________________ - A NSAntamani जिन सूत्र भाग : 1 MEANERai है, वहां पहुंच गये। सभी जगह पहंच जाते हैं। इस तरह के लोग रहे हैं। जरा-सा शब्द 'उल्लू के पट्टे' मंत्र का काम कर गया। क्यों भटकते रहते हैं, यह भी बड़े आश्चर्य की बात है! अपने घर जरा सोचो तो! शास्त्र काम न आये। इतना तो याद रखते कि ही रहें! अपनी नाक बचानी है, अपने घर ही रहो; यहां-वहां 'शब्दों में क्या रखा है।' जाने में कहीं कट ही जाये। कोई रौ आ जाये, कोई सनक चढ़ वस्त्रों में क्या रखा है, पूछते हो? माला में क्या रखा है, पूछते जाये, किसी भावावेश में कटवा बैठो, फिर पछताओगे! | हो? उल्लू के पढे! थोड़ा सोचना, थोड़ा विचार करना! रामकृष्ण की बैठक में कोई पहुंच गये ज्ञानी। पंडित थे, आदमी जैसा है, छोटी-छोटी बातों से जीता है। क्षुद्र-क्षुद्र जानकार थे शास्त्रों के। रामकृष्ण कह रहे थे कि ओंकार के नाद | बातों से बनकर, मिलकर तुम्हारा व्यक्तित्व बना है। वह जिसने से बड़ी उपलब्धि होती है। ज्ञानी को अड़चन पड़ी। उसने कहा, | गैरिक वस्त्र स्वीकार किये हैं, वह भी जानता है, तुमसे ज्यादा ठहरें! ...क्योंकि ज्ञानी जानता है कि रामकृष्ण गैर पढ़े-लिखे भलीभांति जानता है कि वस्त्रों से कुछ भी होनेवाला नहीं है; हैं, शास्त्र का तो कुछ पता नहीं है, हांक रहे हैं; संस्कृत तो आती लेकिन उसने एक कदम उठाया है; होने की दिशा में थोड़ी नहीं, कुछ भी कहे चल जा रहे हैं! वह अपना ज्ञान दिखाना हिम्मत की है; पागल होने की हिम्मत की है। मेरे साथ चलने की चाहता था। उसने कहा कि शब्दों में क्या रखा है! ओंकार तो हिम्मत पागल होने की हिम्मत है। क्योंकि मेरे साथ चलने का केवल एक शब्द है, इसमें रखा क्या है ? इससे कैसे आत्मज्ञान | मतलब है समाज में अड़चन होगी, परिवार में अड़चन होगी। हो जायेगा? अगर पति हो तो पत्नी झंझट देगी। अगर पत्नी हो तो पति झंझट बात तो पते की ही कह रहा था, लेकिन खुद आदमी पते का | देगा। अगर बाप हो तो बच्चे झंझट देंगे। नहीं था। रामकृष्ण ने उसकी तरफ देखा, चुप बैठे रहे। वह और संन्यासी मेरे पास आकर कहते हैं कि बेटे कहते हैं, 'पिता जोर-जोर से शास्त्रों के उल्लेख करने लगा और उद्धरण देने जी! आप घर में ही पहनो ये वस्त्र तो ठीक है, क्योंकि स्कूल में लगा। कोई आधा घंटा बीत गया, तब रामकृष्ण एकदम से | दूसरे बच्चे हम पर हंसते हैं कि तुम्हारे पिताजी को क्या हो गया! चिल्लायेः 'चुप, उल्लू के पट्टे! बिलकुल चुप! अगर एक | भले-चंगे थे, यह क्या इनको धुन सवार हुई!' पत्नियां मेरे पास शब्द बोला आगे तो ठीक नहीं होगा।' आती हैं। कहती हैं कि जरा समाज में जीना है, कम से कम इतना 'उल्लू के पट्टे' तो मैं कह रहा हूं, रामकृष्ण ने ज्यादा वजनी तो कर दो कि विवाह इत्यादि के अवसर पर पतिदेव गेरुआ गाली दी। तो रामकृष्ण कोई छोटी-मोटी बकवास नहीं मानते पहनकर न पहुंचें, नहीं तो दूल्हा तो एक तरफ रह जाता है, ये थे; वे जब गाली देते थे तो बिलकुल नगद! वह आदमी घबड़ा दूल्हा मालूम पड़ते हैं। और स्त्रियां देखकर हंसती हैं कि इनको गया, तमतमा गया एकदम! क्रोध भर गया आंख में। जोश आ | क्या हो गया। गया। सांझ थी ठंडी, शीत के दिन थे, पसीना-पसीना हो गया। कोई मेरे साथ खड़े होकर तुम्हें कुछ राहत थोड़े ही मिल पर हिम्मत भी न पड़ी, क्योंकि अब रामकृष्ण ने इतने जोर से कहा जायेगी! अड़चन में डालूंगा। यह तो अड़चन में डालने की है, और अगर कुछ गड़बड़ की तो मारपीट हो जायेगी; वहां सब शुरुआत है। जैसे-जैसे पाऊंगा कि तुम्हारी अंगुली हाथ में आ रामकृष्ण के भक्त थे। फिर, रामकृष्ण फिर अपना समझाने लगे गई, पहुंचा पकडूंगा। यह तो शुरुआत है। आगे-आगे देखिए कि ओंकार...। कोई पांच-सात मिनट बाद उस आदमी की | होता है क्या! तरफ देखा और कहा, महानुभाव! माफ करना। वह तो मैंने सिर्फ इसलिए कहा था कि देखें शब्द का असर होता है कि नहीं! तीसरा प्रश्नः भीतर विचारों की ऐसी भीड़ है कि भगवान का तुम तो बिलकुल तमतमा...। 'उल्लू के पट्टे' का इतना असर, | भी...भगवान जैसा गुरु पाकर भी इस जन्म में पहुंचने की तो जरा सोचो तो ओंकार का! पसीना-पसीना हुए जा रहे हो, आशा नहीं बंधती। बिना कारण आंसू बहाता हूं, रोता हूं, मरने-मारने पर उतारू हो। वह तो यह कहो कि लोग मौजूद हैं, | चीखता-चिल्लाता हूं, फिर भी मौका आने पर न अहंकार से नहीं तो तुम मेरी गर्दन पर सवार हो जाते। हाथ-पैर तुम्हारे कंप बच पाता हूं और न भीतर की बड़बड़ाहट से। प्रभु श्री, यदि 124| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .