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________________ कौन है पूज्य? कि तू निरहंकारी होना / मां-बाप यह कह रहे हैं कि तू चालाक होना, कनिंग होना, क्योंकि अगर तेरे पास आचरण है तो समाज तुझे कम असुविधा देगा, सुविधा ज्यादा देगा। अगर तू आचरणहीन है तो समाज असुविधायें देगा; दिक्कतें डालेगा; दंड देगा, परेशान करेगा-समाज दुश्मन हो जायेगा। तो तुझे जो भी पाना है जीवन में-धन, पद, प्रतिष्ठा, वह तुझे मिल नहीं सकेगी। __ और हमारा आचार इसी प्रतिष्ठा के आग्रह में निर्मित होता है। हमारे बीच जो आचारवान भी मालूम पड़ते हैं, भीतर उनका आचार भी विनय पर आधारित नहीं है; ह्युमिलिटी पर आधारित नहीं है, अहंकार पर आधारित है। महावीर कहते हैं, बात खराब हो गयी, यह तो जड़ में ही जहर डाल दिया / जो फूल आयेंगे वे जहरीले होंगे / विनय आधार है। और बड़े आश्चर्य की बात है कि विनय में सारा आचार समा जाता है। विनय का अर्थ है निरहंकार भाव; 'मैं कुछ हं', इस पागलपन का त्याग / यह अकड़ भीतर से खो जाये कि 'मैं कुछ हूं।' मगर दूसरी अकड़ फौरन हम बिठा लेते हैं। आदमी की चालाकी को ठीक से समझ लेना जरूरी है—हम यह कह सकते हैं कि मैं कुछ भी नहीं हूं', और यह अकड़ बन सकती है— 'मैं ना-कुछ हूं लेकिन इसके कहते वक्त एक प्रबल अहंकार भीतर कि 'मैं विनम्र हूं'; कि 'मुझसे ज्यादा विनीत और कोई भी नहीं...!' ___ आदमी तरकीबें निकाल लेता है और जब तक होश न हो, तरकीबों से बचना मुश्किल है। तो आप विनीत भी हो सकते हैं और भीतर अहंकार हो सकता है / विनम्र होने का अर्थ है—न तो इस बात की अकड़ कि 'मैं कुछ हूं', और न इस बात की अकड़ कि 'मैं ना-कुछ हूं'-इन दोनों के बीच में विनम्रता है। जहां मुझे यह पता ही नहीं है कि 'मैं हूं'---मेरा होना सहज है, इस सहजता को महावीर कहते हैं, आचार का आधार। 'जो आचार-प्राप्ति के लिए विनय का प्रयोग करता है, जो भक्तिपूर्वक गुरु-वचनों को सुनता है एवं स्वीकृत कर वचनानुसार कार्य पूरा करता है, जो गुरु की कभी अवज्ञा नहीं करता, वही पूज्य है।' 'विनय' का अर्थ है, अपने को शून्य समझना और जब तक आप शून्य नहीं हो जाते तब तक गुरु उपलब्ध नहीं हो सकता। आप गुरु को नहीं खोज सकते, ध्यान रखना। आप तो जिसको खोजेंगे वह आप-जैसा ही गुरु-घंटाल होगा, गुरु नहीं हो सकता / आप खोजेंगे ना ! आप अपने से अन्यथा कुछ भी नहीं खोज सकते। आप सोचेंगे, आप व्याख्या करेंगे-आप करेंगे न ! गुरु तो गौण होगा, नंबर दो होगा! नंबर एक तो आप होंगे, आप पता लगायेंगे कि कौन ठीक है, कौन गलत है? गुरु कैसा होना चाहिये, यह आप पता लगायेंगे। आप तय करेंगे कि आचरणवान है कि आचरणहीन है। आप—जिनको कुछ भी पता नहीं है। आप गुरु के निर्धारक होंगे, तो जिसे आप चुन लेंगे वह आपका ही प्रतिबिंब होगा, आपकी ही प्रतिध्वनि होगा, और अगर आप गल // गुरु सही नहीं हो सकता; आप गलत गुरु ही चुन लेंगे। गुरु की खोज का पहला सूत्र है कि आप न हों। तब आप नहीं चुनते, गुरु आपको चुनता है / तब आप अपने को बीच में नहीं लाते; आप कोई शर्त नहीं लगाते; आप परीक्षक नहीं होते। इधर मैं देखता हूं, लोग गुरुओं की परीक्षा करते घूमते हैं / देखते हैं कि कौन गुरु ठीक, कौन गुरु ठीक नहीं / आप अगर इतना ही तय कर सकते हैं और परीक्षक हैं, आपको शिष्य होने की जरूरत ही नहीं है; आप गुरु के भी महा-गुरु हैं ! आप अपने घर बैठिये, जिनको सीखना है वे खुद ही आपके पास आ जायेंगे। आप मत जाइये। __ और आप कितने ही भटकें, आपको गुरु नहीं मिल सकता / आपको गलत आदमी ही प्रभावित कर सकता है, जो आपकी शर्ते पूरी करने को राजी हो / कौन आपकी शर्ते पूरी करेगा? कोई महावीर, कोई बुद्ध आपकी शर्त पूरी करेगा? कोई क्षुद्र आपकी शर्त पूरी कर सकता है। अगर वह आपका गुरु होना चाहता है, आपकी शर्त पूरी कर दे सकता है। आपकी शर्ते जाहिर हैं, उसमें कुछ कठिनाई नहीं 319 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340043
Book TitleMahavir Vani Lecture 43 Kaun hai Pujya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Mahavir_Vani_MP3_and_PDF_Files
File Size94 MB
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