________________ बोध-गहन बोध मुक्ति है जैसे दीये के जलने पर अंधेरा विसर्जित होता है-सम्यकत्व का जन्म होता है। और जब तुम पहंच गये, तो वहां न मिथ्यात्व है न सम्यकत्व, दोनों द्वंद्व गये। फिर वहां तो केवल-ज्ञान, केवलत्व, कैवल्य है। आज इतना ही। 63 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org