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________________ जिंदगी नाम है रवानी का शरहे-फिराक मदहे-लबे-मुश्कबू करें जाएगा। तुम्हारे पास कुछ है; या उतर रहा है। तुम्हारी एक-एक -किससे कहें अपने प्रेमी के सुगंधित ओंठों की बात! इस घड़ी बहुमूल्य है। तुम बाजार में खड़े होकर दुकानों पर चर्चा बिछुड़न में कैसे कहें! करने में मत समय व्यतीत करना। तुम्हारे पास ध्यान की गुरबतकदे में किससे तेरी गुफ्तगू करें! संभावना है। तुम तो उनसे कह देना, आप ठीक कहते हैं, लेकिन - इस परदेस में किससे तेरी चर्चा करें! कुछ हो गया, मैं पागल हो गया। वे तुम्हें पागल भी समझ लें तो तो मैं तो दीवानों की तलाश में हूं, जो इस चर्चा को समझ | कुछ हर्ज नहीं। सकें। तुम्हारे कारण मैं नीचे उतरने को राजी नहीं है। हां, मेरे तुम मेरी आंखों की तरफ देखो! मैं तुम्हें क्या समझता है, कारण तुम ऊपर चढ़ने को राजी हो तो मेरे द्वार खुले हैं। यह मेरा इसकी फिक्र करो! और लोग तुम्हें क्या समझते हैं, इसकी चिंता संगीत नीचे न उतरेगा, ताकि तुम जहां हो वहां तुम समझ सको। छोड़ो! अगर तुम्हें मुझ पर थोड़ा भी भरोसा है तो मैं तुमसे कहता तुम्हें अगर मेरे संगीत को समझना है तो तुम्हें ही सीढ़ियां चढ़नी हूं कि तुम उस राह पर हो, जहां पागल हो जाना भी बुद्धिमानी है। पड़ेंगी और वहां आना होगा जहां मैं हूं। | और दूसरे लोग, जो तुमसे कह रहे हैं कि तुम गलत राह पर गए दो ही उपाय हैं मेरे और तुम्हारे मिलने के। एक तो यह है कि मैं हो, समझदार रहकर भी सिर्फ बुद्धिहीनता कर रहे हैं। और उन्हें नीचे उतरूं, जो कि असंभव है; क्योंकि कोई कभी ऊपर जाकर समझाने का एक ही उपाय है कि तुम बदलो। तुम्हारी क्रांति उन्हें नीचे नहीं उतर सकता। जो नीचे उतरा हुआ मालूम पड़े, वह | छुएगी। तुम्हारे जीवन में उठी नई ऊर्जा उन्हें प्रभावित करेगी। नीचे होगा ही, ऊपर गया नहीं है। तुम्हारा प्रेम, तुम्हारा आनंद। तुम्हारा तर्क नहीं। तुम्हारे शब्द दूसरा उपाय है कि तुम मेरी तरफ चढ़ो, मेरी बात तुम्हें पकड़ नहीं। तुम्हारा अस्तित्व। तुम कुछ ऐसे हो जाओ, जो मैं कह रहा ले, मेरे शब्द तुम्हारे प्राणों को जकड़ लें, मेरी पुकार तुम्हें सुनाई हूं वैसे हो जाओ। फिर तुम देखना, वे खुद ही तुमसे पूछने पड़ जाये, तुम्हारी निद्रा में, तुम्हारे स्वप्न में थोड़ी खलल पड़ लगेंगे, 'कहां से यह तृप्ति आई?' अंधे थोड़े ही हैं वे लोग! वे जाए, एक धागा भी तुम मेरे शब्दों का पकड़कर उठने लगो-तो भी आंखवाले हैं। हीरे दिखाई पड़ने लगें तो वे भी समझेंगे, धीरे-धीरे जैसे-जैसे तुम ऊपर उठोगे वैसे-वैसे मेरी बात साफ कितनी देर न समझेंगे! तुम हीरा बनो! तुम्हारे भीतर चमक होगी। जैसे-जैसे तुम ऊपर उठोगे वैसे-वैसे तुम्हें लगेगा कि धर्म आए। वही तुम्हारा तर्क होगा। क्या है। अनुभव तुम्हारा गहरा होगा तो तुम पाओगे कि मैं धर्म | मैं तुमसे शाब्दिक विवाद में पड़ने को नहीं कहता हूं। और तुम के खिलाफ बोल रहा था, क्योंकि मैं धर्म के पक्ष में हूं; चूंकि मैं इसकी बिलकुल फिक्र मत करना कि तुम्हें मेरी रक्षा करनी है। शास्त्र के खिलाफ बोल रहा था, क्योंकि मैं शास्त्र के पक्ष में हूं। मेरी रक्षा की कोई भी जरूरत नहीं है। मेरा होना न होना, लोग लेकिन मैं जीवंत अनुभव तुम्हें देना चाहता था। राख पर मेरा क्या कहते हैं, इस पर निर्भर नहीं है। मैं हूं। वे पक्ष में हों कि भरोसा नहीं है। अंगारे मैं अपनी झोली में लिये बैठा हूं, जो भी विपक्ष में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरे होने पर कोई रेखा जलने को राजी हों। | नहीं पड़ती इससे। इसलिए तुम इसकी फिक्र ही मत करना। तो घर के लोग ठीक ही कहते हैं। उनसे बेचैन मत होना। मेरे शिष्यों को मुझे बचाने की चिंता ही नहीं करनी चाहिए। उनसे विवाद मत करना। उनसे नाहक माथा-पच्ची मत करना। क्योंकि जिस गुरु को बचाने के लिए शिष्यों को चेष्टा करनी क्योंकि माथा-पच्ची में तुम व्यर्थ ही अपना समय गंवाओगे। पड़ती हो, वह गुरु ही नहीं। जो शिष्यों के आधार पर बचता हो, कह देना कि हां ठीक कहते हैं आप; अब मैं क्या करूं, मैं पागल वह बचाने योग्य भी नहीं। तुम इसकी फिक्र छोड़ दो। हो गया हूं। तुम पागल होकर अपने को बचा लेना। व्यर्थ के तुम्हारे अहंकार को चोट लगती है, वह मैं जानता हूं। जब विवाद, व्यर्थ की चर्चा, व्यर्थ के सिद्धांतों के विश्लेषण-और तुम्हारे गुरु को कोई गाली देता है, तो तुम्हीं को गाली देता है इस सब में समय मत खोना। क्योंकि उनका तो कुछ न परोक्ष से। जब कोई कहता है कि तुम्हारा गुरु धर्म भ्रष्ट करने खोएगा-उनके पास कुछ भी नहीं है तुम्हारा कुछ खो वाला है, तो वह तुमसे यह कह रहा है कि तुम धर्म भ्रष्ट हो रहे 213 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340110
Book TitleJinsutra Lecture 10 Zindagi Nam Hai Ravani Ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size39 MB
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