________________ बोध-गहन बोध-मुक्ति है 'अहो ! माया की गांठ कितनी सुदृढ़ होती है!' सब लोग संपत्ति का साठ, सत्तर, अस्सी प्रतिशत युद्ध की तैयारी पर खर्च जानते हुए मालूम पड़ते हैं। सब लोग सोचते हुए मालूम पड़ते करता है। कबूतर भी उड़ाये चले जाते हैं, अणु-बम भी बनाये हैं। यहां बुद्धिहीन खोजना तो बहुत मुश्किल है, सभी बुद्धिमान चले जाते हैं। किसको सच मानें? यह जो शांति की चर्चा है, हैं। फिर भी जब माया पकड़ती है तो सभी उसकी पकड़ में आ | यह युद्ध को करने में सहायता देती है। यह विपरीत नहीं है। जाते हैं, गांठ बड़ी सुदृढ़ मालूम होती है। और गांठ कहीं इतने अगर यह विपरीत होती और ये कबूतर सच्चे होते, तो कोई गहरे है! तुम जहां हो अभी वहां से कहीं ज्यादा गहरी तुम्हारी कारण न था, लोग क्यों युद्ध के लिए तैयारियां करें। गांठ है। जब तुम गांठ से ज्यादा गहरे हो जाओगे तभी गांठ खुल शांति की तुमने कहीं कोई तैयारी होते देखी? कोई शांति की जाएगी। इसलिए असली सवाल भीतर यात्रा का है। अपनी कहीं तैयारी नहीं होती। शांति की लोग सिर्फ बात करते हैं, शांति गहराई से गहराई खोजनी है। तुम जिस चीज के ज्यादा गहरे उतर चाहिए! युद्ध की तैयारी करते हैं। ध्यान रखना, जिसकी तैयारी गये, उससे ही मुक्त हो गये।। करते हैं वही चाहते हैं। अगर शांति चाहते होते तो कुछ शांति पर ‘जन्म दुख है, बुढ़ापा दुख है, रोग दुख है, मृत्यु दुख है। भी खर्च करते, शांति की सेनाएं खड़ी करते, लोगों को शांति का अहो। संसार दुख ही है, जिसमें जीव क्लेश पा रहे हैं।' प्रशिक्षण देते। लेकिन वैसा तो कहीं कुछ नहीं होता। सब 'जन्मं दुक्खं जरा दुक्खं, रोगा या मरणाणि य। प्रशिक्षण युद्ध का है। सबं प्रशिक्षण लड़ने, मरने, मारने का है। अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ की संति जंतवो।।' और कौन कितना कुशल है मारने में, उसकी दौड़ है। अमरीका आश्चर्य है, महावीर कहते हैं, सब दुख है, फिर भी लोग है, रूस है, चीन है-नीचे तो अणु-बम के ढेर लगाये चले जाते पकड़े हैं। दुख ही दुख है, फिर भी लोग छोड़ते नहीं। मूर्छा बड़ी हैं, ऊपर से शांति-कांफ्रेंस करते चले जाते हैं। वह जो गहरी होगी। इसलिए कहते हैं, आश्चर्य है। लोग अपने ही पैरों शांति-कांफ्रेंस है, वह उस ढेर को छुपाने की तरकीब है; वह तंबू आ रहे हैं, आश्चर्य! लोग अपने ही हाथों से है शांति का, जिसके अंदर बम छिप जाएंगे और पता भी न अपनी जंजीरें ढाल रहे हैं, आश्चर्य! और लोग रोते भी हैं, चलेगा। आदमी ऐसा धोखेबाज है! और ऐसा राज्यों के संबंध चिल्लाते भी हैं कि मुक्त होना है, कि आनंदित होना है। और जो में ही नहीं है, सभी के संबंध में यही है। करते हैं, वह बिलकुल विपरीत है। जो करते हैं उससे बंधन तुमने कभी खयाल किया, तुम जो कहते हो उससे तुम्हारा निर्मित होता है। जीवन बिलकुल विपरीत है। और अगर ऐसा ही चलते जाना है तो लोग जो कहते हैं, उस पर मत ध्यान देना; लोग जो करते तो कृपा करो, कहना बंद करो। क्योंकि कहने से क्या सार है? हैं, उस पर ध्यान देना। लोग क्या कहते हैं, यह तो छोड़ ही क्यों उतनी शक्ति व्यय करते हो? व्यर्थ कबूतर मत उड़ाओ। देना। अकसर तो ऐसा है, लोग उलटा ही कहते हैं। उसका भी उतना पैसा और बम बनाने में लगा दो। कम से कम सफाई तो कारण समझ लेना चाहिए। लोग उलटा कहते हैं, क्योंकि उस हो, सचाई तो हो, सीधी-सीधी बात तो हो। तरह से वे अपने को संतोष बंधाए रखते हैं। अपने हाथों से तो वे अब तक जितने युद्ध हुए दुनिया में, थोड़े नहीं हुए, कोई तीन बनाते जाते हैं कारागृह और अपनी वाणी से गीत गाते रहते हैं | हजार साल में पांच हजार युद्ध हुए हैं। जितने युद्ध हुए वे सभी स्वतंत्रता का। यह स्वतंत्रता कारागृह के मिटाने के काम नहीं युद्ध इसीलिए हुए कि दुनिया में शांति होनी चाहिए। इससे तो आती। यह स्वतंत्रता की बातचीत कारागृह को बनाने में बेहतर है, शांति की बकवास बंद करो। अगर शांति के लिए सुविधापूर्ण है। कारागृह भी बनता जाता है, स्वतंत्रता की बात पांच हजार युद्ध करने पड़े तीन हजार सालों में तो छोड़ो यह शांति भी चलती चली जाती है। काम की नहीं है, यह तो बड़ी खतरनाक है, बड़ी महंगी है। सारी तुम देखते हो, दुनिया में सब तरफ ऐसा होता है। राजनीतिज्ञ दुनिया के राज्य अपने युद्ध के इंतजाम का नाम-देखा, शांति की बात करते हैं, युद्ध की तैयारी करते हैं। सारे राजनीतिज्ञ / 'सुरक्षा-मंत्रालय', 'डिफेंस' कहते हैं! सब अटैक करते हैं कबूतर उड़ाते हैं शांति के-शांति-कपोत! और हर राज्य अपनी और सब डिफेंस कहते हैं। सब आक्रामक हैं, लेकिन किसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org