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________________ जिन सूत्र भागः1 RTER पहले भी हो रही थी, लेकिन हम भरे थे, हम किन्हीं खयालों से खोने की तैयारी करो! मिटने की तैयारी करो! एक-एक इंच दबे थे। अपने को गलाओ। ईश्वर की सभी धारणाएं छोड़ दो अगर ईश्वर को चाहते हो। | खोजनेवाला खो जाये, यही शर्त है उसे पाने की। अगर सत्य को पहचानना है तो शास्त्र को हटाओ। अगर उसे और फिर से तुम्हें दोहरा दूं, परमात्मा आता-जाता नहीं। देखना है जो अभी खड़ा है तुम्हारे सामने; जो हवा के झोंके में आने-जाने की क्रिया संसार है। सदा होने की स्थिति परमात्मा तुम्हें सहला गया हैजो पक्षियों के कलरव में तुम्हें बुला रहा है; है। जो आता है जाता है, उसी को तो हम मन कहते हैं। जो न सूरज की किरण में जिसने अपना हाथ फैलाया है और तुम्हारा | आता न जाता, जो सदा है, वही तो चैतन्य है। बादल आते हैं, स्पर्श किया है-अगर उसे देखना है, उस सहस्रबाहु को, उस घिरते हैं, घुमड़ते हैं, नाचते हैं, बिजलियां चमकती हैं, फिर विदा अनंत को, तो तुम सारी धारणाओं को हटाओ। तुम नग्न हो | हो जाते हैं! अब आषाढ़ आता है जल्दी; घिरेंगे बादल, घुमड़ेंगे, जाओ, निर्वस्त्र धारणाओं से बिलकुल निर्वस्त्र। यही तो घड़ी भर को बड़ा रौरव मचायेंगे, बड़ा शोरगुल करेंगे-फिर जा महावीर होने का अर्थ है-निग्रंथ, नग्न, दिगंबर! | चुके होंगे। जो बचा रहता है वही आकाश है। कितनी बार जैनों ने बड़ी उलटी बात पकड़ ली। वे समझे कि बस वस्त्र बादल घिरे और कितनी बार गये। आये और गये-वही संसार छोड़कर नग्न खड़े हो जाने पर महावीर की नग्नता पूरी हो जाती है। जो बचा रहा है पीछे, अछूता, अस्पर्शित, पोखर के कमल है। महावीर की नग्नता तब पूरी होती है जब चित्त के सारे वस्त्र के पत्तों जैसा, जिस पर कोई बादल की छाया भी न छटी और उतर जाते हैं। जिसे बादल मलिन भी न कर पाये, जिस पर बादलों की स्मृति तुमने कृष्ण की कहानी पढ़ी है? गोपियां स्नान कर रही हैं, वे भी नहीं है...! उनके वस्त्र चुराकर वृक्ष पर बैठ गये हैं। अश्लील मालूम होती आज आकाश को देखो, तो क्या तुम सोचोगे इस पर है। आज करें तो पुलिस पकड़ेगी। चल गई उन दिनों, अब न अरबों-खरबों वर्षों से बादल घिरते रहे हैं? निष्कलुष! निर्मल! चलेगी। और स्त्रियां ही मुश्किल में डाल देंगी। लेकिन कहानी कुंआरा! कुंआरा का कुंआरा! इसका कुंआरापन कभी भी का अर्थ बड़ा गहरा है। कृष्ण यह कह रहे हैं, जो मेरे प्रेम में खंडित नहीं हुआ। बादल आये और गये, इसके पास उनकी पड़ेगा उसके मैं वस्त्र छीन लूंगा। गोपी यानी जो उनके प्रेम में है। कोई स्मृति भी नहीं है। कृष्ण कह रहे हैं कि तुम्हारे वस्त्र छीन लूंगा, तुम्हें निर्वस्त्र ऐसा ही है परमात्मा। हम आते हैं जाते हैं परमात्मा है। करूंगा। कृष्ण कह रहे हैं कि जब तक तुम्हारे पास कुछ भी है। हम बहुत बार आये हैं, बहुत बार गये हैं-आषाढ़ के तुम्हारा, जिसमें तुम अपने को छिपा लो, तब तक मझसे मिलन बादल-कभी बहुत शोरगुल मचाया-नेपोलियन, चंगेज, न हो सकेगा। तैमूर! कभी चुपचाप भी आकर चले गये-कपसीले वस्त्र का अर्थ होता हैजिसमें तुम अपने को छिपा लो, ढांक बादल-कोई शोरगुल भी न मचाया, वर्षा भी न की, साधारण! लो। निर्वस्त्र होने का अर्थ है छिपाने को कुछ भी न रहा, ढांकने कभी बिजलियां कौंधी, बड़ा रौरव किया, बड़ा रौद्र रूप को कुछ भी न रहा; हमने खोला अपना हृदय, सारे शब्द, सारे दिखाया; कभी चुपचाप सपनों जैसे तैर गये, न कोई रौरव नाद सिद्धांत हटा डाले। तुम जब कहते हो, मैं हिंदू हूं, तो तुम मन पर किया, न कोई शोरगुल मचाया, किसी को पता भी न चला! कुछ वस्त्र पहने हुए हो। तुम्हारा मन नग्न नहीं। तुम्हारी चेतना कभी इतिहास बनाया उपद्रव का, कभी चुपचाप गुजर गये, का कुछ आवरण है। जब तुम कहते हो, मैं जैन हूं, तब तुम सत्य कानों-कान किसी को खबर भी न मिली आने-जाने की। पर हर के लिए खुले नहीं। तुम कहते हो, सत्य के प्रति मेरी कुछ धारणा | हालत में हम आये और गये। है; जब सत्य उस धारणा को पूरा करेगा तो ही मैं मानूंगा कि सत्य उसे जानना है, जो न आया और न गया। है: तुम भटकोगे फिर। एक सांझ नहीं, हजारों सांझ होंगी झेन फकीर हुआ H तोझान ओसो! वह बड़ा बहुमूल्य फकीर रटते-रटते, पहुंचना न होगा। था! कहते हैं जब तोझान ओसो समाधि को उपलब्ध हुआ, 1118 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340106
Book TitleJinsutra Lecture 06 Tum Mito to Milan Ho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size45 MB
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