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________________ जिन सूत्र भागः1 चेहरे से नुमायां हैं आसार मुहब्बत के बड़ा शोर मचता है, फिर तूफान जा चुका, फिर शांति कैसी घनी मौन भी नहीं छुपता। परमात्मा भी नहीं छुपता। तुम चुप भी हो जाती है! जब बुद्ध जैसा व्यक्ति शांत होगा, सदियों-सदियों बैठे रहो तो भी प्रगट होता चला जाता है। का एक तूफान, जन्मों-जन्मों का एक तूफान, एक अंधड़ जो हम तो चुप थे मगर अब मौजे सबा के हाथों चलता ही रहा और चलता ही रहा, अचानक आज बंद हो फैली जाती हैं तेरे हुस्न की खुशबू हर सू गया-देवताओं को खबर न मिलेगी! चुप होने से ही खबर जब कोई प्रभु को उपलब्ध होता है, उस परम शांति को, परम | मिल गई। निर्विकार को, तो चुप भी बैठा रहे तो भी क्या फर्क पड़ता है! जो है वही बांटो। अगर चुप्पी बन रही है, शुभ है। बंद मत हम तो चुप थे मगर अब मौजे सबा के हाथों होना, चुप्पी को भी संबंध बनाये रखना। मित्रों को कभी निमंत्रित -हम तो चुप ही बैठे थे, लेकिन सुबह की ठंडी हवायें आ कर देना कि आओ, चुपचाप बैठेंगे। जिसको चुपचाप बैठना गईं, हम क्या करें! | होगा, आ जायेगा। हाथ में हाथ ले लेना: साथ-साथ रो लेना, फैली जाती है तेरे हुस्न की खुशबू हर सू या हंस लेना। बोलना मत। और तब तुम पाओगे कि एक नया -और तेरे सौंदर्य की खुशबू ये हवायें ले चलीं, और ये ही द्वार खुला संबंधों का। तुमने किसी और ढंग से दूसरे मनुष्य फैलाने लगीं। की चेतना को छुआ और तुमने मौका दिया, दूसरे को भी कि एक बुद्ध को परम अनुभव हुआ। कहते हैं, सात दिन वे चुप बैठे | नये ढंग से, शब्दों के अलावा संबंध निर्मित करे। रहे। पर देवता भागे चले आये स्वर्ग से। पहंच गई भनकः कुछ 'गहन चुप्पी घेरती जाती है। एक कोने में बैठकर अस्तित्व की घटा है पृथ्वी पर! अस्तित्व ने कोई नया रंग लिया है! अस्तित्व लीला निहारती हूं।' ने कोई नया नाच नाचा है! कोई शिखर बना है अस्तित्व का! निहारने को बांटो। जिस ढंग से तुम निहारती हो, उसी ढंग से कोई गौरीशकर उठा है! भागे देवता। वे चुप ही बैठे रहे। किसी और को निमंत्रित करो कि आओ, मेरी दृष्टि में सहभागी देवताओं ने नमस्कार किया, चरणों में सिर रखा, और कहा, कुछ बनो। इसलिए तो मैंने तुम्हें यहां बुला भेजा है। बुलाये चला बोलें! बुद्ध ने कहा, 'लेकिन तुम्हें पता कैसे चला? मैं तो जाता हूं: दूर-दूर देशों से, पृथ्वी का कोई कोना नहीं जहां से लोग बिलकुल चुप हूं। सात दिन से तो मैं बोला ही नहीं। और मैंने तो चले नहीं आते! अपनी दृष्टि में मैं तुम्हें सहभागी बनाना चाहता यही तय किया है कि बोलूंगा नहीं। क्या सार बोलने से? | हूं। चाहता हूं कि तुम भी जरा मेरी आंख से झांककर देखो। जो जिनको समझना है, बिना बोले समझ लेंगे। और जिनको नहीं | मैंने देखा है, थोड़ा-सा तुम भी देखो। फिर तुम अपनी आंख समझना है, वे कहीं बोलकर भी समझ पायेंगे! मगर यह तो खोज लेना। एक दफा स्वाद तो आ जाये। बताओ, तुम्हें खबर कैसे मिली?' 'और वक्त आये तो उसी में लीन हो जाऊं।' तो देवताओं ने कहा, आप भी कैसी बात करते हैं। यह घटना आ ही जायेगा वक्त। आ ही गया है। बांटो! बांटना भी लीन कुछ ऐसी है, जब घटती है तब खबर मिल ही जाती है। तुम बैठे होने की प्रक्रिया है।। रहो चुप, जल्दी ही तुम पाओगे कि रास्ते बनने लगे, तुम्हारी तरफ 'पास में क्या बचा है?' जब कुछ नहीं बचता, तभी जो बचा लोग आने लगे। वे तुम्हें बुलवा कर रहेंगे। तुम्हें बोलना ही है वही संपदा है। एक झेन फकीर एक रास्ते से गुजर रहा था। पड़ेगा, तुम्हारी करुणा को बोलना ही पड़ेगा। तुम इतने कठोर वह बड़ा बलिष्ठ आदमी था। बड़ा बलशाली था। दो डाकुओं कैसे हो सकोगे? हम ही आ गये, कितनी दूर से-स्वर्ग से! ने उस पर हमला कर दिया। दुबले-पतले दीन-हीन डाकू थे; कोई चुप हो गया है! कुछ घटा है! | नहीं तो डाकू ही क्या होते-दीन-हीन ही डाक् बनते हैं। उसने तुमने कभी चुप्पी को अनुभव किया है ? चुप्पी भी एक घना दोनों की गर्दन पकड़कर उनको उठा लिया और दोनों का सिर अस्तित्व है। रेलगाड़ी शोरगुल करती निकल जाती है। उसके टकराने जा रहा था, तो उसे खयाल आया : अरे बेचारे! इनके बाद तुमने देखा है, चुप्पी कैसी घनी हो जाती है! तूफान आता है, पास कुछ भी तो नहीं है। दोनों को छोड़ दिया। वे तो बड़े [132 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340106
Book TitleJinsutra Lecture 06 Tum Mito to Milan Ho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size45 MB
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