SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अलिप्तता है ब्राह्मणत्व महावीर चाहते थे, पूरी पृथ्वी ब्राह्मण हो जाये / ऊपर से देखने पर लगता है कि महावीर ने तोड़ दिये सारे समाज के सारे नियम, वर्ण की व्यवस्था, लेकिन महावीर की कल्पना थी कि सारी पृथ्वी ब्राह्मण हो जाये / और जब तक सारी पृथ्वी ब्राह्मण नहीं हो जाती, तब तक धार्मिक होने का कोई उपाय नहीं है, पृथ्वी धार्मिक भी नहीं हो सकती / पृथ्वी ब्राह्मण हो सकती है। लेकिन, कोई तिलक-टीकाधारी ब्राह्मण, चोटी धारी ब्राह्मण, यज्ञोपवीत वाला ब्राह्मण अगर कोशिश करे कि सारी दुनिया यज्ञोपवीत पहन ले, चोटी रख ले, तिलक लगा ले और ब्राह्मण हो, तो पृथ्वी ब्राह्मण नहीं हो सकती / और इस तरह का ब्राह्मणत्व फैल भी जाये तो दो कौड़ी का है। उसका कोई मूल्य नहीं है। ब्राह्मण के लक्षणों को शरीर से हटाकर महावीर आत्मा पर ले जा रहे हैं। हमारी व्याख्या ब्राह्मण की जो महावीर के पहले थी, वह शरीर पर थी कि ब्राह्मण-कुल में जो पैदा हुआ, ब्राह्मण घर में बड़ा हुआ, ब्राह्मण-जाति के नियम मानता है-शास्त्र पढ़ता है, शास्त्र पढाता है, गुरु है-वह ब्राह्मण है। महावीर ने शरीर से सारी व्याख्या हटा दी। 'जो अकिंचन है...।' ___ ध्यान रहे, जिसको हम ब्राह्मण कहते हैं, वह अकिंचन कभी नहीं होता चाहे उसके पास कौड़ी भी न हो। और जब भी आप उसके खड़े होते , तो वह देखता है कि छुओ पैर! अकिंचन कभी नहीं होता। अगर आप उसके पैरों में सिर न रखें तो अभिशाप देने को जरूर तैयार रहता है। अकिंचन वह कभी नहीं होता, महान अहंकार से पीड़ित होता है। __ब्राह्मण के चेहरे पर देखें एक अकड़...जो कि उन सभी लोगों में आ जाती है, जो बहुत समय तक अभिजात्य रहते हैं; ऊपर रहते हैं. छाती पर रहते हैं समाज की। उन सभी में आ जाती है। जैसे कि अंग्रेज चलता था हिन्दस्तान में, जब उसकी मालकियत थी, उसकी चाल, उसकी आंखें...। ब्राह्मण हजारों साल से ऊपर हैं, और ऊपर होने का कुल आधार शरीर है। इसलिए ब्राह्मणों को रुचिकर नहीं लगा महावीर का यह कहना कि ब्राह्मण होना आत्मा की गुणवत्ता है। क्योंकि उनको लगा कि इससे तो हमारा सारा ब्राह्मणत्व, जो कि शरीर पर निर्भर है, बिखरता है। इसलिए ब्राह्मणों ने महावीर का गहन विरोध किया। महावीर की विचारधारा को मुल्क में न जमने दिया जाये, इसकी पूरी चेष्टा की। महावीर घोर नास्तिक हैं और लोगों को अधार्मिक बना रहे हैं—ऐसा प्रचार किया। महावीर कोई ज्ञानी पुरुष नहीं हैं, इसकी पूरी धारणा फैलायी। यह जानकर आपको हैरानी होगी कि महावीर-जैसे आस्तिक व्यक्ति के विचार को ब्राह्मणों ने—जाति, जन्म से बंधे ब्राह्मणों ने-नास्तिकता सिद्ध करने की चेष्टा की, और उन्होंने इतने जोर से प्रचार किया है महावीर के नास्तिक होने का कि भारत के परंपरागत दर्शन शास्त्र के ग्रंथों में महावीर का नाम हमेशा नास्तिक परंपरा में गिना जाता है। ___ यह बड़ी चमत्कारपूर्ण घटना है कि महावीर और बुद्ध-जैसे परम आस्तिक, नास्तिक व्यक्ति क्यों मालूम पड़े उन्होंने जो कहा था उसके कारण नहीं ; बल्कि उन्होंने जातिगत स्वार्थों को जो नुकसान पहुंचाया उसका बदला लेना जरूरी था / और एक बार किसी के नास्तिक होने की घोषणा कर दो, तो लोग अंधे हो जाते हैं, फिर लोग सुनना बंद कर देते हैं। किसी के भी संबंध में कह दो कि वह नास्तिक है, लोग डर जाते हैं। जैसे आज, आज किसी आदमी के बारे में कह दो कि वह कम्युनिस्ट है, फिर लोग सोच लेते हैं कि इसकी बात सुनने की जरूरत नहीं। जैसे आज किसी को कम्युनिस्ट कह देना काफी है निंदा के लिए / कम्युनिस्ट भी अपने को कम्युनिस्ट बताने में दो दफा सोचता है कि बताना कि नहीं। ठीक आज से ढाई हजार साल पहले 'नास्तिक' इससे भी ज्यादा खतरनाक सत्य था / और चारवाक के साथ महावीर 379 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340045
Book TitleMahavir Vani Lecture 45 Aliptata hai Bramhnatva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size97 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy