदगी बेकार है, अब और -अप्रासांगिक, लोग कहे जा रहे हैं। लोग बोले जा रहे हैं। खेल-तमाशा देखने की आकांक्षा नहीं रही है, अब सब खिलौनों लोग होश में नहीं हैं। तुम समय मत गंवाना। तुम हर घड़ी को से ऊब गए हो, तो मेरे पास आना। उस आखिरी घड़ी में ही मेरे अपना होश साधने में लगाना। पास आने का कुछ सार है। एक और मित्र ने पूछा है कि जब भी आपके पास आते हैं तो | तो पहले तो तुम भटक लो। तुम सब के पास हो आओ। तुम कुछ लोग हैं, वे कहते हैं, 'वहां जाने से क्या फायदा? क्या सब जगह देख लो। अगर कहीं सत्य मिल जाए तो बहुत मिलेगा वहां? वहां कुछ भी नहीं है। सत्य साईंबाबा के पास अच्छा। अगर न मिले तो फिर मेरे पास आना। जाओ, अगर महिमा देखनी है।' __ लोग ठीक ही कहते हैं। लोगों से नाराज होने की कोई जरूरत वे भी ठीक कहते हैं। यहां कुछ भी नहीं है। यहां मेरा सारा | नहीं है। शिक्षण ही ना-कुछ होने के लिए है। वे बिलकुल ठीक कहते हैं। क्या मैकदों में है कि मदारिस में वो नहीं यहां तुम्हें देने का कोई सवाल ही नहीं है; तुम्हारे पास जो-जो अलबत्ता एक वां दिले-बेमुद्दआ न था। उसे भी खंडित करना है. तोडना है. मिटाना है. बडा मधर वचन है। तथाकथित ज्ञानियों के स्कलों में कौन-सी तुम्हें भी शन्य की तरफ ले आना है। इतना शून्य हो जाए तुम्हारे चीज की कमी है? कुछ ऐसी चीज की कमी है जो कि मधुशाला भीतर कि कहनेवाला भी कोई न बचे, देखनेवाला भी कोई न बचे में भी है, लेकिन ज्ञानियों के स्कूलों में नहीं है। तो ही समाधि फलित होगी। क्या मैकदों में है कि मदारिस में वो नहीं! वे बिलकुल ठीक कहते हैं। महिमा देखनी हो तो कहीं और -मदरसे में जो नहीं है, वह मधुशाला में है। वह क्या है ? जाना चाहिए। मैं कोई मदारी नहीं हूं। और तुम्हारी किन्हीं अलबत्ता एक वां दिले-बेमुद्दआ न था। वासनाओं को तृप्त करने में मेरी कोई उत्सुकता नहीं है। तुम मुझे -निष्काम हृदय, आकांक्षा से रहित हृदय, वासना से शून्य महिमावान समझो, ऐसी भी मेरी कोई आकांक्षा नहीं है। तुम्हारी हृदय, तत्वज्ञानियों के मदरसों में भी नहीं है। वहां भी लोग आंखों को मैं दर्पण नहीं बनाना चाहता, जिसमें मैं अपनी तस्वीर वासना से ही जाते हैं। ईश्वर को भी खोजने जाते हैं ऐश्वर्य की देखें। मैंने अपने को देख लिया है, अब किसी दर्पण की मुझे तलाश में। स्वर्ग को भी मांगते हैं सुख की आकांक्षा में। भगवान कोई जरूरत नहीं है। को भी भजते हैं भय के कारण। बेमुद्दआ न था। अभी उनके मन तो तुम जब मेरे पास आते हो तो यह जानकर ही आना कि की फलाकांक्षा समाप्त नहीं हुई। फलाकांक्षा समाप्त हो, तो ही खतरे में जा रहे हो। मरने जा रहे हो। क्योंकि जीवन का गहनतम | धर्म से तुम्हारा संबंध जुड़ता है। फलाकांक्षा समाप्त हो, कुछ राज मरने की कला में छिपा है। . पाने जैसा न लगे, तो ही परमात्मा पाया जाता है। परमात्मा भी प्राचीन शास्त्र कहते हैं : गुरु मृत्यु है। वे बिलकुल ठीक कहते पाने जैसा न लगे, तो ही परमात्मा पाया जाता है। जब तुम हैं। कठोपनिषद में पिता ने अपने बेटे को यम के पास भेज परमात्मा को भी चाहने की उत्सुकता में नहीं हो; तुम कहते हो, दिया-वह गुरु के पास भेजा है। मृत्यु के पास भेजा। क्योंकि | सब चाह व्यर्थ हो गई; देख लीं सब चाहतें और सभी चाहतें जब तक तुम मिटोगे न, तब तक तुम वह न हो सकोगे जो तुम्हें व्यर्थ पायीं; चाह मात्र व्यर्थ हो गयी, अचाह पैदा हुई-बस होना चाहिए। यह तुम जो अभी हो गए हो, यह जो गलत ढांचा उसी अचाह में परमात्मा उपलब्ध होता है। तुम्हारे चारों तरफ इकट्ठा हो गया है, यह जो तुम समझते हो अभी यहां जो महिमा है वह शून्य की है। यहां जो महिमा है वह मृत्यु मैं हूं-यह तुम्हारा वास्तविक होना नहीं है, यह तुम्हारा स्वभाव की है, महामृत्यु की है। और जो मैं तुम्हें सिखा रहा हूं वह बहुत नहीं, यह तुम्हारा स्वरूप नहीं। गहरे अर्थों में आत्मघात है-तुम कैसे अपने को मिटा लो, पोंछ 215 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibray.org
SR No.340110
Book TitleJinsutra Lecture 10 Zindagi Nam Hai Ravani Ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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