SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ HARSINPUTERVARANAS * तुम मिटो तो मिलन हो हो नहीं सकता कि शीशा आए और सहबा न आए | है और जिसे बड़ी बेचैनी हो रही है। मय भी आएगी 'अदम' जब आबगीना आ गया। और या फिर किसी ऐसे आदमी का होना चाहिए, जिसका -जब प्यालियां आ गईं, जब मधुपात्र आ गये, तो शराब भी अहंकार उसकी नाक पर बैठा है। आती ही होगी। अहंकारी की नाक देखी! अहंकारी नाक की भाषा में बोलता हो नहीं सकता कि शीशा आए और सहबा न आए है। उसका सारा अहंकार नाक पर होता है। अगर नाक पर मय भी आएगी 'अदम' जब आबगीना आ गया। अहंकार बैठा हो, इससे बेचैनी मालूम हो रही है, तो कटा ही -जब प्यालियों की खनक आने लगी, तो शराब भी आती ही लो। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसरी! नाक ही न रहेगी तो होगी। तो जिसके जीवन में परमात्मा को खोजने की आकांक्षा अहंकार को बैठने की जगह न रह जाएगी। कटा ही लो प्यारे! आ गई, प्यास आ गई-अब घबड़ाओ मत, राह पर हो। ठीक कहीं कोई गहरी अड़चन होगी प्रश्नकर्ता को। मैं जानता हूं, दिशा में उन्मुख हो गये हो। अब डरो मत, अब प्यास को अड़चन होती है। यहां इतने लोग गैरिक वस्त्रों में हैं। यहां इतने पकड़ने दो कि तुम्हें पकड़ ले झंझावात की तरह, आंधी-अंधड़ लोग संन्यासी के वेश में हैं-तुम जब गैर-संन्यासी की तरह की तरह। अब उड़ाने दो प्यास को कि बन जाये तुम्हारे पंख। आते हो, तुम हीन-भाव अनुभव करते हो। लक्ष्मी कल ही मुझे अब मथने दो प्यास को कि बन जाये आग और जला दे तुम्हारे कहती थी कि दफ्तर में लोग उससे आकर कहते हैं कि सफेद अहंकार को। कपड़ों में हम यहां ऐसे मालूम पड़ते हैं जैसे अजनबी हैं, पराये हैं, हो नहीं सकता कि शीशा आए और सहबा न आए बाहर-बाहर हैं। स्वाभाविक है। यह एक परिवार है। यह मेरा मय भी आएगी 'अदम' जब आबगीना आ गया। परिवार है। वस्त्रों का ही थोड़े ही सवाल है; वस्त्र तो केवल इंगित हैं, इशारे हैं। जिन्होंने गैरिक वस्त्र स्वीकार किये हैं, उन्होंने दूसरा प्रश्नः कल के प्रवचन में आपने नककटे साधु की तो केवल इतना कहा है कि इस इशारे से हम कहते हैं कि अब हम कहानी सुनायी, जिसके चक्कर में पड़कर पूरा गांव नाक गंवा | तुमसे राजी हैं। यह तो सिर्फ एक भाव-भंगिमा है। उन्होंने यह बैठा था। क्या करीब-करीब यही स्थिति आपके संन्यासियों कहा है कि अब हम हमारा तर्क छोड़ते, विवाद छोड़ते-अब की नहीं है? तुम जहां ले चलोगे, चलेंगे; चलो, गड्ढे में ले चलोगे तो गड्ढे में चलेंगे; भटकाओगे तो भटकेंगे, लेकिन तुम्हारे साथ भटकेंगे। देखो, मेरी नाक तुम्हें साबित दिखाई पड़ती है या नहीं। क्योंकि जिन्होंने मुझे चुना है उन्होंने यह मानकर चुना है—इसलिए नहीं कहानी के होने के लिए पहले तो मैं नककटा होना चाहिए। न तो कि मैं उन्हें ठीक जगह ही पहुंचा दूंगा। इसका तो पता कैसे होगा गेरुआ वस्त्र पहने हूं, न माला लटकाई है। अपनी ही नाक नहीं जब तक पहुंचोगे न! इसका तो कोई उपाय नहीं है, पहले से जान कटी, तुम्हारी क्यों काढूंगा? लेने का। जिन्होंने मुझे चुना है उन्होंने यह मानकर चुना है कि इसलिए कहानी यहां लागू हो नहीं सकती। चलो, अब ठीक जगह भी पहुंचना अगर इस आदमी के बिना हां, जिन मित्र ने पूछा है, उनको जरा अपनी नाक टटोलकर होता हो तो भी इस आदमी के बिना नहीं चलना है। अगर यह देख लेनी चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं है कि है ही नहीं अब कटाने गड्ढे में ले जायेगा तो इसके साथ गड्ढे में सही। उन्होंने अपने को! कहीं पहले कटा तो नहीं बैठे! क्योंकि मैं मुश्किल से ऐसे विचार करने की, अपना निजी विचार करने की, जो अस्मिता आदमी के करीब आता हूं जो नककटा न हो। अगर तुम हिंदू हो थी, वह छोड़ी है। कपड़े तो गौण हैं। कपड़ों में क्या रखा था? तो नाक कटा चुके ! हिंदुओं के हाथ कटा ली। अगर मुसलमान कपड़ों से कहीं कोई संन्यासी हुआ है! लेकिन वह तो इंगित है अगर जैन हो तो कटा बैठे। | ऐसा हुआ कि रामकृष्ण की एक रात बैठक चलती थी। कुछ यह प्रश्न किसी नककटे का होना चाहिए, जो कहीं कटा बैठा बैठे थे लोग। कोई इसी तरह के सज्जन, जिन्होंने यह प्रश्न पूछा 123 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary org
SR No.340106
Book TitleJinsutra Lecture 06 Tum Mito to Milan Ho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy