________________ कौन है पूज्य ? जैसा मैंने कल आपको कहा कि कैसी विकृतियां संभव हो जाती हैं। मैंने आपको कहा कि महावीर ने कहा है, मल-मूत्र विसर्जित जरूरी है. किसी को दखन हो, किसी को पीडा न हो / महावीर ने बहत विचार किया है, सक्षम, गंदगी से किसी को कष्ट न हो। पच्चीस सौ साल पहले न तो सेप्टिक टैंक थे और न फ्लश लैट्रिन थीं। और भारत तो पूरा-का-पूरा गांव के बाहर ही मल-मूत्र विसर्जन करता रहा है। तो महावीर ने कहा है, गीली जगह पर घास उगी हो, जहां कि कीड़े-मकोड़े के होने की संभावना है-जीवन की / घास भी जीवन है / तुम्हारे मल-मूत्र से घास को भी नुकसान पहुंच जायेगा-वह भी नहीं। तो सूखी जमीन पर, साफ जमीन पर, जहां कोई जीवन की कोई संभावना न हो, वहां तुम मल-मूत्र का विसर्जन करना। ___ अब बड़ा पागलपन हो गया ! अब बम्बई में जैन साधु-साध्वियां ठहरे हैं। जहां सपाट जमीन खोजनी मुश्किल है, सिवाय रोड के। तो वे रोड का उपयोग कर रहे हैं / तरकीब से कर रहे हैं ! अब मजा यह है कि बर्तनों में इकट्ठा कर लेंगे पेशाब को, मल-मूत्र को और रात के अंधेरे में सड़कों पर उड़ेल देंगे। ___ अब किसी नियम से कैसी मूढ़ता का जन्म हो सकता है, सोचें / फ्लश लैट्रिन इस समय सर्वाधिक उपयोगी होगी। लेकिन वहां नियम में उलटा हो गया, क्योंकि गीली जगह पर...वहां पानी है फ्लश का, तो उस पानी की वजह से शास्त्र...! शास्त्र लोगों को अंधा कर सकते हैं। और जो इस तरह अंधे हो जाते हैं उनके जीवन में कैसे प्रकाश होगा, कहना बहुत मुश्किल है। शास्त्र की लकीर के फकीर हैं वे / उसमें लिखा है, 'गीली जमीन पर नहीं ...तो वहां फ्लश का पानी है, इसलिए वहां पेशाब भी नहीं कर सकते, वहां मल-विसर्जन भी नहीं कर सकते। तो सूखी थाली या बर्तन में कर लेंगे, फिर सम्हालकर रखे रहेंगे और जब रात हो जायेगी, अंधेरा हो जायेगा तो सड़क पर, सूखी जमीन पर छोड़ देंगे। अब यह पागलपन हो गया। लाओत्से कभी-कभी ठीक लगता है कि पैगंबरों से बड़ी मूढ़ता पैदा होती है। महावीर को कल्पना भी नहीं रही होगी, हो भी नहीं सकती। फ्लश लैट्रिन का उनको पता होता तो शास्त्र में थोड़ा फर्क करते / लेकिन उनको यह खयाल भी नहीं रहा होगा कि उनके पीछे ऐसे पागलों की जमात आ जायेगी, जो उसको नियम बना लेगी। कोई शास्त्र नियम नहीं हैं। सब शास्त्र निर्देशक हैं: सिर्फ सचना मात्र हैं। उनका भाव पकड़ना चाहिये शब्द पकड़ेंगे तो गड़बड़ हो जायेगी, क्योंकि सभी शब्द पुराने पड़ जायेंगे। महावीर ने जिनसे कहा है, उनके लिये ठीक थे। समय बदलेगा, स्थिति बदलेगी, व्यवस्था बदलेगी, उपकरण बदलेंगे-शब्द वही रह जायेंगे। शास्त्र कोई वृक्ष तो हैं नहीं कि बढ़ें, उनमें नये फूल लगें। शास्त्र तो मुर्दा हैं / उन मुर्दा शास्त्रों को जकड़कर लोग बैठ जाते हैं। महावीर ने कहा है कि 'आचार-प्राप्ति के लिए विनय का उपयोग करता है जो व्यक्ति...।' लेकिन आप गौर से देखें, जब भी कभी आप आचार-प्राप्ति का कोई उपयोग करते हैं, तो उसमें अहंकार कारण होता है। इसलिए आचारवान व्यक्ति अकड़कर चलता है; दुराचारी चाहे डरकर चले / दुराचारी थोड़ा चिंतित भी होता है कि किसी को पता न चल जाये। दुराचारी डरता है कि मेरे आचरण का पता न चल जाये। जिसको हम सदाचारी कहते हैं, वह कोशिश करता है कि उसके आचरण का आपको पता चलना चाहिये / मगर आप ही बिंदु हैं। तो दुराचारी अंधेरे में छिपता है, सदाचारी प्रचार करता है अपने आचरण का / वह हिसाब रखता है कि किस वर्ष कितने उपवास किये, कितनी पूजा की. कितने मंत्र का जाप किया: सब हिसाब रखता है, कितने लाख जाप कर लिया। किसके लिए यह हिसाब है ? हिसाब बता रहा है कि भीतर चालाक आदमी मौजूद है, मिटा नहीं है, बही-खाते रख रहा है। 321 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org