________________ तुम मिटो तो मिलन हो तो ध्यान रखना, मौन सिर्फ न बोलना भर न हो; नहीं तो वही आपसे प्रार्थना कर रहे हैं कि आप चलो, तो थोड़ा रस रहेगा। होगाः क्रोध काट डाला, काम की ग्रंथि काट डाली। काम की | किसी न किसी को तो ले जाना ही पड़ेगा। ग्रंथि गई तो ब्रह्मचर्य पैदा होने का उपाय भी गया। क्रोध की ग्रंथि पति-पत्नी सदा किसी एक को और साथ ले लेते हैं। दोनों के गई तो करुणा भी न आई। ऐसा मौन मत कर लेना कि सिर्फ न बीच जरा बातचीत चलाने को सेतु बन जाता है। यह बोलना बोलने पर आग्रह हो कि बोलते नहीं हैं। तो फिर तुम्हारे भीतर कोई बोलना है? लेकिन दो प्रेमी चुपचाप बैठ जाते हैं। देखते हैं जिंदगी सड़ने लगेगी, प्रवाह बंद हो जाएगा। तुम एक पोखर हो चांद को आकाश में। या सुनते हैं हवा की सरसराहट! या देखते जाओगे, सरिता न रहोगे। जल्दी ही कीचड़ मच जायेगी। जल्दी | हैं चुपचाप तारों को। कुछ बोलते नहीं। लेकिन खुले हैं। बहते ही तुम अपनी कुंठा में सड़ोगे। क्योंकि जीवन संबंधों में है। हैं एक-दूसरे में, ऊर्जा मिलती है। मिलन होता है। एक गहन कोई फिक्र नहीं, हजार ढंग हैं बोलने के। बोलना ही थोड़े ही तल पर गहन संभोग होता है। पर चुप! सब कुछ है! किसी का हाथ ही हाथ में ले लो तो क्या तुम बोले | शब्द बाधा डालते हैं। जब कोई प्रेमी किसी प्रेयसी से बहुत नहीं? किसी की तरफ भरी हुई आंखों से देखा तो क्या तुम बोले कहने लगे, बार-बार कहने लगे कि मैं तुझे प्रेम करता है, तब नहीं? किसी के पास चपचाप बैठे रहे, लेकिन बंद नहीं खले, समझना कि प्रेम जा चुका, अब बातचीत है। अब प्रेम नहीं है, बहते तो क्या तुम बोले नहीं? सच तो यह है कि जीवन में जो भी इसलिए बातचीत से परिपूर्ति करनी पड़ती है। नहीं तो प्रेम काफी महत्वपूर्ण है, ऐसे ही बोला जाता है। जब दो प्रेमी गहन प्रेम में | है, कहने की जरूरत नहीं है। होते हैं तो चप बैठ जाते हैं। जब प्रेमी बातचीत करने लगें तो तो मैं तुमसे कहता है, मौन तो आये, लेकिन जीवंत आये, समझना कि पति-पत्नी हो गये। पति-पत्नी चुप नहीं बैठ सकते, बहता हुआ आये। तुम्हारा प्रवाह न मिटे। तुम बंद न होओ। क्योंकि चुप बैठे तो दोनों बंद हो जाते हैं; दोनों बंद हो जाते हैं तो तुम खुलो। तो फिर मौन भी बंटे। बोझिल हो जाते हैं। तो पत्नी कहने लगती है, 'चुप क्यों बैठे यह मैं तुमसे जो बोल रहा हूं, क्या तुम सोचते हो, बोल रहा हो? क्या मतलब?' तो कुछ भी बोलो! बोल जारी रखो, | हूं? अपना मौन बांट रहा हूं। क्योंकि तुम मेरे मौन को सीधा न ताकि कहीं ऐसा न हो कि एक-दूसरे की मुर्दानगी और एक-दूसरे समझ सकोगे, शब्दों की सवारी से बांट रहा हूं। शब्दों के ऊपर की ऊब प्रगट हो जाये। तो बोलते हैं, चेष्टा करके बोलते हैं। सवार होकर जो आ रहा है, वह मौन है। घुड़सवार को देखना, नहीं बोलना हो, बोलते हैं। कुछ भी बात ले आते हैं-खबर, घोड़े को ही मत देखते रहना। शब्दों पर जो सवारी करके आ रहा समाचार-उसकी चर्चा चलाने लगते हैं। न पत्नी को उस में है, जरा उसे देखो। तुम्हें जो मैं देना चाहता हूं, वह शब्द नहीं है। रस है, न पति को रस है; न पत्नी सुन रही है, न पति बोल रहा तुम्हें जो देना चाहता हूं, वह मेरा मौन है। है लेकिन वाणी चल रही है। दोनों आसपास शब्दों का जाल | तो मौन ही बांटो। कहीं छुपता है कुछ! अगर जीवंत मौन हो बुनते हैं, ताकि कहीं धोखा न टूट जाये, कहीं भ्रम न मिट जाये, तो मौन ही दिखाई पड़ने लगता है, सघन हो जाता है। जहां से कहीं ऐसा न हो जाये कि पता चले कि हम ट गये, गुजरोगे, दूसरा आदमी चौंककर सुनने लगेगा मौन को जरा पास अलग-अलग हो गये! मेरे एक मित्र हैं। हिमालय की यात्रा को जाते थे। तो मुझसे 'बेदार'! छुपाए से छुपते हैं कहीं तेरे कहा, आप चलें। मैंने कहा कि हिमालय की यात्रा पर जाते हो, चेहरे से नुमायां हैं आसार मुहब्बत के। अच्छा है। तुम पति-पत्नी जा रहे हो, मुझे क्यों और बीच में लेते कहीं प्रेम छुपा! कितना छिपाओ, आंख की झलक, चेहरे का हो? मेरे होने से बाधा पड़ेगी। उन्होंने कहा, आप भी क्या बात रंग-ढंग, ओंठों की मुस्कुराहट; कितना छिपाओ, चाल की करते हैं! तीस साल हो गये शादी हुए, अब क्या बाधा खाक गति, उठने-बैठने का प्रसाद, सब तरफ जैसे प्रेमी के आसपास पड़ेगी? अब तो हालत ऐसी है कि अगर तीसरा आदमी मौजूद | कुछ सूक्ष्म धुंघरू बजते हैं! न हो तो हमारी समझ में नहीं आता, क्या करें! इसलिए तो 'बेदार'! छुपाए से छुपते हैं कहीं तेरे ____ 131 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org