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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 है। क्षुद्र आदमी के मन की क्या भावनाएं हैं, वे सब जाहिर हैं / जो आदमी चालाक है, वह आपकी शर्ते पूरी कर देगा और आपका गुरु बन बैठेगा। अगर आप उपवास को आदर देते हैं, उपवास किया जा सकता है। अगर आप गंदगी को आदर देते हैं, तो आदमी गंदा रह सकता है। जैन साधु हैं, उनके भक्त महावीर के वचनों का ऐसा अनर्थ कर लिये हैं, जिसका हिसाब नहीं है। महावीर ने कहा है, शरीर को सजाना मत, सजाने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि वह कामवासना से भरे हुए व्यक्ति की बात है। __ शरीर को आप अपने लिए तो नहीं सजाते, शरीर को आप सदा दूसरे के लिए सजाते हैं-कोई देखे, कोई आकर्षित हो, किसी में वासना जगे, चाहे आप सचेतन न हों-यह तो आदमी की दुविधा है कि वह अचेतन में सब करता जाता है। सड़कों पर चलती हुई स्त्रियों को देखें कोई उनको धक्का मार दें तो वे नाराज होती हैं, लेकिन घर से वे पूरी तरह सजावट करके चली हैं कि धक्का मारने का निमंत्रण छिपा है। कोई धक्का न मारे तो भी वे उदास लौटेंगी, शायद सजावट में कोई कमी रह गई-कोई धक्का मार दे तो परेशानी खड़ी कर देंगी, लेकिन निमंत्रण साथ लेकर चलेंगी। यह बड़े मजे की बात है कि स्त्रियां घर में तो महाकाली बनी बैठी रहती हैं-चंडी का अवतार और घर से निकलते वक्त ? उसका कारण है कि पति को आकर्षित करने की अब कोई जरूरत नहीं है-टेकन फार ग्रांटेड, वह स्वीकृत है / लेकिन पूरा बाजार भरा है-और फिर कोई धक्का मार दे; कोई ताना कस दे; कोई गाली फेंक दे, कुछ बेहूदी बात कह दे, तो अड़चन है! आदमी बड़ा अचेतन जी रहा है, वह क्या करना चाहता है, क्या कर रहा है उसे कुछ ठीक-ठीक साफ भी नहीं है। मैंने सुना है, एक दिन एक आदमी अपनी पत्नी के साथ नसरुद्दीन के घर पर दस्तक दिया / दरवाजा खुला तो वे दोनों चकित हो गये। पत्नी तो बहुत भयभीत हो गयी / नसरुद्दीन बिलकुल नंगा खड़ा है, सिर्फ एक टोप लगाये हुए। आखिर स्त्री से नहीं रहा गया, उसने कहा कि क्या आप घर में ऐसा दिगम्बर वेश ही रखते हैं ? नसरुद्दीन ने कहा, 'हां, क्योंकि मुझे कोई मिलने-जुलने आता नहीं।' तो स्त्री की जिज्ञासा और बढ़ गयी। उसने कहा, 'अगर ऐसा ही है तो फिर वह टोप और काहे के लिए लगाये हुए हैं? नसरुद्दीन ने कहा, 'कभी-कभार कोई आ ही जाये तो, उस खयाल से।' कोई मिलने नहीं आता, इस खयाल से नंगे हैं. और टोप इसलिए लगाये हैं कि कभी-कभार कोई आ ही जाये तो उसके लिए / आदमी बड़े द्वंद्व में बंटा हुआ है। कुछ साफ नहीं है। महावीर ने कहा है, शरीर की सजावट भोगी के लिए है; योगी के लिए शरीर की सजावट नहीं। लेकिन जब भोगियों ने महावीर के मार्ग पर कदम रखे तो उन्होंने इसका बड़ा अनूठा अर्थ लिया। सजावट एक बात है, स्वच्छता बिलकुल दूसरी बात है। स्वच्छता अपने लिए है, सजावट दूसरे के लिए होगी। स्वच्छता का तो अपना निजी सुख है, दूसरे से कोई प्रयोजन नहीं। लेकिन, स्वच्छता भी सजावट हो गयी है / तो जैन मुनि स्नान नहीं करेगा, शरीर से बदबू आती रहेगी; दातौन नहीं करेगा, मुंह से बदबू आती रहेगी। ___ अब यह बड़े मजे की बात है कि जैसे सजावट दूसरों को प्रभावित करने के लिए थी, यह गंदगी भी दूसरों को प्रभावित करने के लिए है। और अगर जैन श्रावक को पता चल जाये कि मुनिजी के मुंह से मैक्लीन्स की बास आ रही है, सब गड़बड़ हो गया! वह जाकर फौरन प्रचार कर देगा कि यह आदमी भ्रष्ट हो गया है; दातौन कर रहा है। दातौन ही नहीं कर रहा, ब्रश कर रहा है। आप दांत में सुगंध भी चाहते हैं दूसरे के लिए और दुर्गंध भी दूसरे के लिए, तो कुछ फर्क नहीं हुआ। महावीर का जोर इस बात का है कि दूसरे को भूल जायें। अपने लिए, स्वयं के लिए, निज के लिए जो हितकर है, स्वस्थ है, उस दिशा में खोज करें। 320 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340043
Book TitleMahavir Vani Lecture 43 Kaun hai Pujya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size94 MB
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