________________ IN परम औषधि H साक्षी-भाव R T सकता है, क्योंकि इसमें तुम खड़े हो। परमात्मा तो दूर की चाहिए, सर्जरी होनी चाहिए। तो तुम सर्जन के पास जाओगे तो बातचीत है; हो न हो, दुख है। तो महावीर इसकी भी चिंता नहीं वह दबायेगा भी तुम्हारा घाव, तो तुम चीखोगे भी, मवाद भी करते, सृष्टि कब बनी; इसकी भी चिंता नहीं करते, किसने | | निकालेगा-तो तुम यह थोड़ी कहोगे कि दुश्मन हो, कि हम वैसे बनायी। इन दूर की बातों में जाने से फायदा क्या है? ऐसा तो ही तो दुख में भरे थे, तुमने और मवाद निकाल दी; हम वैसे ही नहीं है कहीं कि तुम दूर की बातें कर के पास की असलियत को तो तड़फ रहे थे, तुमने यह और क्या किया; ऐसे ही क्या दुख भुलाना चाहते हो? ऐसा तो नहीं है कि सृष्टि किसने बनायी, कम था कि तुम छुरी-कांटे लेकर खड़े हो गये हो! नहीं, तुम कौन है बनानेवाला, क्यों बनायी-इस तरह के बड़े-बड़े सवाल जानते हो, सर्जन मित्र है। वह उस गलत अंग को काटकर उठाकर जिंदगी के असली सवालों को तुम छिपा और ढांक लेना अलग कर देगा, जहां से विष तुम्हारे पूरे जीवन-संस्थान में फैला चाहते हो? कहीं ऐसा तो नहीं है कि ये सब सांत्वना के उपाय हैं, जा रहा है। ताकि दुख दिखाई न पड़े; ताकि दुख चुभेन, छिदे न, ताकि दुख महावीर एक सर्जन हैं; दार्शनिक कम, तत्वचिंतक कम, की पीड़ा न हो। कहीं तुम्हारे मंदिर-मस्जिद, पूजागृह तुम्हारी | चिकित्सक ज्यादा हैं। इस शब्द को खयाल में रखो सांत्वनाओं का जाल तो नहीं? | चिकित्सक। नानक ने अपने को वैद्य कहा है। बुद्ध ने भी अपने महावीर ऐसा ही जानते हैं। यह सब तुम्हारी सांत्वना का जाल को वैद्य कहा है। महावीर भी वैद्य हैं। ये तुम्हें लोरियां सुनाने में है। इसलिए महावीर मित्र भी मालूम नहीं होते। इसलिए तो उत्सुक नहीं हैं, कि तुम्हें थोड़ी झपकी लग जाये; तुम रातभर महावीर बहुत अनुयायी इकट्ठे न कर पाये। सुख की चर्चा की जागे हो, जन्म-जन्म जागे हो, थोड़ा सो लो। नहीं, इनकी होती, दुखी लोग आ गये होते। उन्होंने दुख की चर्चा की, उत्सुकता तुम्हें सुलाने में नहीं है, क्योंकि सोने के कारण ही तो दुखियों ने सोचा, 'हम वैसे ही दुखी हैं, बख्शो!' दुखियों ने तुम्हारे जीवन की सारी पीड़ा और जाल और प्रवंचना का फैलाव कहा, 'हम वैसे ही दुखी हैं, तुम्हारे पास आकर और दुख की ही है। इसलिए महावीर तुम्हारे दुख से भरी रग को छुएंगे, घबड़ाना चर्चा, और दुख की ही चर्चा...! ऐसे ही क्या दुख कम हैं, जो मत। दुखवादी नहीं हैं वे। लेकिन तुम दुख में हो। और तुम अब तुम और चर्चा करके जोड़े जा रहे हो? हमें थोड़ी सांत्वना धीरे-धीरे अपने को इस तरह की भ्रांतियों में डाल लिये हो कि तुम दो, भरोसा दो, आश्वासन दो, आशा दो। कहो हमें कि आज दुख को दुख नहीं मानते; तुम उसे सुख मानने लगे हो तो तुम्हें सब गलत है, कल सब ठीक हो जायेगा। कहो कि यह संसार तो बार-बार जगाना पड़ेगा कि दुख दुख है, सुख नहीं।। माया है।' जिस दिन तुम्हारा सारा जीवन लपटों से भर जायेगा-भरा तो महावीर ने नहीं कहा कि यह संसार माया है; क्योंकि महावीर है ही, दिखाई पड़ जायेगा जिस दिन; जिस दिन तुम देखोगे कि ने कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि तुम दुख को माया कहकर यहां कुछ भी तो नहीं है, कीड़े-मकोड़े हैं, घाव, मवाद, पीड़ा ही भुलाना चाहते हो! जिस चीज को भी माया कह दो, उसे भुलाने पीड़ा--उसी दिन छलांग लगाकर इस घर के बाहर हो जाओगे। में सुविधा हो जाती है। संसार माया है, तो दुख भी माया है, तो हां, बाहर खुला आकाश है; सूरज का प्रकाश है; खिले फूल हैं, बीमारी भी माया है, तो झेल लो, भोग लो, कुछ असलियत तो पक्षियों के गीत हैं; बाहर बड़ी वातास है, बड़ी मधुरिमा है, बड़ा इसमें है नहीं, असली चीज तो परमात्मा है। सौंदर्य है। लेकिन वह तो तुम बाहर आओगे, तो ही सुनाई महावीर ने संसार को बड़ा सत्य माना है; परमात्मा की बात ही पड़ेगा। वह तो तुम बाहर आओगे, तो ही दिखाई पड़ेगा। नहीं की। जो सत्यों का सत्य है, उसकी तो बात नहीं की; और इसलिए बाहर की कोई बात नहीं। जहां तम हो, उसकी बात है। इस भ्रामक संसार को बड़ा सत्य माना है। क्योंकि महावीर कहते बड़ी व्यवहारिक बात है। हैं कि तुम्हारे मन को मैं पहचानता हूं। तुम्हारे परमात्मा, तुम्हारे बुद्ध के जीवन में एक उल्लेख है...। और बुद्ध और महावीर मोक्ष, सब मलहम-पट्टियां हैं; उनसे तुम घाव को छिपाते हो। इस संबंध में एक ही दृष्टिकोण के हैं। दोनों श्रमण-संस्कृति के और यह घाव कुछ ऐसा है, इसकी शल्य-चिकित्सा होनी आधार हैं।...कहते हैं बुद्ध को जब परमज्ञान हआ, तो शैतान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org