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________________ जनसत्र पड़ता। राह चलती रहती है। लोग गुजरते रहते हैं। तुम और पहचानेंगे। तू हमें धोखा न दे पायेगा! तू धनुष-बाण लेकर सबके प्रति अंधे हो जाते हो, क्योंकि तुम्हारा मन एकाग्र आयेगा, कोई हर्ज नहीं, तो भी पहचानेंगे। तू मुरली हाथ में है-किसी वासना में, किसी कामना में, किसी आकांक्षा में, लेकर आयेगा तो भी पहचानेंगे। तू महावीर की तरह नग्न खड़ा अभीप्सा में, तुम एकजुट एकाग्र हो। तुम राह देखते हो किसी हो जायेगा, न धनुष-बाण होंगे न मुरली होगी, तो भी हम चेहरे की। पहचानेंगे। तू जीसस की तरह सूली पर लटक जायेगा, तो भी तो श्याम तो तुमने पुकारा होगा, लेकिन तुम किसी चेहरे की हमें धोखा न दे पायेगा! राह देख रहे हो-बांसुरी धरे हुए आयेगा, मोर-मुकुट लगाकर धार्मिक व्यक्ति मैं उसको कहता हूं, जिसने परमात्मा को आयेगा। तो तुम चूके! तुम्हारी इस आकांक्षा में ही, तुम्हारी इस चुनौती दे दी कि अब तू हमें धोखा न दे पायेगा, हम पहचान ही धारणा में ही पर्दा है। तुम्हारी कोई निश्चित मनोदशा है, जिसमें लेंगे! तू जिस रूप में आये, आ जाना; क्योंकि हमने अब एक तुम मांग कर रहे हो, ऐसा होना चाहिए। बात समझ ली है कि सभी रूप तेरे हैं। कहते हैं, तुलसीदास को कृष्ण के मंदिर में ले गये, तो वे झुके | फिर तुम कैसे चूकोगे? फिर जिंदगी की शाम कभी न होगी। नहीं। तुलसीदास जैसा समझदार आदमी भी नासमझी कर फिर जिंदगी सदा सुबह ही बनी रहेगी। गया। झुके नहीं, क्योंकि वे राम के भक्त थे, कृष्ण की मूर्ति के शंकराचार्य के जीवन में एक उल्लेख है। सामने झुकें कैसे! खड़े रहे, अड़े रहे। वे तो एक को ही पहचानते कल ही मैं सांझ उनकी कहानी कह रहा था। शिष्यों को समझा थे-धनुर्धारी राम को। यह मुरली-मुरारि को, यह मुरलीधारी | रहे हैं। कुछ ऐसा उलझा हुआ प्रश्न खड़ा को, वे पहचानते न थे, मानते भी न थे। कैसे झुकें! दीवाल पर कलम उठाकर एक चित्र बनाया-समझाने के कहानी बड़ी मधुर है। कहानी यह है कि उन्होंने कहा कि तुम लिए। चित्र में बनाया एक वृक्ष-बोधिवृक्ष। उसके नीचे जब धनुष-बाण हाथ लोगे, तभी मैं झकंगा, नहीं तो मैं न बैठाया एक युवा संन्यासी को-गुरु की तरह। और फिर उस झुकुंगा। मैं तो एक का ही भक्त हूं। चित्र के आसपास, युवा संन्यासी के आसपास, बिठाये बड़े बूढ़े कहानी कहती है कि तुलसीदास के लिए कृष्ण ने हाथ में शिष्य, जीर्ण-जर्जर, बड़े प्राचीन! एक शिष्य ने खड़े होकर धनुष-बाण लिया, मूर्ति बदली। मुरली खो गई, मोर-मुकुट खो कहा, 'यह आप क्या कर रहे हैं? शा गया, धुनर्धारी राम प्रगट हुए-तब, तब तुलसीदास झुके। मैं युवक संन्यासी को गुरु और इन बूढ़े वृद्ध ऋषि-मुनियों को नहीं मानता हूं कि मूर्ति बदली होगी। तुलसीदास ने ही कोई शिष्य! आपसे कुछ गलती हो गई है।' सपना देखा होगा। शंकर ने कहा, गलती नहीं हुई, जानकर बना रहा हूं। क्योंकि कहीं परमात्मा तुम्हारे पक्षपातों के अनुसार ढलता है ? तुम | शिष्य सदा बूढ़ा है। क्योंकि शिष्य का अर्थ है : मन। मन बड़ा परमात्मा को आज्ञा दे रहे हो? तुम परमात्मा को कह रहे हो कि प्राचीन है। मन बड़ा पुराना है। मन यानी पुराना। मन यानी अगर मेरी स्तुति चाहिए हो तो इस ढंग से आ जाओ! ऐसे पीत अतीत। मन यानी जो हो चुका, उसकी धूल-धवांस; जो जा वस्त्र पहनकर, पीतांबर होकर खड़े होना; ऐसा नील वर्ण हो चुका उसके रेखा-चिह्न; जो बीत चुका उसके पद-चिह्न। तुम्हारा, ऐसी तुम्हारी आंखें हों, इस तरह से खड़े होना। तुम मन का अर्थ ही है : जो बीत चुका, उसकी लकीरें। बड़ा पुराना मद्रा, ढंग, रूप-रंग, सब तय किये बैठे हो, इसलिए परमात्मा से है मन! / चूक रहे हो। लोग धार्मिक होने के कारण धर्म से चूक रहे हैं। शिष्य के पास मन है। गुरु का मन खो गया है, तो अतीत खो क्योंकि धार्मिक होने में वे सांप्रदायिक हो गये हैं और उन्होंने एक गया। तो शंकर ने कहा, 'गुरु तो सदा नित-नवीन है, युवा है, रुख पकड़ लिया है। किशोर है।' इसलिए तुमने देखा! राम की तुमने कोई बूढ़ी मेरी सारी चेष्टा यहां यही है कि तम्हारे पक्षपात विसर्जित हो / प्रतिमा देखी? बढे कभी तो हए होंगे। कोई जगत नियम तो नहीं जायें। तुम मांग न करो। तुम कहो, तू जिस रूप में आयेगा, हम बदलता—किसी के लिए नहीं बदलता। कृष्ण की तुमने बूढ़ी 116 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340106
Book TitleJinsutra Lecture 06 Tum Mito to Milan Ho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size45 MB
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