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________________ जिन सूत्र भागः1 अभी जीवन देखा ही नहीं। पत्नी से पूछा, पत्नी के आंसू एकदम | में ले लो। दुख है तो तुम कारण हो। अंधेरा है तो तमने ही दीया रुक गये। उसने कहा, अब ये तो मर ही गये, और हम किसी | छिपाकर रखा है। अगर कांटों में चल रहे हो तो तमने ही कांटे तरह चला लेंगे। अब आप झंझट न करो और।। बोए हैं। फकीर ने कहा, अब उठ! तो वह आदमी आंख खोलकर उठ | महावीर ने मनुष्य को सीधा मनुष्य के ऊपर फेंक दिया; कोई आया। उसने कहा, 'अब तेरा क्या इरादा है?' उसने कहा, सहारा न दिया, कोई सांत्वना न दी; नहीं कहा कि भगवान है, अब क्या इरादा है, आपके साथ चलता हूं। ये तो मर ही गये। खेल खेल रहा है, उसका खेल है, घबड़ाओ मत, प्रार्थना करो, अब ये लोग चला लेंगे! देख लिया राज। समझ गये, सब बातों उसका सहारा मिलेगा। कोई सांत्वना न दी। की बात थी। कहने की बातें थीं। महावीर का धर्म सांत्वना-रहित है। अति कठोर मालूम पड़ता कौन किसके बिना रुकता है। कौन कब रुका है! कौन है। लेकिन उतनी कठोरता हो तो ही कोई घर वापिस लौटता है। किसको रोक सका है। कैदे-हस्ती की भी तारीक बदल दूं तो सही दृष्टि आ जाए तो वैराग्य उत्पन्न होता है। उस घड़ी उस युवक खेल समझे हो मेरा दाखिले-जिंदा होना। ने देखा। इसके पहले सोचा था बहुत। उस घड़ी दर्शन हुआ। कारागृह में आ गया हूं तो अगर कारागृह का ढंग ही न बदल दूं इसके पहले विचार बहुत किया था, लेकिन वे विचार विचार न तो मेरे आने का अर्थ ही नहीं है। थे, विवेक न था; क्योंकि उनसे वैराग्य न फलित होता था, कैदे-हस्ती की भी तारीक बदल दूं तो सही! यह जो जिंदगी उलटा राग फलित होता था। और जिंदगी का जाल है और जिंदगी के बंधन हैं, इनका भी तो कसौटी है: जिसमें राग लगे, वह विचार नहीं; वह | इतिहास बदल दूं तो सही। खेल समझे हो मेरा दाखिले-जिंदा भीड़-भाड़ है विचारों की। थोथा है सब, असार है, राख है। होना। एक बार कारागृह में आ गया, तो अब कारागृह को भी उसमें अंगार नहीं है। जिसमें वैराग्य की लपट उठे-अंगार है, स्वतंत्रता बनाकर छोडूंगा। जीवन है, विचार है, विवेक है। ऐसा महावीर का भाव है। और महावीर ने ऐसा किया। कोई जिंदगी एक हादिसा है और कैसा हादिसा सहारा न लिया, कोई भीख न मांगी। महावीर जैसा अकेला कोई मौत से भी खत्म जिसका सिलसिला होता नहीं। भी जीवन के पथ पर नहीं चला है। कोई न कोई सहारा आदमी यह जिसे हम जिंदगी कहते हैं, यह हमारी जीवेषणा है। जिसे | खोज लेता है। सहारे के सहारे संसार आ जाता है। सहारे के हम जिंदगी कहते हैं, यह हमारे जन्मों-जन्मों का संकलित | सहारे फिर सब उतर आता है। एक के बाद एक सिलसिला लग सम्मोहन है। जाता है। - जिंदगी एक हादिसा है और कैसा हादिसा फक्र को मेरे वैर है जज्बए-इकसार से मौत से भी खत्म जिसका सिलसिला होता नहीं। जिंसे-जुनूं भी हो तो मैं भीख नलं बहार से। मौत आती है, जाती है, लेकिन सम्मोहन चलता रहता है। स्वाभिमान के विपरीत है। अगर प्रेमियों का पागलपन भी जीवेषणा को मौत नहीं मार पाती। शरीर छुट जाता है, हम नया बहार से मिलता हो, अगर भक्तों का भी पागलपन बहार से शरीर ग्रहण कर लेते हैं। तुम शरीर में इसलिए नहीं हो कि शरीर | मिलता हो, तो भी मैं भीख न लं। स्वाभिमान के विपरीत है। ने तुम्हें चुना है; तुम शरीर में इसलिए हो कि तुमने शरीर को चुना | महावीर कहते हैं, भीख मत लेना। क्योंकि भीख में जो मिलेगा है। तुम दुख में इसलिए नहीं हो कि दुख तुम पर आया है; तुम वह भीख ही होगी, स्वामित्व न मिलेगा। दुख में इसलिए हो कि तुमने दुख को बुलाया है। __ इसलिए महावीर के विचार में प्रार्थना की कोई जगह नहीं है, महावीर का मौलिक सूत्र है कि तुम्हारा उत्तरदायित्व आत्यंतिक विचार काफी है। विचार का ही सम्यक रूप ध्यान बन जाता है। है। न कोई भाग्य, न कोई भगवान—तुम ही जिम्मेवार हो। ध्यान का सम्यक रूप समाधि बन जाता है। समाधि यानी सार-सूत्र महावीर का यह है कि तुम अपनी बागडोर अपने हाथ | समाधान! तुम जीवन को ठीक से देख लो, वहीं मुक्ति है। 154 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340103
Book TitleJinsutra Lecture 03 Bodh Gahan Bodh Mukti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size27 MB
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