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________________ परमात्मा खींचता है....और उसकी खींच में बहत बल नहीं हो एक-एक बीमारी की पकड़ करता है, जांच-परीक्षण करता है, सकता। क्योंकि जिसे जाना नहीं, चखा नहीं, जीया नहीं, उसकी डायगनोसिस करता है। बीमारी पकड़ में आ जाती है, बीमारी पुकार सुनोगे कैसे? वह बहुत दूर की धुंधली-सी आवाज, बस समझ में आ जाती है-औषधि बता देता है। स्वास्थ्य की कहीं एक गूंज रह जाती है, प्रतिध्वनि-मात्र, छाया-मात्र। कोई चिकित्सक बात करता है! बीमारी पकड़ में आ गई, और जीवन की वासनाएं हैं, वे प्रगाढ़ हैं; वे तुम्हें खींचेंगी। तो चिकित्सा का पता चल गया-अब तुम्हारे ऊपर है। अगर तुम्हें तम बंधे तो रहोगे जीवन के ही पहिये से, घसिटते तो रहोगे जीवन बीमारी दिखाई पड़ती है, बीमारी की पीड़ा दिखाई पड़ती है, तो के रथ के साथ ही, धूल-धवांस तो जीवन की ही खाते रहोगे। औषधि तुम वरण करोगे; चाहे औषधि कड़वी भी क्यों न हो। हां, सपने तुम मोक्ष के, बैकुंठ के देखने लगोगे। इससे तुम शांत बीमारी से साक्षात्कार हुआ तो औषधि तुम अंगीकर कर लोगे। न होओगे। इससे तुम्हारी अशांति शायद थोड़ी और बढ़ औषधि बीमारी को काट देगी। जो शेष रह जायेगा बीमारी के जायेगी। इससे तम परमात्मा को पा सकोगे, ऐसा तो कम कट जाने के बाद, वह अनिर्वचनीय है; उसकी बात ही नहीं की दिखायी पड़ता है। इससे तुम जीवन में उदास और खिन्न और जा सकती; वह अभिव्यक्ति के योग्य नहीं है; उसकी कोई विषाद-युक्त हो जाओगे। अभिव्यंजना कभी नहीं कर पाया। कहो 'ईश्वर', तो भी कुछ इसलिए महावीर ने दूसरा मार्ग चुना। वे परमात्मा की बात ही पता नहीं चलता। कहो 'समाधि', तो भी शब्द ही हाथ में आता नहीं करते। उसे अलग ही कर दिया, बाद ही दे दी; हाशिये पर है। कहो 'कैवल्य', कुछ शब्द की गूंज होती है; हृदय में कोई भी नहीं रखा है, शास्त्र की तो बात छोड़ो। उसे हटा ही दिया। | अनुभूति का तालमेल नहीं बैठता। लेकिन जब तुम्हारी सारी समाधि के प्रसाद-गण की बात नहीं करते, न आनंद की बात | बीमारी हट जाती है, तब अचानक जो घटता है—जीवंत, करते—वे तो तुम्हारे जीवन की, जहां तुम हो, उसकी ही बात अस्तित्वगत-वही स्वास्थ्य है। स्वास्थ्य बताया नहीं जा करते हैं, और कहते हैं, यहां दुख है। वे तुम्हें जीवन के दुख की | सकता, अनुभव किया जा सकता है। प्रगाढ़ता से परिचित करा देना चाहते हैं। वे तुम्हारे हृदय में चुभे तो इसलिए महावीर के वचनों में तुम्हें बार-बार दुख की चर्चा हुए शूलों से तुम्हारी पहचान करा देना चाहते हैं। उनका सारा मिलेगी। इससे तुम्हें थोड़ी बेचैनी भी होगी। क्योंकि तुम सुख आधार तुम्हारी वस्तुस्थिति से तुम्हें परिचित करा देना है। तुम्हें | की चर्चा सनना चाहते हो। पता चल जाए कि घर में आग लग गई है। तुम जल रहे हो, तुम कहते हो, यह क्या दुख का राग है! लपटों से घिरे हो। तो महावीर मानते हैं कि तुम दौड़कर बाहर | इसलिए पश्चिम में जब महावीर के वचन पहली दफा पहुंचने निकल जाओगे। निकलोगे बाहर तो बाहर को जानोगे। | शुरू हुए तो लोगों ने समझा, दुखवादी हैं। महावीर दुखवादी . फूल भी खिले हैं। नहीं कि फूल नहीं खिले हैं। परमात्मा भी नहीं हैं। इनसे परम सुखवादी कभी पैदा नहीं हुआ। क्या है। नहीं कि परमात्मा नहीं है। समाधि के भी मेघ बरस रहे हैं, | चिकित्सक तुम्हारी बीमारी की चर्चा करे, औषधि का निदान करे, अमृत की धार बह रही है। सब है। लेकिन महवीर उसकी बात तो तुम यह कहोगे कि यह बीमारी का पक्षपाती है? वह चर्चा ही नहीं करते। वे तो सिर्फ तुम्हारे जीवन के दुख की बार-बार बीमारी की इसलिए कर रहा है कि तुम उससे छूट जाओ। वह पुनरुक्ति करते हैं। तुम्हें जीवन का दुख दिखाई पड़ जाये तो तुम स्वास्थ्य की चर्चा नहीं कर रहा है, क्योंकि चर्चा करने से कभी जीवन को छोडने लगोगे। उसी छोड़ने में मोक्ष उतरता है। कोई स्वस्थ हआ। इसलिए महावीर दख का ही विश्लेषण करते इसलिए महावीर का मार्ग निषेध का है, नकार का है। महावीर चले जाते हैं। हजार तरफ से एक ही इशारा है उनका : दुख। का मार्ग चिकित्सक का है। तुम चिकित्सक के पास जाते हो तो | तुम्हें यह दिखाई पड़ने लगे कि तुम्हारा सारा जीवन दुख वह स्वास्थ्य की चर्चा नहीं करता। नहीं कि स्वास्थ्य नहीं है, है-सुबह से सांझ तक, जन्म से मृत्यु तक–दुख का ही अंबार लेकिन बीमार से स्वास्थ्य की क्या चर्चा करनी! वह तुम्हारी है, राशि है। बीमारी का निदान करता है; बीमारियों को उघाड़कर रखता है; ऐसी तुम्हारी पहचान जिस दिन हो जायेगी...और यही हो NowNE ain Eucation International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340105
Book TitleJinsutra Lecture 05 Param Aushadhi Sakshi Bhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size37 MB
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