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________________ जिन सत्र भ ही रहे। उसके साथ ही साथ राग का अंधापन आता है। राग से मत लड़ो और एक बार जब इंद्रियां तुम्हारे वश में आ जाती हैं, तो तुम्हारे विवेक को जगाओ। जैसे-जैसे विवेक जगेगा-असली लड़ाई जीवन में एक प्रसाद पैदा होता है, एक सौंदर्य पैदा होता | वही है, विवेक को जगाने की। है-मालिक का सौंदर्य, सम्राट का सौंदर्य। तभी तो हमने मुल्ला नसरुद्दीन चोरों से डरता है। नए मकान, नए पड़ोस में फकीरों को पूजा और सम्राटों की फिक्र छोड़ दी। कौन जानता है रहने गया, तो एक कुत्ता खरीद लाया—उसने कहा बड़े से बड़ा आज, महावीर के समय में कौन-कौन सम्राट थे? प्रसेनजित को कुत्ता जो मिल सकता था, मजबूत से मजबूत। दुकानदार से पूछा कौन जानता है? बिंबिसार को कौन जानता है? अगर हम | कि 'यह काम आएगा?' उसने कहा, 'काम से उनका नाम भी जानते हैं तो इसीलिए कि महावीर के जीवन में ज्यादा...देखते हो इसको! सम्हालकर रहना। यह खतरनाक कहीं-कहीं उनका उल्लेख है। कौन फिक्र करता है उनकी? है।' लेकिन जिस दिन कुत्ता खरीदकर लाया, उसी रात चोरी हो चूंकि बिंबिसार महावीर से मिलने आया था, इसलिए उसकी भी गई। बड़ा परेशान हुआ। वापिस भागा हुआ दुकानदार के पास याद है; कि प्रसेनजित नमस्कार करने आया था, इसलिए उसकी पहुंचा कि यह क्या मामला है। उसने कहा कि इसमें क्या मामला भी याद है। जो नहीं आए, उनके तो नाम भी खो गए। क्या है। यह कुत्ता इतना बड़ा है, इसको जगाने के लिए एक छोटा हुआ? फकीर इतने मूल्यवान कैसे हो गए? यह नंगा आदमी, | कुत्ता भी चाहिए। यह सोया रहा, इसको चोर-वोर...यह कोई जिसके पास कुछ भी न था—जरूर इसके पास कुछ रहा होगा छोटा-मोटा कुत्ता है! एक छोटा कुत्ता और खरीदो! वह कि सम्राट फीके हो गए। एक दुर्धर्ष बल था। इसने चुनौती घबड़ाहट में चीखेगा, चिल्लाएगा तो यह उठेगा; नहीं तो यह स्वीकार की थी। यह हारा नहीं, इसने अपने पुरुषत्व को सिद्ध | उठनेवाला भी नहीं है। किया था। इसने अपनी मालकियत की घोषणा कर दी थी। कुछ | वह तुम्हारे भीतर का जो मालिक है, कितने जन्मों से घर्राटे ले भी हो जाए, इसने एक बात जारी रखी कि मालिक मैं हं। रहा है, सो रहा है! साधना कुछ भी नहीं है, छोटे-छोटे उपाय हैं होश मालिक है। और होश के अनुसार सब चलना चाहिए। जिनसे वह सोया हुआ मालिक जगने लगे। इस भांति अगर तुम यह बिलकुल ठीक गणित है जीवन का। साधना को देखोगे तो बड़े नए अर्थ खुलेंगे। अमीरे-दो जहां बन जा, असीरे-खारो-खस कब तक? महावीर ने महीनों तक उपवास किए हैं। वह कुछ भी नहीं, वह नई सूरत से तरतीबे-बिनाए-आशियां कर ले। छोटा कुत्ता खरीदना है। उपवास में जब तुम्हें भूख लगेगी, और -दो दुनियाओं के तुम मालिक बन सकते हो। तुम शरीर की न सुनोगे और शरीर कहेगा, भूख लगी, भूख अमीरे-दो जहां बन जा, असीरे-खारो-खस कब तक? लगी, भूख लगी और तुम शरीर की न सुनोगे, तो भूख धीरे-धीरे -यह कांटों में, झाड़ियों में कब तक उलझे रहना? शरीर से उतरकर मन पर आएगी। फिर भी तुम न सुनोगे। मन नई सूरत से तरतीबे-बिनाए-आशियां कर ले। लेकिन फिर चीखेगा, चिल्लाएगा, रोएगा, गिड़गिड़ाएगा, हजार उपाय तुम्हें एक नई दृष्टि और एक नई शैली खोजनी होगी-अपने घर करेगा; समझाएगा कि मर जाओगे; ऐसे भूखे रहे तो क्या होगा को बनाने की। नई सूरत से तरतीबे-बिनाए-आशियां कर तुम्हारा, यह शरीर जीर्ण-शीर्ण हुआ जाता है—तब भी तुम न ले-फिर तुम्हें अपना नीड़ कुछ और ढंग से बनाना होगा। सुनोगे तो भूख आत्मा तक पहुंच जाएगी। और जब भूख आत्मा अभी तुमने जो बनाया है, वह गलत है। इसमें गुलाम मालिक हो तक पहुंचती है तो आत्मा जगती है। तुम शरीर को ही तृप्त कर गया है, मालिक गुलाम हो गया है। इसमें नौकर सिंहासन पर देते हो, भूख मन तक ही नहीं पहुंच पाती; आत्मा तक पहुंचने बैठ गए हैं, सम्राट सोया है। उसे पता ही नहीं कि क्या हो रहा का क्या सवाल है? यह तो चुभाना है तीर का—उस सीमा तक है। सम्राट को जगाना होगा। | जहां तुम्हारा असली मालिक सोया है। सम्राट यानी तुम्हारा विवेक। जैसे ही विवेक जगता है उसके तो महावीर खड़े ही खड़े साधना करते थे, बैठते नहीं थे, लेटते साथ-साथ वैराग्य की व्यवस्था आती है। विवेक सो जाता है, नहीं थे। क्योंकि वैसे ही नींद गहरी है और अब बैठकर और 194 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340109
Book TitleJinsutra Lecture 09 Anukaran Nahi Aatm Anusandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size44 MB
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