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________________ जिन सत्र भागः1:11 प्रगट हुआ। यह कथा बहुत धर्मों में आती है : जब परम ज्ञान मत। बचकर कुछ सार न पाओगे। इस सत्य से जूझना ही प्रगट होता है तो शैतान भी प्रगट होता है। इस कथा में जरूर | पड़ेगा। और यह सत्य बड़ा कष्टपूर्ण है। इसलिए मन करता है, कोई सार होगा। यह कथा केवल प्रतीक नहीं हो सकती, क्योंकि मान लो यह है ही नहीं। तुम भी जानते हो तुम्हारे मन की प्रक्रिया यही जीसस के जीवन में भी उल्लेख है, कि जीसस जब ज्ञान के को। जो चीज बहुत कष्ट देने लगती है, तुम मानने लगते हो यह करीब पहुंचे तो शैतान प्रगट हुआ और शैतान ने उन्हें उत्तेजित | है ही नहीं। किया, उकसाया। और शैतान ने बड़ी वासनाओं के प्रलोभन मेरे एक परिचित थे। उन्हें टी. बी. की बीमारी थी। उनकी दिये। और शैतान ने कहा कि सारे जगत का तुझे सम्राट बना दूं, पत्नी उन्हें मेरे पास लायीं और कहा, कि आप किसी तरह इनको सारी धन-राशि तेरी हो, सुंदरतम स्त्रियां तेरी हों, लंबा तेरा | समझायें कि डाक्टर से चलकर ठीक से निदान करवा लें। पति जीवन हो। क्या चाहिए? भड़क उठे। कहा कि 'क्या कहती है? जब मैं बीमार ही नहीं हूं वही बुद्ध से भी शैतान ने कहा। बुद्ध हंसते रहे। बुद्ध ने कहा, | तो मैं जाऊं क्यों? परीक्षण के लिए क्यों जाऊं? परीक्षण के 'मुझे कुछ चाहिए नहीं। मैं बचा नहीं। चाहनेवाला जा चुका, लिए वह जाये जो बीमार है। जब मैं बीमार ही नहीं हूं तो जाने की चाह भी जा चुकी। चाहा तो मैंने भी था, बड़े साम्राज्य बनाऊं; बात ही क्या उठाती है?' चाहा तो मैंने भी था, चक्रवर्ती बनूं। उसी चाह के कारण भिखारी | लेकिन उनकी मैंने घबड़ाहट देखी, उनका तमतमाया चेहरा चाह के कारण भटका जन्मों-जन्मों तक। चाह छोड़ी, देखा, उनके कंपते हाथ देखे। मैंने उनसे कहा कि आप बिलकुल तब शांति मिली। चाह जब पूरी गई, तो अब मैं परम आनंद से ठीक कहते हैं। आप बीमार ही नहीं हैं। चिकित्सक के पास जाने भरा हूं। अब तू गलत वक्त पर आया है। पहले आता तो शायद की कोई जरूरत ही नहीं है। तेरे चक्कर में भी पड़ जाता।' | वे बड़े प्रसन्न हुए। कहा कि जिसके पास ले जाती है यह मेरी | तो शैतान ने कहा कि तुम सोचते हो तुम्हें परमज्ञान हो गया है, पत्नी, वही कहता है कि जाइये, जब यह कहती है तो परीक्षा तुम्हारा गवाह कौन है? तुम्हारे कहने से ही मान लूंगा? तुम्हारी | करवा लीजिये। मैंने कहा कि नहीं आप बिलकुल ठीक कहते गवाही कौन दे सकता है? हैं। कोई बीमारी नहीं है, इसलिए चिकित्सक के पास जाने की __ तो बड़ी अनूठी बात है-तुमने शायद बुद्ध का चित्र या कोई जरूरत नहीं है। लेकिन यह पत्नी पागल हुई जा रही है, जरा प्रतिमा भी देखी होगी, जिसमें वे एक अंगुली जमीन पर रखे हुए इस पर दया करो! यह मर जायेगी इसी घुटन में; तुम इस पर दिखाये गये हैं। बुद्ध ने जमीन पर अंगुली लगाई और कहा, यह / कृपा करके चिकित्सक के पास चले जाओ! बीमारी तो है ही नहीं पृथ्वी मेरा प्रमाण है, यह मेरी गवाही है। बड़ी हैरानी की बात है : तो चिकित्सक भी कहेगा, बीमारी नहीं है। तुम घबड़ाते क्यों पृथ्वी को गवाही बता रहे हैं! आकाश में परमात्मा को बताया हो? मगर इसकी शंका, इसका शल्य दूर हो जायेगा। होता कि परमात्मा मेरा गवाह है तो समझ में आता। लेकिन बुद्ध वे बड़े उदास हो गये। और महावीर दोनों ही परमात्मा की बात नहीं करते। वे जीवन के कहने लगे, यह तो उलझा दिया आपने। सच यह है, उनकी यथार्थ की बात कहते हैं। वे कहते हैं, 'इस पृथ्वी से पूछ लो। आंख में आंसू आ गये कि मैं डरता हूं। मुझे भी डर है कि शायद इसी से मैं बना हूं। यही पृथ्वी मेरी देह है। इसी पृथ्वी ने मेरे बीमारी है। मैं किसी तरह अपने को समझा रहा हूं कि नहीं है। भीतर हजार-हजार वासनायें उठायी थीं। इसी पृथ्वी से पूछ लो। चिकित्सक के पास तो कैसे छिपा पाऊंगा कि नहीं है। पत्नी को बहुत दुख मैंने झेले हैं, और अब मैं दुखों के बाहर हो गया हूं। समझाने की कोशिश कर रहा हूं, बच्चों को समझाने की कोशिश और कौन गवाह हो सकता है?' | कर रहा हूं। मैं मौत से डरता हूं। टी. बी. शब्द ही मुझे घबड़ाता पृथ्वी से गवाही दिलवाते हैं बुद्ध। यह बड़ा प्रतीकात्मक है। है। अगर चिकित्सक ने कहा कि टी. बी. है तो मैं मर ही महावीर के लिए यह संसार बड़ा वास्तविक है। वे इसको माया | जाऊंगा। टी. बी. से मरूंगा या नहीं, यह सवाल नहीं है; बस नहीं कहते। वे कहते हैं, यह सत्य है। माया कहकर तुम बचो यह जानकर कि टी. बी. है, मैं मर जाऊंगा। 94 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340105
Book TitleJinsutra Lecture 05 Param Aushadhi Sakshi Bhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size37 MB
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