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________________ अनुकरण नहीं-आत्म-अनसंधान लेटकर, क्या उसे और गहरी करनी है ? तो महावीर खड़े ही खड़े है, जैसे देखता ही नहीं है। सुनता भी नहीं। हिलाया-डुलाया साधना किये हैं, ताकि जागरण बना रहे। शरीर थक जाता है। भी, लेकिन ओंठ न हिले। उसने यह भी न कहा कि मैं बहरा हूं। एक घड़ी आती है, शरीर कहता है, अब बैठो, अब विश्राम | वह भागा। खोज-खोजकर जंगल में भटकता रहा, सांझ करो! और महावीर कहते, 'छोड़ बकवास! हो गया बहुत होते-होते लौटा तो देखा कि गायें आकर महावीर के पास बैठी विश्राम। अब नहीं करना विश्राम।' खड़े ही रहते, खड़े ही हैं। अरे! उसने कहा, यह तो बड़ा चालबाज है। होशियार है। रहते, तब थकान मन में उतरती। मन कहता, अब यह बहुत हो | कहीं छिपा रखा था, अब भागने की तैयारी कर रहा था। देखता गया, अब तो गिर जाओगे। महावीर कहते कि सुनना नहीं है। था कि सूरज ढले, अंधेरा हो जाए ले भागे। उसने कहा कि जब तक कि भीतर की चेतना खड़ी न हो जाए, वे नहीं सुनते। इसने तो बड़ी चालबाजी की। इसलिए बना हुआ खड़ा है। वह धीरे-धीरे थकान वहां तक पहुंच जाती है—उस गहरे तल तक क्रोध में आ गया। उसने कहा, मैं देखता हूँ, तेरा यह बहरापन कि आत्मा भी झिझककर खड़ी हो जाती है। क्योंकि यह तो घड़ी नकली है। अब मैं तुझे असली बहरा बनाए देता हूं। मरने की आ गई। उसने दो लकड़ी की खूटियां दोनों कानों में ठोंक दी। महावीर महावीर ने हजार तरह से मौत की घड़ी को अपने पास लाए, खड़े रहे, तब भी कुछ न बोले। क्योंकि मौत की घड़ी ही जगा सकती है। जीवन तो जगा न पाया, कहानी बड़ी प्रीतिकर है। अब इतनी प्रीतिकर कहानियां घटती जीवन ने तो खूब सुला दिया। नहीं, क्योंकि लोग काव्य की भाषा भूल गए हैं; गणित का गंदा मौत का भी इलाज हो शायद, हिसाब सीख गए हैं। जिंदगी का कोई इलाज नहीं। कहानी बड़ी महत्वपूर्ण है। इंद्र घबड़ा गया। देवता घबड़ा यह जिंदगी तो बहुत सुला गई। यह जिंदगी तो बहुत जिंदगी गए। क्योंकि ऐसा देवपुरुष मुश्किल से होता है। वे भागे हुए सिद्ध न हुई; साथी-संगी सिद्ध न हुई। यह तो मूर्छित कर गई, आए और उन्होंने कहा, 'आप हमें आज्ञा दें। आप बड़े बेहोश कर गई। तो महावीर ने मौत का उपयोग किया-जगाने असुरक्षित हैं। ऐसे तो कोई भी मार डालेगा। हम साथ रहेंगे। के लिए। भूखे, प्यासे-खड़े रहे। हम सुरक्षा रखेंगे। यह दुबारा नहीं होना चाहिए।' एक गांव में...खड़े थे गांव के बाहर। मौन लिये हुए थे। एक महावीर बोलते तो नहीं थे, लेकिन यह तो अंतर की बात है; गडरिया कह गया कि ये जरा मेरी गायों को देखते रहना, मैं अभी बाहर से तो कुछ कहा नहीं था, न बाहर से कुछ सुना गया था। आया। वे तो कछ बोलते न थे, इसलिए कछ बोले नहीं। और महावीर ने भीतर से कहा कि जो हआ है, ठीक हआ है। यह ते वह जल्दी में था, इसलिए उसने कुछ फिक्र भी न की। उसने | देखो कि मुझे कितनी जाग मिली है। तुम यही देख रहे हो कि समझा : मौनं सम्मति लक्षणम्। खड़ा है फकीर, देख लेगा। वह | कान में खीले ठोंक दिए। कान तो जाते ही, आज नहीं कल अर्थी लौटकर आया, गायें तो सरक गईं, इधर-उधर हो गईं, जंगल में | पर चढ़ते ही, जल ही जाते, टूट ही जाते, इनका क्या लेना-देना चली गईं। वह बड़ा नाराज हुआ। वह चिल्लाया कि क्या हुआ, है! मिट्टी मिट्टी में मिलती। तुम यह तो देखो, कितनी जाग दे मेरी गायें कहां गईं? तुम खड़े-खड़े यहां क्या कर रहे हो? जरा गया वह आदमी! जब वह खीले ठोंक रहा था, तब शरीर ने पूरी रोक लेते, तुम्हारा क्या बिगड़ जाता? लेकिन उसने देखा, यह चेष्टा की थी कि बोल, रोक, लेकिन उस समय मैं संयम साधे आदमी तो खड़ा ही है; यह तो बोलता ही नहीं; आंख भी नहीं रहा। मैंने कहा, 'क्या बोलना है? क्या रोकना है? जो मिटेगा झपकता। जैसे इसने सुना ही नहीं। उसने कहा, क्या बहरे हो? | वह मिट रहा है। जो कल मिटेगा, वह आज मिट रहा है। जो मगर वह तब भी कुछ न बोला। तो यह सोचकर कि बहरा ही है, जलेगा अग्नि में उसको बचाना क्या है? कौन बचा पाया है? वह बेचारा भागा कि इससे फिजल समय खराब करने में कोई | इधर कान में खीले ठुकते गए, वहां भीतर कोई जागने लगा। मैं सार नहीं है। पागल है, या बहरा है, या क्या मामला है! आंख शरीर से अलग हो गया। उसकी कृपा बड़ी है। वह बड़ी दया भी नहीं झपकता। देखता ही चला जाता है। और देखता भी ऐसे कर गया है। सहायता करनी हो, उसकी करो, क्योंकि वह मुझे 1195 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340109
Book TitleJinsutra Lecture 09 Anukaran Nahi Aatm Anusandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size44 MB
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