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________________ तुम मिटो तो मिलन हो प्रतिमा देखी? निश्चित बूढ़े हुए थे, अस्सी वर्ष के हो गये थे, रटन में इतने लीन हो कि तुम्हें फुर्सत कहां कि तुम जरा आंख तब तीर लगा और मरे। बुद्ध की तुमने बूढ़ी प्रतिमा देखी? खोलो और देखो कि कौन आया है! रटन जब वस्तुतः हार्दिक महावीर की तुमने बूढ़ी प्रतिमा देखी? नहीं, हमने कोई बूढ़ी होती है तो रटन होती ही नहीं। आवाज कहां उठती है। बोल उनकी प्रतिमा नहीं बनायी। इसलिए नहीं कि वे बूढ़े नहीं हुए थे; कहां उठते हैं! सब खो जाता है, सन्नाटा हो जाता है। बूढ़े तो हुए थे, लेकिन हम पहचान गये कि उनके भीतर जो घटा परमात्मा की खोज में निकले खोजी, परमात्मा को पाने के था वह नित नवीन था। सद्यःस्नात! अभी-अभी नहाया हआ। पहले खद खो जाते हैं। इसी क्षण जन्मा! वे ही उसे पाते हैं जो अपने को खो देते हैं। मन तो पुराना है। मन की धारणाएं पुरानी हैं। परमात्मा रटन का हिसाब छोड़ो। माला कितनी जपी, यह फिक्र छोड़ो। प्रतिपल नया है-नयी फटती कोंपल की भांति! नयी खिलती कितनी बार उसका नाम लिया, यह फिक्र छोड़ो। कली की भांति! मैं एक घर में मेहमान था। तो पूरा घर शास्त्रों से भरा पड़ा था। छोड़ो धारणाएं मन की, तो तुम उसे सब तरफ से आते तो मैंने कहा, 'बड़े शास्त्र हैं, क्या मामला है? कौन-कौन से पाओगे। हर पगध्वनि में उसी की पगध्वनि सुनायी पड़ेगी। शास्त्र हैं।' उन्होंने कहा, 'कुछ नहीं, सब शास्त्रों में राम-राम कोयल के मधुर कंठ में ही नहीं, कौवे की कांव-कांव में भी वही | लिखा है।' वे जिनके घर मैं ठहरा था, वे राम-भक्त थे। तो है। और जब तक तुम कौवे में न पहचान पाओगे, तब तक तुम | उनका काम ही है यह चौबीस घंटे, वे और कोई काम नहीं करते, जानना, पहचान पक्की न हुई। राम में ही नहीं, रावण में भी वही वे किताब लिये बैठे रहते हैं : राम-राम-राम-राम....। हजारों है। और जब तक तुमने कहा कि रावण में नहीं है, तब तक तुम किताबें उन्होंने खराब कर दी हैं। मैंने उनसे कहा, बच्चों को दे राम में भी न पहचान पाओगे।। | देते, पढ़ने के काम आ जातीं, स्कूल में बांट देते-ये तुमने तुलसीदास ने तो हद्द कर दी नासमझी की! कृष्ण में भी न | खराब क्यों कर दीं? अपना भी समय खराब किया। और मैंने पहचान पाये राम को, तो रावण में तो कैसे पहचान पायेंगे! उनसे कहा, देखो तुम ऐसे लिखते रहते हो चश्मा चढ़ाये, क्योंकि महाकवि रहे होंगे, जाग्रत पुरुष नहीं। काव्य की महिमा है आंखें धुंधली हो गई हैं, बूढ़े हो गये-राम कई दफे आता है, उनकी। बड़े सुंदर उनके वचन हैं। लेकिन कहीं कुछ चूका-चूका लौट जाता है। तुम्हें कभी फुर्सत में नहीं पाता। तुम्हें राम-राम है, कहीं कुछ खोया हुआ है-अनुभव खोया हुआ है। लिखने से फुर्सत मिले, तब न! राम हटे तो राम मिले! श्याम फिर जीवन की कभी शाम न होगी, अगर परमात्मा से पहचान | हटे तो श्याम मिले! तुम मिटो तो मिलन हो! हो गयी। जीवन की सांझ होती है, सुबह होती है, परिवर्तन होता थक थक के हर मुकाम पे दो-चार रह गये है, जन्म और मौत होती है; क्योंकि उससे हमारी पहचान नहीं हो तेरा पता न पाएं तो नाचार क्या करें! पाती, जो सनातन है, शाश्वत है। यह तसव्वुफ की भाषा है, प्रेम की, सूफियों की! 'शाम शाम कूकदी नूं जिंदगी दी शाम होई। थक थक के हर मुकाम पे दो-चार रह गये। आया नहीं शाम मेरा, ओस नूं मिलायो जी।।' परमात्मा की खोज में जो निकलता है, एक घड़ी आती है थक श्याम-श्याम रटते जीवन की सांझ हो गयी, अब तो जागो! जाता है, खो जाता है। रटन से कुछ भी न होगा। देखो! दर्शन चाहिए! आंख चाहिए! थकथक के हर मुकाम पे दो-चार रह गये। तुम्हारी रटन के कारण ही श्याम बहुत बार आया और लौट | तेरा पता न पाएं तो नाचार क्या करें। गया। उसने कहा, अरे! यह तो अभी भी रट रही है। अभी भी हम असहाय करें भी क्या, तेरा पता तो मिलता नहीं। खाली नहीं है! अभी भी मन इसका मुक्त नहीं है, शांत नहीं है! खोजते-खोजते खुद ही खो जाते हैं, अपना ही पता खो जाता है। अभी भी किसी श्याम-श्याम, को रट रही है! लेकिन जिस क्षण अपना पता खो जाता है, उसी क्षण सब तुम्हारी रटन के कारण ही तो पर्दा खड़ा हो गया है। तुम अपनी | | दिशाओं से उसकी मंगल वर्षा होने लगती है। मंगल वर्षा तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340106
Book TitleJinsutra Lecture 06 Tum Mito to Milan Ho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size45 MB
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