________________ तुम मिटो तो मिलन हो इस जन्म में भी नहीं पहुंच पाया, तो फिर क्या अगला पथ वैसा बनो! इसमें अतिशयोक्ति नहीं हो सकती। साक्षी एकमात्र सूत्र ही कोरा रह जायेगा? आप भी सहायता न कर पायेंगे क्या? | है। विचारों से लड़ो मत-देखो! चलने दो, क्या बिगाड़ते हैं! चलने दो जैसे राह चलती है, कारें गुजरती हैं, बसें गुजरती हैं, नहीं, चिंता का कोई भी कारण नहीं है। विचारों की भीड़ है। | बैलगाड़ियां गुजरती हैं, अच्छे-बुरे-भले लोग गुजरते हैं, छुटकारा आसान भी नहीं। लेकिन छुटकारा आसान नहीं है, शैतान-साधु गुजरते हैं-राह चलती है, तुम राह के किनारे बैठे इससे यह मत समझना कि विचारों की भीड़ बड़ी बलशाली है। रहो; देखते रहो चलती राह को। जैसे राह बाहर चल रही है, नहीं! छुटकारा इसीलिए कठिन मालूम पड़ रहा है कि तुमने ऐसे ही विचारों का कारवां भी भीतर चल रहा है; लेकिन वह भी विचारों की भीड़ से लड़ना शुरू कर दिया है, वहां भूल हो गई तुमसे बाहर है। शरीर के भीतर है, तुमसे बाहर है। तुम तो वह है। ताकत विचारों की नहीं है-तुम्हारे गलत आयोजन की है। चैतन्य हो जो देखता है कि ये विचार चल रहे हैं। अंधेरा कमरे में भरा हो और तुम धक्के देकर उसे बाहर तादात्म्य छोड़ो! दूर खड़े होकर देखते रहो, देखते रहो, देखते निकालना चाहो और अंधेरा तो नहीं निकलेगा ऐसे, तो तुम्हारे रहो—इतना भी रस मत लो कि इन्हें अलग करना है। इतना भी मन में लगेगा, अंधेरा बड़ा प्रबल है, बड़ा बलशाली है। रस लिया कि अड़चन शुरू हुई, संबंध बने। जन्म-जन्म भी धक्के मारो अंधेरे को तो न निकलेगा, यह सच मित्र से ही संबंध नहीं बनते, शत्र से भी है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि अंधेरा बलशाली है। इससे तुम पक्ष में हो उससे भी संबंध बनता है। जिसके तुम विपक्ष में केवल इतना ही पता चलता है कि धक्का मारना सम्यक उपाय | हो उससे भी संबंध बनता है—विपक्ष का सही। संबंध मत नहीं है। जितनी ताकत धक्का मारने में लगा रहे हो उतनी ताकत बनाओ। साक्षी का इतना ही अर्थ है : असंबंध, असंग। दूर खड़े दीये को जलाने में लगाओ। दीया खोजो। जरा-सा, छोटा-सा देखते रहो। जैसे तुम किसी पहाड़ की चोटी पर बैठे हो और नीचे दीया, जरा-सी दीये की बाती, और अंधेरा बाहर हो जायेगा। घाटियों में काफिले गुजर रहे हैं लोगों के गुजरने दो, तुम्हारा धक्के मारने से अंधेरा बाहर नहीं होता, क्योंकि अंधेरा है ही नहीं, क्या लेना-देना है। बाहर कोयल बोल रही है, कभी कोई कुत्ता धक्का मारोगे कैसे उसे? जो नहीं है उसे धकाया नहीं जा भौंकेगा, कभी कोई कौवा कांव-काव करेगा-इससे तुम सकता। उसकी ताकत नहीं है कुछ भी। उसका बल इसी में है। अड़चन में नहीं पड़ते। तुम सिर नहीं धुन लेते कि अब क्या करें, कि वह नहीं है। कुर्सी होती, फर्नीचर होता, निकाल बाहर कर यह कुत्ता भौंक रहा है! तुम सिर नहीं धुन लेते कि यह कौवा देते। पति-पत्नी होते, उन्हें भी धक्का देकर बाहर कर देते! कांव-काव कर रहा है! यह तुम्हारा मन भी कांव-काव कर रहा अंधेरे को कैसे करोगे? दीया जलाओ! सम्यक आयोजन करो! है, भौंक रहा है-भौंकने दो! तुम इससे भी थोड़े दूर हट ठीक साधन खोजो! | जाओ। तुम इससे भी थोड़े पीछे हट जाओ। और हटने में विचार अंधेरे की भांति हैं। तुम उन्हें धक्के देकर बाहर न कर | अड़चन नहीं है, क्योंकि तुम्हारा स्वभाव मन के पार है। पाओगे। जितना धक्का दोगे उतना ही पाओगे कि वे बलशाली | तो इसी क्षण पहुंचना हो सकता है, पूरे जन्म की बातें क्या होते जा रहे हैं। उतने ही तुम कमजोर मालूम पड़ोगे। हर बार करनी, आगे जन्म की चिंता क्या करनी! और ध्यान रखो, मेरी हारोगे, हर बार हारोगे; आत्मविश्वास खो जायेगा। फिर सहायता तुम्हें पूरी उपलब्ध है, उसमें रंचमात्र कमी नहीं है। रोओगे, चीखोगे, चिल्लाओगे। उससे भी क्या होगा? कुछ भी लेकिन अकेली मेरी सहायता से क्या होगा? मैं इशारा कर न होगा। क्योंकि न तो अंधेरा सुनेगा रोने को, न चीखने को, न सकता हूं, चलना तो तुम्हें ही पड़ेगा। मैं औषधि बता सकता हूं, चिल्लाने को। अंधेरा तो मानता है एक ही भाषा-वह है प्रकाश | लेकिन पीना तो तुम्हें ही पड़ेगी। मैं निदान कर सकता हूं, लेकिन की भाषा। और विचार भी मानते हैं एक ही भाषा-वह है | मेरे निदान से ही तो कुछ न होगा। औषधि भी दे सकता हूं, उससे साक्षी-भाव की भाषा। भी तो कुछ न होगा। औषधि का तुम्हें उपयोग करना पड़ेगा, तो साक्षी बनो! जितनी बार कहा जाये उतना ही थोड़ा है : साक्षी ही बीमारी कटेगी। साक्षी की बात कर रहा हूं; वह औषधि है। 125 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org