SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर-वाणी भाग : 2 को गिनना एकदम बेहूदी बात है। क्योंकि कहां चारवाक, जो सिर्फ खाने, पीने और मौज उड़ाने की शिक्षा दे रहा है। जो कहता है कि न कोई परमात्मा है, न कोई आत्मा है, न कोई परम जीवन है—सिवाय पदार्थ के और कुछ भी नहीं। उसके साथ महावीर को गिनना या बुद्ध को गिनना ज्यादती है। लेकिन, ब्राह्मणों ने यह ज्यादती की। करने का कारण यह नहीं था कि महावीर नास्तिक थे। करने का कारण यह था कि महावीर ने ब्राह्मण की व्याख्या को इतना महान बना दिया कि सभी ब्राह्मणों को साफ हो गया कि उनमें से कोई भी ब्राह्मण नहीं है। यह व्याख्या गिरनी चाहिए। उनका ब्राह्मणत्व छीन लिया। इतनी बड़ी लकीर खींच दी ब्राह्मण की, कि उसके नीचे ब्राह्मण एकदम क्षुद्र मालुम होने लगा।...कि इस आदमी का वचन नहीं सुनना चाहिए। __ऐसा उल्लेख है शास्त्रों में कि अगर कोई ब्राह्मण निकलता हो रास्ते से और सामने पागल हाथी आ जाये, और जैन-मंदिर करीब हो, तो पागल हाथी के पैर के नीचे दबकर मर जाना बेहतर, जैन-मंदिर में शरण नहीं लेनी चाहिए। क्योंकि पता नहीं वहां कोई नास्तिक वचन कान में पड़ जाए। ___ मगर आप ऐसा मत सोचना कि ऐसा हिंदुओं ने ही किया / जैनों ने भी ठीक यही किया पीछे / उन्होंने भी लिखा है अपने शास्त्रों में कि कोई जैन अगर हिंदू-मंदिर के पास पागल हाथी के सामने पड़ जाये, तो बेहतर है मर जाना पागल हाथी के पैर के नीचे दबकर, हिंदू-मंदिर में शरण मत लेना। क्योंकि वहां कुदैव की पूजा हो रही है, कुशास्त्र पढ़ा जा रहा है। बड़े मजे की बात है, महावीर ने कहा कि कोई ब्राह्मण जन्म से नहीं होता लेकिन सब जैन जन्म से जैन हैं! महावीर ने जैन की कोई व्याख्या नहीं की, क्योंकि उस दिन कोई जैन था नहीं / ब्राह्मण की व्याख्या की / अब जरूरत है कि कोई तीर्थंकर जैन की व्याख्या करे, कौन है 'जैन'? 'जैन' शब्द 'ब्राह्मण' शब्द से ज्यादा कीमती है, कम कीमती नहीं है। ब्राह्मण बनता है 'ब्रह्म' से; कि जो ब्रह्म को उपलब्ध होने लगा। और जैन बनता है 'जिन' से; जो स्वयं का स्वामी होने लगा, जीतने लगा अपने को। जिसने अपने को पूरी तरह जीत लिया वह 'जिन' है। और जो जीतने के मार्ग पर चल पड़ा वह 'जैन' है। लेकिन जैन घर में पैदा होने से कोई जीतने के मार्ग पर चलता है? लेकिन, जैसा उस दिन ब्राह्मण मूढ़ था, और सोच रहा था ब्राह्मण कुल में पैदा होकर मैं ब्राह्मण हो गया। वैसा ही जैन आज मूढ़ है। वह सोचता है जैनकुल में पैदा होकर मैंने सब पा लिया, संपदा मिल गयी। ___ जन्म से कुछ भी नहीं मिलता-हड्डी, मांस-मज्जा मिलती है। उसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। धर्म तो उपलब्ध करना होता है, चाहे ब्राह्मण बनो और चाहे जैन / अथक साधना, जन्मों-जन्मों की चेष्टा का फल है। जिनत्व या ब्राह्मणत्व उपलब्धि है। जन्म के साथ नहीं मिलती, खुद पानी होती है। 380 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340045
Book TitleMahavir Vani Lecture 45 Aliptata hai Bramhnatva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size97 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy