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________________ अनुकरण नहीं-आत्म-अनुसंधान कर दूं जिनसे कड़वे फल आते हैं; उस फसल को जला डालूं, | तुम्हारे हाथ में होनी चाहिए। लेकिन अकसर, लोग इतनी झंझट निर्जरा करूं उन कर्मों की जिनके कारण मैं दुखी हो रहा हूं। नहीं लेते, क्योंकि घोड़े को सिखाना पड़ेगा। 'आत्मा ही सुख-दुख का कर्ता है और विकर्ता, भोक्ता। मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन अपने गधे पर बैठकर कहीं जा सत्प्रवृत्ति में स्थित आत्मा अपना ही मित्र है।' रहा था। बड़े जोर से भागा जा रहा था। किसी ने पूछा, कहां जा महावीर कहते हैं, न तो तुम्हारा मित्र तुम्हारे बाहर है, न तुम्हारा रहे हो? उसने कहा, गधे से पूछो। क्योंकि मैंने तो यह आशा ही शत्र। जब तुम सत्प्रवृत्ति में हो...क्या है सत्प्रवृत्ति?...जब तुम छोड़ दी कि इसको चलाना संभव है। झंझट खड़ी होती है। बीच जागे हुए, शांत, आनंद-मग्न, निर्दोष भाव से ध्यानस्थ हो, बाजार में फजीहत होती है। कई दफे इसको चलाने की कोशिश सम्यक हो, संतुलित हो, तब तुम सत्प्रवृत्ति में हो। तब तुम मित्र | कर चुका-गधा है। मैं कहता हूं, बाएं चल, वह दाएं जा रहा हो। दुष्प्रवृत्ति में तुम ही अपने शत्रु हो। कोई तुम्हारा शत्रु नहीं। है। बीच बाजार में भीड़ लग जाती है; आखिर में मुझे हारना इसलिए किसी और से मत लड़ना। लड़ना है तो अपने से। पड़ता है। इससे मैंने फिर एक तरकीब निकाल ली : यह जहां जीतना है तो अपने को। बदलना है तो अपने को। होना है तो जाता है वहीं हम जाते हैं। अब कम से कम फजीहत तो नहीं स्वयं में। सारा खेल तुम्हारे भीतर है। होती। कोई यह तो नहीं कह सकता कि गधा मेरी मानता नहीं। 'अविजित एक अपना आत्मा ही शत्रु है।' हालांकि मैं जानता हूं कि वह मानता नहीं है, वह अपनी तरफ से अविजित, जो जीता नहीं गया, ऐसा अपना आत्मा ही शत्रु है। | जाता है। एगप्पा अजिए सत्तू, कसाया इन्दियाणि य। गधे की अपनी यात्रा है। ते जिणित्तु जहानाय, विहरामि अहं मुणी।। बहुत लोग ऐसी ही दशा में हैं-अधिक लोग। जहां इंद्रियां 'अविजित कसाय और इंद्रियां ही शत्रु हैं। हे मुने। मैं उन्हें जाती हैं, तुम चले जाते हो; क्योंकि कौन फजीहत करे, कौन जीतकर यथान्याय, धर्मानुसार विचरण करता हूं।' | झगड़ा-झांसा करे! अगर इंद्रियों को वहां ले जाना है जहां तुम्हें महावीर कहते हैं, जब तक तुम्हारी इंद्रियां तुम्हारे बस में नहीं, | जाना है, तो बड़ा संयम चाहिए पड़ेगा, बड़ा अनुशासन, बड़ा तुम्हें चलाती हैं और तुम उनके पीछे चलते हो, तब तक दुख | प्रशिक्षण। इंच-इंच इंद्रियां लड़ेंगी। क्योंकि कौन अपनी होगा। होगा ही। अंधे का सहारा लेकर जो चलेगा, वह गड्ढे में | मालकियत इतनी आसानी से खोता है ! इंद्रियां जन्मों-जन्मों तक गिरेगा। इंद्रियों के पास कोई आंख थोड़े ही है। इंद्रियों के पास मालिक रहीं। गधे ने जन्मों-जन्मों तक तुम्हारी यात्रा तय की है। कोई बोध थोड़े ही है। तुम्हारी जीभ कहती है, खाए जाओ। जीभ आज अचानक तुम कहने लगे कि मेरी मानकर चलो! गधा के पास बोध थोड़े ही है, सिर्फ स्वाद है। कब रुकना है, कितना कहेगा, सोचो भी, क्या कह रहे हो? किससे कह रहे हो? होश खाना है, कब नहीं खाना है, कब बिना खाए गुजार देना है, कब है कुछ? जो सदा से होता आया है, वही होगा। जद्दोजहद पेट भर गया, कब पेट खाली है। कब जरूरत है, कब जरूरत होगी। गधा संघर्ष देगा। इंद्रियां लड़ेंगी। लेकिन अगर तुम नहीं है--जीभ कैसे कहेगी? जीभ के पास कोई बोध थोड़े ही इंद्रियों की मानकर चलने लगे, इसलिए कि कौन संघर्ष करे, तो है। वह बोध तो तुम्हारे पास है। बोध को तो तुमने रख दिया है तुम्हारी आत्मा कभी पैदा न हो पाएगी। बांधकर एक तरफ। जीभ की मानकर चलते हो, उलझन होगी, | इसलिए मैं कहता हूं, महावीर का मार्ग संघर्ष का, संकल्प का, अड़चन होगी। योद्धा का। इसीलिए तो उनको हमने महावीर कहा। साधारण जननेंद्रिय के पास कोई बोध थोड़े ही है। जननेंद्रिय की उत्तेजना | वीर भी नहीं कहा, महावीर कहा। यह उनका नाम नहीं है: यह अगर तुम्हें वासना में ले जाती है, तो तुम अंधे का हाथ पकड़कर | तो लोगों ने उनके संघर्ष को देखा। उनके दुर्धर्ष संघर्ष को देखा। चल रहे हो। अंधों का हाथ पकड़कर चलनेवाले गड्डों में गिरेंगे। | उनके योद्धा के भाव को देखा। देखा कि उन्होंने किसी चीज की सोचो! बोध तुम्हारे पास है। तो तुम घोड़े की मानकर मत कभी चिंता न की, संघर्ष कितना ही लंबा हो; लेकिन जब तक | चलो। लगाम हाथ में रखो। घोड़ा बुरा नहीं है, शुभ है-लगाम | विजय निश्चित न होगी, तब तक वे रुके नहीं, तब तक वे लड़ते 193 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary org
SR No.340109
Book TitleJinsutra Lecture 09 Anukaran Nahi Aatm Anusandhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size44 MB
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