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________________ जिन सत्र भागः जगा गया है—जो मुझसे नहीं हो पाता था, वह कर गया है। लेकिन इजाजत मांगने में उलझ गए। फिर जब 'नहीं' कह दिया बड़ा दुर्धर्ष योद्धा का रूप है महावीर का। संघर्ष उनका सूत्र | गया तो ये हिम्मत न जुटा सके करने की। इन्होंने शास्त्रों के आदेश सुन लिये, शास्ताओं की आवाज सुन ली। इन्होंने 'अविजित एक अपना आत्मा ही शत्र है। अविजित कसाय मुनियों के वचन सुन लिये, सदगुरुओं की बात सुन ली। पूछ और इंद्रियां ही शत्रु हैं। हे मुने! मैं उन्हें जीतकर यथान्याय बैठे। अब तोड़ें तो अपराध लगता है मन में; न तोड़ें तो पीड़ा विचरण करता हूं।' होती है। और ये देखते हैं, दूसरे पीए जा रहे हैं। उन्होंने पूछने की यह वचन बड़ा बहुमूल्य है। ही फिक्र न की। एगप्पा अजिए सत्तू, कसाया इंदियाणि य। अगर तुम धार्मिक जीवन जी रहे हो, तो तुम्हारे मन में यह ते जिणित्तु जहानाय, विहरामि अहं मुणी।। सवाल कभी भी न उठेगा कि अधार्मिक मजे में हैं और मैं दुख में उन्हें जीतकर मैं उस परम धर्म के अनुसार आचरण करता हूं। हूं। अगर यह सवाल उठता है तो इसका अर्थ है कि तुम्हारा इससे बड़ी गलती होती है। क्योंकि अनुवाद या मूल भी गलत धार्मिक जीवन झूठा-झूठा, उच्छिष्ट, उधार, बासा। तुमने नियम समझा जा सकता है।...'यथान्याय' धर्मानुसार विचरण करता | पकड़े हैं, बोध नहीं पकड़ा; अन्यथा यह असंभव है कि धार्मिक हूं...तो अनुयायियों ने समझा कि धर्म के अनुसार विचरण करने | आदमी और आनंद में न हो। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि धार्मिक से, यथान्याय आदमी विजेता हो जाता है। लेकिन महावीर आदमी को महल मिल जाएंगे। मिल भी सकते हैं, न भी मिलें। बिलकुल उलटी बात कह रहे हैं। वे कह रहे हैं, 'हे मुने! मैं उन्हें मैं यह नहीं कह रहा हूं कि धार्मिक आदमी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री जीतकर...।' जीतना पहले है। जागना पहले है। हो जाएगा। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि उसके आसपास '...यथान्याय धर्मानुसार आचरण करता हूं।' जाग गया हूं, | सोने-चांदी की वर्षा हो जाएगी। पर मैं यह कह रहा हूं कि अब धर्मानुसार आचरण हो रहा है। धर्म यानी स्वभाव। धर्म धार्मिक आदमी के पास कुछ भी न हो तो भी जिनके पास यानी विवेक जाग्रत, सुप्रतिष्ठित; तुम्हारी भीतर की ज्योति सोने-चांदी की वर्षा हो रही है, उनसे वह ज्यादा आनंदित होगा। जलती हुई; तुम्हारा दीया बुझा हुआ नहीं, जलता हुआ; तुम्हारे | जो पदों पर हैं, उनसे वह ज्यादा प्रतिष्ठित होगा। जिनके पास प्राण चमकते हुए। फिर स्वभावतः आचरण धर्म का होता है। सब है, उनसे ज्यादा होगा उसके पास, चाहे कुछ भी न हो। यह फिर तम जो भी करते हो वही नीति है। फिर तम जो भी करते हो होना कछ भीतरी है। वही न्याय है। फिर तुम जो भी करते हो वही शुभ है। अगर तुम ईमानदार हो तो ईमानदारी काफी है आनंद। ध्यान रखना, शुभ को साधने की चेष्टा नहीं की जा सकती। ईमानदार होने का मजा इतना है कि फिर कौन फिक्र करता है, जागरण के साथ शुभ के फूल खिलते हैं। ईमानदारी से कुछ और मिला कि नहीं। कुछ और की फिक्र तो एक ट्रेन में एक आदमी ने पूछा कि क्या मैं यहां सिगरेट पी वही करता है जो ईमानदार नहीं है। यहां बेईमान भी अपने को सकता हूं। जिस रेलवे कर्मचारी से पूछा था, उसने कहा, 'जी ईमानदार समझते हैं। तुमने कभी कोई आदमी देखा जो तुमसे नहीं। यहां सिगरेट पीना सख्त मना है।' / कहता हो कि मैं बेईमान हूं? कोई नहीं कहता। 'तो फिर यह सिगरेट के टुकड़े किसके पड़े हैं?' उस आदमी एक अदालत में मजिस्ट्रेट ने एक चोर से पूछा कि तूने इस ने कहा। दुकान में रात में पांच बार प्रवेश किया, पूरी रात? 'यह उन लोगों के हैं जो इजाजत नहीं मांगते।' उसने कहा, 'क्या करूं मालिक! ईमानदार संगी-साथी यहां जो जिंदगी है, इसमें मैं अकसर देखता हूं, लोग मेरे पास मिलते ही नहीं। अकेले...जमाना ऐसा खराब होग आते हैं, वे कहते हैं, 'हम ईमानदार हैं, फिर भी जीवन में कोई खटपट की आवाज से मुल्ला नसरुद्दीन की नींद उचट गई। सुख नहीं; और बेईमान फल-फूल रहे हैं। ये भी बेईमान हैं। सीढ़ियां उतरकर उसने देखा कि चोर रसोई घर का सामान बोरे में मगर ये इजाजत मांगकर फंस गए हैं। पीना तो ये भी चाहते थे। समेट रहा है। दरवाजा मेढ़कर उसने पीछे से ललकारा, 'सारा 196 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340109
Book TitleJinsutra Lecture 09 Anukaran Nahi Aatm Anusandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size44 MB
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